महिला विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप जीतने के बाद निकहत ने कहा, करिअर की बाधाओं ने मज़बूत बनाया

भारतीय मुक्केबाज़ निकहत ज़रीन ने अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखते हुए बीते गुरुवार को इस्तांबुल में विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में थाईलैंड की जितपोंग जुटामस को 5-0 से हराकर फ्लाइवेट (52 किग्रा) वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है. इस जीत के साथ 2019 एशियाई चैंपियनशिप की कांस्य पदक विजेता ज़रीन विश्व चैंपियन बनने वाली पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज़ बन चुकी हैं.

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Istanbul: Indian boxer Nikhat Zareen poses with her gold medal after winning Womens World Championship match against Thailands Jitpong Jutamas in the flyweight (52kg) final, in Istanbul on Thursday, May 19, 2022. (PTI Photo)(PTI05 19 2022 000298B)

भारतीय मुक्केबाज़ निकहत ज़रीन ने अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखते हुए बीते गुरुवार को इस्तांबुल में विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में थाईलैंड की जितपोंग जुटामस को 5-0 से हराकर फ्लाइवेट (52 किग्रा) वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है. इस जीत के साथ 2019 एशियाई चैंपियनशिप की कांस्य पदक विजेता ज़रीन विश्व चैंपियन बनने वाली पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज़ बन चुकी हैं.

महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के निकहत जरीन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप जीतने के बाद भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने कहा कि अपने करिअर में मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने से वह मानसिक रूप से मजबूत बनी, क्योंकि तब उन्होंने स्वयं से कहा कि ‘जो कुछ भी हो मुझे लड़ना है और अपना सर्वश्रेष्ठ देना है.’

तेलंगाना के निजामाबाद शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली इस मुस्लिम मुक्केबाज ने कहा कि मुक्केबाजी में अपनी जगह बनाने के लिए उन्हें कई बाधाओं को पार करना पड़ा.

निकहत ने अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखते हुए इस्तांबुल (तुर्की) में विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में बीते गुरुवार को थाईलैंड की जितपोंग जुटामस को 5-0 से हराकर फ्लाइवेट (52 किग्रा) वर्ग में स्वर्ण पदक जीता.

जरीन ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान प्रतिद्वंद्वियों पर दबदबा बनाए रखा और फाइनल में थाईलैंड की खिलाड़ी को सर्वसम्मत फैसले में 30-27, 29-28, 29-28, 30-27, 29-28 से हराया.

इस जीत के साथ 2019 एशियाई चैंपियनशिप की कांस्य पदक विजेता जरीन विश्व चैंपियन बनने वाली पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं.

छह बार की चैंपियन एमसी मैरीकॉम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006) और लेखा केसी इससे पहले विश्व खिताब जीत चुकी हैं.

भारत का चार साल में इस प्रतियोगिता में यह पहला स्वर्ण पदक है. पिछला स्वर्ण पदक मैरीकॉम ने 2018 में जीता था.

जरीन ने बाद में संवाददाताओं से कहा, ‘इन दो वर्षों में मैंने केवल अपने खेल पर ध्यान केंद्रित किया और मेरे खेल में जो भी कमियां थीं, उनमें सुधार करने की कोशिश की.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने मजबूत पक्षों पर काम किया. मैंने अपने कमजोर पक्षों पर काम किया. मैंने उन सभी पक्षों पर काम किया जिन पर मुझे काम करने की जरूरत थी और खुद को मजबूत बनाया.’

जरीन ने कहा, ‘मैंने अपने करिअर में जिन बाधाओं का सामना किया है, उन्होंने मुझे मजबूत बनाया. मैं इन सबके बाद मानसिक रूप से मजबूत बनी हूं. मेरा मानना है कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे लड़ना है और अपना सर्वश्रेष्ठ देना है.’

जरीन ने यह भी कहा कि ट्विटर पर ट्रेंड करना उनका सपना था. उन्होंने कहा, ‘क्या मैं ट्विटर पर ट्रेंड कर रही हूं? ट्विटर पर ट्रेंड करना और विश्व स्तर पर अपने देश के लिए कुछ हासिल करना मेरा हमेशा से सपना था.’

