जम्मू-कश्मीर: आतंकियों से कथित संबंध के मामले में प्रोफेसर-पुलिसकर्मी और शिक्षक बर्ख़ास्त

बर्खास्त किए गए लोगों में कश्मीर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग का प्रोफेसर अल्ताफ़ हुसैन पंडित, सरकारी शिक्षक मोहम्मद मक़बूल हाज़म और एक पुलिसकर्मी गुलाम रसूल शामिल हैं. संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत गठित समिति की सिफारिश पर तीनों को बर्ख़ास्त किया गया. यह राज्य की सुरक्षा के हित में बिना जांच किए ही किसी व्यक्ति को बर्ख़ास्त करने की अनुमति देता है.

(प्रतीकात्मक फाइल फोटो: पीटीआई)

बर्खास्त किए गए लोगों में कश्मीर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग का प्रोफेसर अल्ताफ़ हुसैन पंडित, सरकारी शिक्षक मोहम्मद मक़बूल हाज़म और एक पुलिसकर्मी गुलाम रसूल शामिल हैं. संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत गठित समिति की सिफारिश पर तीनों को बर्ख़ास्त किया गया. यह राज्य की सुरक्षा के हित में बिना जांच किए ही किसी व्यक्ति को बर्ख़ास्त करने की अनुमति देता है.

(फोटो: पीटीआई)

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार को आतंकी समूहों से कथित संबंध के मामले में तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया, जिसमें कश्मीर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर, एक शिक्षक और एक पुलिसकर्मी शामिल हैं. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.

संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत गठित समिति की सिफारिश पर तीनों को बर्खास्त किया गया. अनुच्छेद 311 (2)(सी) राज्य की सुरक्षा के हित में बिना जांच किए ही किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने की अनुमति देता है.

पिछल साल से अब तक जम्मू कश्मीर में विशेष प्रावधान का इस्तेमाल करके बर्खास्त किए गए सरकारी कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 37 हो गई है.

बर्खास्त किए गए लोगों में कश्मीर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग का प्रोफेसर अल्ताफ हुसैन पंडित, सरकारी शिक्षक मोहम्मद मकबूल हाजम और जम्मू-कश्मीर पुलिस का पुलिसकर्मी गुलाम रसूल शामिल हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, अनुच्छेद 311 (2) (सी) के तहत कथित आतंकी संबंधों के लिए सरकारी सेवा से हटाने के मामलों की जांच करने और सिफारिश करने के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा पिछले साल स्थापित एक विशेष टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुरूप उन्हें सेवा से हटा दिया गया है.

आरोप है कि हुसैन पंडित सक्रिय रूप से प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लाम से जुड़ा रहा है. वह आतंकवाद के प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान भी जा चुका है. पंडित वर्ष 1993 में सुरक्षा बलों द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले तीन साल तक ‘जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ का सक्रिय आतंकवादी रहा है.

अधिकारियों ने कहा कि पंडित जमात-ए-इस्लाम का लगातार सक्रिय सदस्य रहा और वह संगठन में आतंकियों की भर्ती का काम करता था.

अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2011 से 2014 के दौरान आतंकवादियों के मारे जाने पर पंडित पथराव कराने और हिंसक विरोध प्रदर्शन आयोजित कराने में शामिल रहा है, लेकिन वर्ष 2015 में पंडित कश्मीर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का एक कार्यकारी सदस्य बन गया.

अधिकारियों ने बताया कि उसने इस पद का इस्तेमाल विद्यार्थियों में अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए किया.

उन्होंनेे कहा कि इसी तरह कुपवाड़ा के सरकारी विद्यालय का शिक्षक मोहम्मद मकबूल हाजम भी लोगों को आतंकवाद के लिए उकसाता था.

अधिकारियों ने बताया कि हाजम उस भीड़ का हिस्सा था, जिसने सोगम में एक पुलिस थाने और अन्य सरकारी भवनों पर हमला कर दिया था. इसके अलावा वह शिक्षक होने के बावजूद हमेशा आतंकी गतिविधियों में शामिल रहता था.

अधिकारियों के अनुसार, पुलिसकर्मी रसूल आतंकवादियों के भूमिगत समर्थक के रूप में कार्य कर रहा था. वह आतंकियों और उनके समर्थकों को आतंकवादरोधी अभियानों के बारे में सूचना देने का भी काम करता था.

रसूल हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी मुश्ताक अहमद उर्फ औरंगजेब के भी संपर्क में था, जो अब पाकिस्तान जा चुका है.

बता दें कि जम्मू और कश्मीर सरकार ने ‘राज्य की सुरक्षा के हित’ के नाम पर औपचारिक जांच की जरूरत को दरकिनार करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया था. इसके पास बिना जांच के ही संबंधित अधिकारी को बर्खास्त करने का अधिकार होता है.

अप्रैल, 2021 में द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि यह कानून संदिग्ध कर्मचारियों को ‘उन आरोपों के संबंध में सुने जाने का उचित अवसर’ देता है, लेकिन खंड 2 (सी), जिसे जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा लागू किया गया है, जांच की इस शर्त को दरकिनार कर देता है कि यदि ‘राष्ट्रपति या राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में इस तरह की जांच करना उचित नहीं है.’

संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा मिला होने के चलते जम्मू और कश्मीर पर अनुच्छेद 311 लागू नहीं हुआ करता था.

मालूम हो कि पिछले साल सरकार ने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के पोते अनीस-उस-इस्लाम बर्खास्त कर दिया था, जो शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में एक शोध अधिकारी के रूप में कार्यरत थे.

मई 2021 में कुपवाड़ा जिले के शिक्षक इदरीस जान को राज्य की सुरक्षा के हित में बर्खास्त कर दिया था. यह राज्य में इस तरह का पहला मामला था.

इसके बाद हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख के दो बेटों सहित 11 कर्मचारियों को बीते साल जुलाई में को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इससे पहले अप्रैल-मई में प्रशासन ने दविंदर सिंह समेत सात कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था.

बीते साल सितंबर महीने में जम्मू कश्मीर में दो पुलिसकर्मियों सहित छह सरकारी कर्मचारियों को आतंकवादियों के साथ कथित संबंधों को लेकर बर्खास्त किया गया था.

ये सभी बर्खास्तगी जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा लागू किए गए उस नियम के बाद हुआ है, जो यह कहता है कि यदि कोई कर्मचारी या उनके परिवार का कोई सदस्य यूएपीए और जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत आरोपित लोगों के प्रति सहानभूति रखता है तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)