वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के संबंध में टिप्पणी करने के आरोप में गुजरात में एआईएमआईएम के नेता दानिश क़ुरैशी और नागपुर में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन पर इस बारे में कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद एक छात्र द्वारा हमला करने के मामला सामने आया है. वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है.
अहमदाबाद/नागपुर/लखनऊ/नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के संबंध में हिंदू देवताओं को लेकर ट्विटर पर कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में गुजरात में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता को अहमदाबाद पुलिस ने बुधवार को गिरफ्तार कर लिया.
अपराध शाखा के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) जेएम यादव ने कहा कि समाचार चैनल की बहस के दौरान पैनल में बैठने वाले दानिश कुरैशी ने अदालत के आदेशानुसार किए गए वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग के मिलने संबंधी खबरों को लेकर ट्विटर पर एक कथित टिप्पणी की थी, जिसकी कुछ लोगों द्वारा आलोचना किए जाने के बाद कुरैशी को गिरफ्तार किया गया.
गुजरात में एआईएमआईएम के प्रवक्ता कुरैशी ने मंगलवार शाम को ट्वीट किया, जिसके बाद हिंदू संगठनों ने उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अहमदाबाद पुलिस के समक्ष प्रतिवेदन दिया था.
एसीपी ने कहा, ‘साइबर दल के संज्ञान में आया कि कुरैशी के ट्विटर खाते से हिंदू देवी-देवताओं के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई. हमने ट्विटर खाते का तकनीकी विश्लेषण किया और कुरैशी को गिरफ्तार कर लिया.’
उन्होंने कहा कि कुरैशी से इस टिप्पणी के संबंध में पूछताछ की जा रही है.
यादव ने बताया कि कुरैशी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाले और सद्भाव बनाए रखने के प्रतिकूल काम करने वाले व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली) धारा 153 (ए) और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
भगवान शिव को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में नागपुर में व्यक्ति गिरफ्तार
एआईएमआईएम नेता के अलावा नागपुर पुलिस ने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि में भगवान शिव के बारे में फेसबुक पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में बुधवार को नागपुर के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि नागपुर के गणेश पेठ इलाके के रहने वाले और ऑडियो रिकॉर्डिंग की दुकान चलाने वाले चारुदत्त जिचकर को गिरफ्तार किया गया है.
उन्होंने बताया कि अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में किए जा रहे वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान शिवलिंग मिलने के दावों के संदर्भ में चारुदत्त की टिप्पणियों के खिलाफ शिकायत मिली थी.
अधिकारी ने कहा कि 35 वर्षीय आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295ए (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक आस्था का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने का जानबूझकर किया गया और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
प्रोफेसर ने की टिप्पणी, छात्र नेता ने किया हमला
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर के बारे में कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद खबरों में आए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन पर बुधवार को विश्वविद्यालय परिसर में एक छात्र ने हमला कर दिया.
प्रोफेसर रविकांत ने आरोप लगाया कि बुधवार दोपहर करीब एक बजे प्रॉक्टर कार्यालय के बाहर कार्तिक पांडे नामक छात्र नेता ने उन पर हमला किया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उसने उनके साथ गाली-गलौज की और जाति सूचक शब्द कहे, उसके बाद मारपीट भी की.
उन्होंने बताया कि उनके साथ चल रहे दो सुरक्षाकर्मियों ने हमलावर छात्र नेता को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. यह घटना बताती है कि उन्हें जान का लगातार खतरा बना हुआ है. इस मामले में पुलिस से शिकायत की गई है.
इस बीच, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता दुर्गेश श्रीवास्तव ने बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रोफेसर रविकांत पर हमला करने के आरोपी छात्र नेता कार्तिक पांडे को निलंबित कर दिया है.
कार्तिक पांडे समाजवादी पार्टी के आनुषांगिक संगठन समाजवादी छात्र सभा का पदाधिकारी भी है. इस घटना के बाद उसे संगठन से निकाल दिया गया है.
यह घटना भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की प्रदेश समिति के सदस्य अमन दुबे द्वारा प्रोफेसर रविकांत चंदन के खिलाफ भावनाएं भड़काने तथा आईटी अधिनियम की सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज कराने के एक हफ्ते बाद हुई है.
मालूम हो कि एबीवीपी के सदस्यों ने बीते 10 मई को लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रविकांत चंदन की उन टिप्पणियों को लेकर उन्हें धमकाया और उनके साथ मारपीट की थी, जो उन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद पर की थीं.
हिंदी समाचार मंच ‘सत्य हिंदी’ द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन बहस के दौरान प्रोफेसर चंदन के द्वारा की गईं टिप्पणियों के लिए हिंदुत्ववादी संगठन ने अपना गुस्सा जाहिर किया था.
रविकांत चंदन ने बहस के दौरान आंध्र प्रदेश के एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक नेता पट्टाभि सीतारमैया की किताब ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ की एक कहानी का हवाला दिया था, जिसमें उन कथित परिस्थितियों का वर्णन किया गया है, जिसके तहत विवादित स्थान पर एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और उसके स्थान पर एक मस्जिद बनाई गई थी.
1946 में प्रकाशित ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ सीतारमैया द्वारा लिखी गई एक जेल डायरी है, जब उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अहमदनगर में अंग्रेजों द्वारा कैद किया गया था और लेखक ने इसे ‘हास्य, बुद्धि और ज्ञान की पुस्तक’ के रूप में वर्णित किया था.
हालांकि, इस बहस की एक संपादित क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी गई, जिसमें रविकांत चंदन द्वारा किताब के बारे में दी गई यह जानकारी गायब कर दी गई थी.