जरीन ने इस स्वर्णिम उपलब्धि से दो साल पहले तत्कालीन खेल मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर ओलंपिक क्वालीफायर के लिए ‘निष्पक्ष ट्रायल’ करवाने का आग्रह किया था.

अक्टूबर 2019 में पूर्व जूनियर विश्व चैंपियन निकहत जरीन ने खेल मंत्री किरेन रिजीजू को पत्र लिखकर भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) पर एमसी मैरीकॉम को वैश्विक खेलों में सीधा प्रवेश देने के लिए नियमों में फेरबदल का आरोप लगाया था.

अपने पत्र में उन्होंने अगले साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक क्वालीफायर्स 2020 के लिए भारतीय टीम का चयन करने से पहले एमसी मैरीकॉम के खिलाफ ट्रायल मुकाबला करवाने की मांग की थी.

इस कारण जरीन को सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’ किया गया था, जबकि एमसी मेरीकॉम ने कड़े शब्दों में पूछा था ‘कौन निकहत जरीन?’ जरीन इसके बाद ट्रायल में मेरीकॉम से हार गईं जिससे वह टोक्यों खेलों में जगह नहीं बना पाईं.

इससे पहले 2011 की जूनियर विश्व चैंपियन जरीन को कंधे की चोट से भी जूझना पड़ा, जिससे वह एक साल तक खेल से बाहर रहीं और 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेल और विश्व चैंपियनशिप में भाग नहीं ले पाईं.

जरीन ने कहा, ‘मैं 2017 में कंधे की चोट से परेशान रही, जिसके लिए मुझे आपरेशन करवाना पड़ा और मैं एक साल तक प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाई थी. मैंने 2018 में वापसी की लेकिन अपने चरम पर नहीं थी, इसलिए बड़ी प्रतियोगिताओं जैसे राष्ट्रमंडल खेल, एशियाड और विश्व चैंपियनशिप में खेलने से चूक गई.’’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैंने हार नहीं मानी और 2019 में वापसी के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैंने सभी प्रतियोगिताओं को एक अवसर के रूप में लिया है और मुझे खुद पर विश्वास था. उसी की वजह से मैं आज यहां हूं.’

जरीन अब राष्ट्रमंडल खेलों के ट्रायल की तैयारी करेंगी, जिसके लिए उन्हें अपना वजन घटाकर 50 किग्रा करना होगा. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रमंडल खेलों में 50 किग्रा वर्ग होता है, मैं अब इसके लिए तैयारी करूंगी.’

भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन इस्तांबुल में फ्लाइवेट (52 किग्रा) में महिला विश्व चैंपियनशिप मैच जीतने के बाद अपने कोच और भारतीय दल के अन्य सदस्यों के साथ.(फोटो: पीटीआई)

तेलंगाना की रहने वाली 25 वर्षीय मुक्केबाज ने पेरिस ओलंपिक के लिए तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन यह तय नहीं है कि वह किस भार वर्ग में खेलेंगी. उन्हें या तो 54 किग्रा या फिर 50 किग्रा में भाग लेना होगा.

जरीन ने इस बारे में कहा, ‘भार वर्ग बदलना मुश्किल होता है फिर चाहे आपको कम वजन वर्ग में भाग लेना हो या अधिक वजन वर्ग में. कम भार वर्ग से अधिक भार वर्ग में हिस्सा लेना अधिक मुश्किल होता है.’

जरीन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अगर मैं 50 किग्रा वर्ग में खेलती हूं तो इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. आम तौर पर मेरा वजन 51 किग्रा या 51.5 किग्रा रहता है. ऐसे में मेरा शरीर 50 किग्रा में अच्छा काम करेगा. इसलिए मैं अभी 50 किग्रा भार वर्ग में खेलना जारी रखूंगी.’

बृहस्पतिवार को हुए फाइनल मुकाबले में 25 साल की जरीन ने दमदार मुक्के बरसाते हुए जुटामस पर दबदबा बनाया.

जुटामस ने बेहतर शुरुआत की, लेकिन जरीन ने जल्द ही वापसी करते हुए अपना पलड़ा भारी कर दिया. पहले दौर में कड़ी टक्कर देखने को मिली लेकिन जरीन के मुक्के अधिक दमदार और दर्शनीय थे.

