केंद्रशासित प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा सीट के पुनर्निर्धारण को लेकर परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फ़ैसले को चुनौती देते हुए सूबे के दो निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि संविधान के प्रावधानों के विपरीत जाते हुए परिसीमन की प्रक्रिया चलाई गई.
नई दिल्ली: सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र सरकार, जम्मू कश्मीर प्रशासन और देश के निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है.
केंद्रशासित प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा सीट के पुनर्निर्धारण को लेकर परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए जम्मू कश्मीर के दो निवासियों ने यह याचिका दायर की है.
जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करके उनसे छह सप्ताह में जवाब मांगा है.
अदालत ने यह भी कहा कि इसके दो सप्ताह बाद जवाबी हलफनामा भी दायर किया जाए. मामले की अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी.
दोनों याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ.मोहम्मद अयुब मट्टू की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि संविधान के प्रावधानों के विपरीत परिसीमन की प्रक्रिया चलाई गई.
पीठ ने कहा कि परिसीमन आयोग कुछ समय पहले गठित किया गया था.
पीठ ने याचिकार्ताओं से पूछा कि वे तब कहां थे और उस समय आयोग के गठन को चुनौती क्यों नहीं दी. अधिवक्ता ने कहा कि परिसीमन आदेश के मुताबिक केवल चुनाव आयोग ही सीमा में बदलाव कर सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में आरोप लगाया गया है कि परिसीमन की कवायद 2011 की जनसंख्या की गणना के आधार पर की जानी थी, लेकिन उस वर्ष केंद्रशासित प्रदेश में ऐसी कोई जनगणना नहीं हुई थी.
पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद 32 के तहत एक विशिष्ट सवाल पूछ रही है कि आप ने आयोग के गठन का विरोध क्यों नहीं किया और क्या आप ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध किया था?
पीठ ने अधिवक्ता को, जो आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे थे, उचित शब्दों के चयन की हिदायत दी और कहा कि कश्मीर हमेशा से भारत का अंग था और केवल एक विशेष प्रावधान हटाया गया है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में दोतरफा बात है. मेहता के मुताबिक, पहले तो यह कहा गया है कि परिसीमन केवल निर्वाचन आयोग द्वारा किया जा सकता है न की परिसीमन आयोग ऐसा कर सकता है, दूसरी बात यह कि उन्होंने जनगणना के बारे में भी सवाल उठाए हैं.
मेहता ने कहा, ‘इन सवालों का पुनर्निर्धारण कानून में जवाब है. दो तरह के परिसीमन होते हैं. एक भौगोलिक आधार पर होता है, जिसको परिसीमन आयोग करता है, जबकि दूसरा परिसीमन सीट के आरक्षण को लेकर होता है जिसे निर्वाचन आयोग करता है. ’
मेहता ने कहा कि याचिकार्ताओं का मामला यह है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जनगणना वर्ष 2026 में हो सकेगी. याचिका में कहा गया कि जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 में यह प्रावधान है कि अगला परिसीमन वर्ष 2026 के बाद किया जाएगा, फिर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर को परिसीमन के लिए क्यों चुना गया?
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह चाहते हैं कि अदालत सरकार को संसद के समक्ष कागजात पेश करने से रोके, लेकिन यदि आप बहुत चिंतित थे, तो आपने इस मामले को दो वर्ष पहले क्यों नहीं उठाया?
याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीटों सहित) करना संवैधानिक प्रावधानों जैसे कि अनुच्छेद 81, 82, 170, 330, और 332 का अतिक्रमण है, विशेषकर जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत.
5 मई को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय परिसीमन पैनल ने जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा क्षेत्रों को अधिसूचित किया है. अधिसूचना के अनुसार, जम्मू कश्मीर विधानसभा में सात अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्रों को जोड़ा गया है.
आयोग ने अंतिम आदेश में जम्मू में छह, जबकि कश्मीर में एक अतिरिक्त सीट का प्रस्ताव रखा है. वहीं, राजौरी और पुंछ के क्षेत्रों को अनंतनाग संसदीय सीट के तहत लाया गया है. 12 सीटें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया है.
परिसीमन आयोग का गठन मार्च 2020 में किया गया था. अब इस रिपोर्ट के साथ ही केंद्रशासित जम्मू कश्मीर में पहले विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो गया है.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू कश्मीर के राज्य चुनाव आयुक्त केके शर्मा परिसीमन आयोग के पदेन सदस्य हैं. इसके अलावा इसके आयोग में पांच सहयोगी सदस्य हैं- नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी, प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह और भाजपा के जुगल किशोर शर्मा.
रिपोर्ट के मुताबिक, अब्दुल्ला और अन्य नेशनल कॉन्फ्रेंस सांसदों ने कुछ प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी- विशेष रूप से कश्मीर की तुलना में जम्मू को दी गई प्राथमिकता को लेकर, वे कहते हैं कि दोनों क्षेत्रों के बीच वास्तविक जनसांख्यिकीय संतुलन के साथ तालमेल नहीं है.
वहीं, कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों ने परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि यह घाटी में राजनीतिक रूप से लोगों को कमजोर करने का प्रयास है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)