तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने ख़ुद को विस्फोट से उड़ा लिया था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हो गई थी. महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी. मामले के चारों दोषियों एजी पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सज़ा दी गई थी, जिसे बाद में उमक़ैद में बदल दिया गया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड मामले में दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया जो उम्रकैद की सजा के तहत 30 साल से अधिक समय से जेल में बंद है.
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया. पीठ में जस्टिस बीआर गवई भी शामिल हैं.
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु कैबिनेट ने सितंबर 2018 में प्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल को उनकी रिहाई की सिफारिश की थी.
पीठ ने कहा, ‘राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचार-विमर्श के आधार पर अपना फैसला किया था. अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए दोषी को रिहा किया जाना उचित होगा.’
संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार देता है, जिसके तहत संबंधित मामले में कोई अन्य कानून लागू न होने तक उसका फैसला सर्वोपरि माना जाता है.
इसमें यह भी कहा गया है कि राज्यपाल की ओर से अनुच्छेद 161 के तहत क्षमादान, सजा में छूट आदि के लिए शक्तियों के प्रयोग पर निर्णय लेने में कोई देरी न्यायिक समीक्षा के अधीन है.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे एजी पेरारिवलन को न्यायालय ने यह देखते हुए नौ मार्च को जमानत दे दी थी कि सजा काटने और पैरोल के दौरान उसके आचरण को लेकर किसी तरह की शिकायत नहीं मिली.
शीर्ष अदालत 47 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनाई कर रही थी, जिसमें उसने ‘मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी’ (एमडीएमए) की जांच पूरी होने तक उम्रकैद की सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पेरारीवलन ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्यपाल ने अभी तक राज्य सरकार की 9 सितंबर, 2018 को उसे छूट देने और तुरंत रिहा करने की सिफारिश पर कोई फैसला नहीं लिया है.
जैसे ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ी सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि राज्यपाल ने रिकॉर्ड पर सभी तथ्यों पर विचार करने और सभी प्रासंगिक दस्तावेजों को देखने के बाद दर्ज किया था कि ‘राष्ट्रपति इस अनुरोध से निपटने के लिए उपयुक्त सक्षम प्राधिकारी हैं.’
हालांकि, पेरारिवलन ने दलील दी थी कि वह पहले ही 30 साल जेल में बिता चुका है और राज्यपाल के फैसले को रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए.
बीते 9 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन को जमानत दे दी थी.
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था, ‘इस तथ्य को लेकर कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता ने 32 साल जेल में बिताए हैं. हमें सूचित किया गया है कि इससे पहले उन्हें तीन बार पैरोल पर रिहा किया गया है और उनके खिलाफ उस दौरान कोई शिकायत नहीं मिली.’
न्यायालय ने इस दलील का भी संज्ञान लिया था कि फिलहाल पेरारिवलन पैरोल पर ही हैं और सजा की लंबी अवधि के दौरान उसके अच्छे आचरण के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.
तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हो गई थी. महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी.
धनु सहित 14 अन्य लोगों की मौत हो गई थी. गांधी की हत्या देश में संभवत: पहली ऐसी घटना थी जिसमें किसी शीर्षस्थ नेता की हत्या के लिए आत्मघाती बम का इस्तेमाल किया गया था.
राजीवी गांधी हत्याकांड के सात दोषी नलिनी श्रीहरन, मुरुगन, संथान, एजी पेरारिवलन, जयकुमार, रॉबर्ट पायस और पी. रविचंद्रन हैं.
न्यायालय ने मई 1999 के अपने आदेश में चारों दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा बरकरार रखी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, 19 साल की उम्र में गिरफ्तार किए गए पेरारिवलन को मई 1999 में आठ वोल्ट की बैटरी खरीदने के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसका इस्तेमाल हत्यारों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या करने वाले बेल्ट बम को ट्रिगर करने के लिए किया था.
2014 में उसकी और दो अन्य, मुरुगन और संथन (दोनों श्रीलंकाई) की सजा को उनकी दया याचिकाओं के लंबित होने की अवधि का हवाला देते हुए उम्रकैद में बदल दिया गया था. न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा उनकी दया याचिकाओं के निपटारे में 11 साल की देरी के आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का निर्णय किया था.
इसके बाद साल 2015 में पेरारिवलन द्वारा पेश की गई एक दया याचिका पर राज्यपाल द्वारा विचार नहीं किया गया था. सितंबर 2018 में संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को क्षमा पर निर्णय लेने के लिए ‘उचित समझा’ गया था. तीन दिनों के भीतर तत्कालीन अन्नाद्रमुक सरकार ने सभी सात दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)