भारतीय मुक्केबाज ने पहला दौर आसानी से जीता, लेकिन जुटामस ने दूसरे दौर में मजबूत वापसी की. थाईलैंड की मुक्केबाज ने जरीन को अपने से दूर रखने में सफलता हासिल की और दूसरा दौर खंडित फैसले में जीता.

दोनों मुक्केबाजों के बीच अधिक अंतर नहीं था और ऐसे में स्ट्रैंथ और स्टेमिना अहम साबित हुआ. जरीन ने दाएं हाथ से दमदार मुक्के बरसाते हुए अंतिम दौर में मुकाबला अपने पक्ष में मोड़ दिया.

विजेता की घोषणा होने के बाद जरीन अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं. वह खुशी में कूदने लगी और अपने आंसू नहीं रोक पाई.

जुटामस के खिलाफ यह जरीन की दूसरी जीत है. भारतीय मुक्केबाज ने इससे पहले थाईलैंड की मुक्केबाज को 2019 में थाईलैंड ओपन में भी हराया था.

जरीन इस साल बेहतरीन फॉर्म में रही हैं. वह फरवरी में प्रतिष्ठित स्ट्रेंजा मेमोरियल में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं थी. जरीन के स्वर्ण पदक के अलावा मनीषा मोन (57 किग्रा) और पदार्पण कर रहीं परवीन हुड्डा (63 किग्रा) ने कांस्य पदक जीते.

टूर्नामेंट में भारत के 12 सदस्यीय दल ने हिस्सा लिया था. भारत के पदक की संख्या में पिछले टूर्नामेंट की तुलना में एक पदक की गिरावट आई, लेकिन चार साल बाद कोई भारतीय मुक्केबाज विश्व चैंपियन बनीं. मैरीकॉम ने 2018 में भारत के लिए पिछला स्वर्ण पदक जीता था.

महिला विश्व चैंपियनशिप में अब भारत के नाम 39 पदक हो गए हैं, जिसमें 10 स्वर्ण, आठ रजत और 21 कांस्य पदक शामिल हैं.

लड़का हो या लड़की उसे अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है: निकहत के पिता

उनकी शानदार जीत पर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में जमील ने कहा, ‘विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतना एक ऐसी चीज है, जो मुस्लिम लड़कियों के साथ-साथ देश की प्रत्येक लड़की को जीवन में बड़ा हासिल करने का लक्ष्य रखने के लिए प्रेरणा का काम करेगी. एक बच्चा, चाहे वह लड़का हो या लड़की, को अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है और निकहत ने अपना रास्ता खुद बनाया है.’

निकहत जरीन के पिता मोहम्मद जमील (मिठाई खाते हुए). (फोटो: पीटीआई)

निकहत पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर मोहम्मद जमील की चार बेटियों में से तीसरे नंबर की हैं. इस खेल में लड़कियों को शॉर्ट्स (छोटे पैंट) और ट्रेनिंग शर्ट पहनने की जरूरत होती है, जमील परिवार के लिए यह आसान नहीं था. हालांकि पिता के अलावा उनकी मां परवीन सुल्ताना ने उनके सपने का समर्थन किया.

जमील कहते हैं, ‘मैं अपनी बेटी की पढ़ाई और खेल का समर्थन करने के लिए निजामाबाद में आने का फैसला करने से पहले 15 साल तक सऊदी अरब में एक सेल्स असिस्टेंट के रूप में काम करता था.’

उन्होंने बताया, ‘निकहत की दो बड़ी बहनें डॉक्टर हैं, मुझे निकहत के प्रशिक्षण के साथ-साथ उसकी छोटी बहन, जो बैडमिंटन खेलती है, के प्रशिक्षण पर भी समय बिताना पड़ा.’

वे आगे कहते हैं, ‘जब निकहत ने हमें बॉक्सर बनने की अपनी इच्छा के बारे में बताया तो हमारे मन में कोई झिझक नहीं थी, लेकिन कभी-कभी, रिश्तेदार या दोस्त हमें बताते कि एक लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शॉर्ट्स पहनना पड़े. हालांकि लेकिन हम जानते थे कि निकहत जो चाहेगी, हम उसके सपने का समर्थन करेंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)