जैसे ही क्लिप वायरल हुई विभिन्न हिंदू संगठनों के सदस्यों ने उनकी टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि प्रोफेसर, जो एक दलित हैं, ने हिंदू देवताओं का अपमान किया है. इस आक्रोश ने अंतत: एबीवीपी सदस्यों और अन्य लोगों ने विश्वविद्यालय परिसर में धावा बोल दिया, भड़काऊ नारे लगाए और उन्हें धमकी भी दी.
एबीवीपी के सदस्य अमन दुबे ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि प्रोफेसर रविकांत ने एक यूट्यूब चैनल पर परिचर्चा के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने इसके बाद उनके आवास के बाहर प्रदर्शन किया था. प्रोफेसर रविकांत ने भी पुलिस से इसकी शिकायत की थी.
डीयू के हिंदू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर के खिलाफ एफआईआर
दिल्ली पुलिस ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर के अंदर मिले शिवलिंग के बारे में सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के हिंदू कॉलेज के एक एसोसिएट प्रोफेसर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी.
अधिकारियों ने बताया कि दिल्ली के एक वकील द्वारा दायर शिकायत के आधार पर एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
संपर्क किए जाने पर इतिहास विषय के एसोसिएट प्रोफेसर ने दावा किया कि उनकी पोस्ट के बाद उन्हें जान से मार देने की धमकियां मिल रही हैं और सोशल मीडिया पर उन पर लगातार हमला किया जा रहा है. साथ ही, उन्होंने सरकार से सुरक्षा मुहैया करने की भी मांग की है.
अपनी शिकायत में अधिवक्ता विनीत जिंदल ने कहा कि रतन लाल ने हाल में ‘शिवलिंग के बारे में अपमानजनक, उकसाने वाला और भड़काऊ ट्वीट साझा किया था.’
उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के मुद्दे पर बयान (रतन लाल का) पोस्ट किया गया, जबकि यह एक बहुत संवेदनशील विषय है और मामला अदालत में लंबित है.
पुलिस उपायुक्त (उत्तरी) सागर सिंह कलसी ने कहा, ‘धर्म और धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करने के इरादे से फेसबुक पर जान-बूझकर की गई एक दुर्भावनापूर्ण पोस्ट के आरोप में लाल के खिलाफ मंगलवार (17 गई) रात एक शिकायत मिली थी.’
उन्होंने कहा कि इस सिलसिले में कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
डीसीपी ने कहा, ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर वैमनस्य को बढ़ावा देना) और धारा 295ए (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं को अपमानित कर भावनाएं आहत करने के इरादे से किए गए जान-बूझकर एवं दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत एक मामला दर्ज किया गया है.’
इस बीच एसोसिएट प्रोफेसर लाल ने कहा, ‘भारत में, यदि आप कुछ बोलते हैं, तो किसी व्यक्ति या अन्य की भावनाएं आहत होंगी. इसलिए, इसमें कुछ नया नहीं है. मैं एक इतिहासकार हूं और कई अवलोकन किए हैं. मैंने उन्हें लिखते वक्त अपने पोस्ट में बहुत ही संयमित भाषा का उपयोग किया, लेकिन फिर भी ऐसा हुआ. मैं अपना बचाव करूंगा.’
लाल ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक पत्र लिख कर एके-56 राइफल से लैस दो अंगरक्षक उन्हें मुहैया करने का अनुरोध किया है, क्योंकि उन्हें (लाल को) जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं.
उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘यदि यह संभव नहीं है तो उपयुक्त प्राधिकार को उन्हें एके-56 राइफल का लाइसेंस देने का निर्देश दिया जाए.’
मामले की सुनवाई विभिन्न अदालतों में जारी
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में वाराणसी की एक अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित करने के अनुरोध पर सहमति व्यक्त की. साथ ही वाराणसी की अदालत, जिसके समक्ष इस मामले की कार्यवाही लंबित है, से कहा कि इस मामले में तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाए.
मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि विभिन्न मस्जिदों को ‘सील’ करने के लिए देशभर में कई अर्जियां दायर की गई हैं और वाराणसी में ज्ञानवापी मामले में सुनवाई चल रही है.
उन्होंने पीठ से कहा कि उनकी एकमात्र आशंका यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद में ‘वजूखाना’ के पास एक दीवार को गिराने के लिए एक आवेदन दायर किया गया है और कार्यवाही जारी है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है.
शीर्ष अदालत ने 17 मई को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.
हालांकि मुस्लिम पक्ष ने शिवलिंग मिलने के दावे को गलत करार दिया है. ज्ञानवापी मस्जिद की रखरखाव करने वाली संस्था ‘अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी’ के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन ने कहा कि मुगल काल की बनी जितनी भी मस्जिदें हैं, उन सभी के वजू खाने में फव्वारा लगाया जाता था. उन्होंने कहा कि बाकी मस्जिदों की तरह ज्ञानवापी मस्जिद के फव्वारे में भी एक हरा पत्थर लगाया गया था, जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है.
मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.
उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.
इससे पहले वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर 17 मई को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.
गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह तथा अन्य ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.
इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.
इस बीच देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने देश में मुसलमानों की इबादतगाहों को कथित रूप से निशाना बनाए जाने पर सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की है.
बोर्ड ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी और उसके वकीलों को विधिक सहायता मुहैया कराने का फैसला किया है.
बोर्ड ने यह भी कहा है कि इबादतगाहों को लेकर निचली अदालतें जिस तरह से फैसले ले रही हैं, वह अफसोस की बात है. अदालतें अवाम को मायूस न करें क्योंकि इससे इंसाफ की जो आखिरी उम्मीद होती है वह कहीं खत्म न हो जाए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)