साल 2019 को हैदराबाद में 26 साल की महिला डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी. इस मामले में चार लोगों को हिरासत में लिया गया था, जिनकी कुछ दिन बाद पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी. मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पुलिसकर्मियों ने ‘जान-बूझकर’ गोली चलाई थी और पुलिस द्वारा रखा गया पूरा पक्ष ‘मनगढ़ंत’ व ‘अविश्वसनीय’ था.
हैदराबाद/नई दिल्ली: हैदराबाद में साल 2019 में एक महिला वेटनरी डॉक्टर (पशु चिकित्सक) से सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार संदिग्धों की एनकाउंटर में मौत के सिलसिले में गठित तीन सदस्यीय आयोग ने कहा है कि पुलिसकर्मियों ने ‘जानबूझकर’ गोली चलाई थी और पुलिस द्वारा रखा गया पूरा पक्ष ‘मनगढ़ंत’ व ‘अविश्वसनीय’ था.
अपनी रिपोर्ट में तीन सदस्यीय आयोग ने कहा है कि वह पूरे घटनाक्रम के पुलिसिया बयान पर विश्वास नहीं करता है, जिसके कारण चार आरोपियों की हत्या कर दी गई, जब उन्हें महिला डॉक्टर के सामूहिक बलात्कार और हत्या नौ दिन बाद 6 दिसंबर, 2019 की तड़के अपराध स्थल पर ले जाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता वाले आयोग ने सिफारिश की कि एनकाउंटर में शामिल 10 पुलिसकर्मियों पर हत्या (धारा 302) का मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि उनमें से प्रत्येक द्वारा की गई कार्रवाई का साझा मकसद संदिग्धों को मारना था.
आयोग ने यह भी पाया कि पुलिस ने जान-बूझकर इस तथ्य को दबाने का प्रयास किया है कि एनकाउंटर में मारे गए बलात्कार और हत्या के आरोपियों में से कम से कम तीन नाबालिग थे, जिनमें से दो 15 साल के थे.
आयोग में जस्टिस रेखा पी. सोंदूर बलदोटा और डॉ. डीआर कार्तिकेयन भी शामिल थे.
आयोग की ओर से कहा गया:
यह नहीं कहा जा सकता है कि पुलिस दल ने आत्मरक्षा में या मृतक संदिग्धों को फिर से गिरफ्तार करने के प्रयास में गोलीबारी की. रिकॉर्ड से पता चलता है कि सेफ हाउस से लेकर चटनपल्ली की घटना तक की पुलिस पार्टी का पूरा बयान मनगढ़ंत है. मृतक संदिग्धों के लिए पुलिस के हथियार छीनना नामुमकिन था और वे हथियारों का संचालन नहीं कर सकते थे. इसलिए पुलिस का पूरा बयान अविश्वसनीय है.
आयोग ने सिफारिश की कि 10 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) 34 (सामान्य इरादे), 201 (सबूत गायब करना, झूठी जानकारी प्रदान करना) के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
इन 10 पुलिसकर्मियों में वी. सुरेंद्र , के. नरसिम्हा रेड्डी, शैक लाल मधर, मोहम्मद सिराजुद्दीन, कोचेरला रवि, के. वेंकटेश्वरलू, एस. अरविंद गौड़, डी. जानकीराम, आर. बालू राठौड़ और डी. श्रीकांत शामिल हैं.
27 नवंबर 2019 को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के बाहरी इलाके शादनगर के चटनपल्ली में 26 साल की महिला डॉक्टर के बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी. इस मामले में चार लोगों (मोहम्मद आरिफ, चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलु, जोलू शिवा और जोलू नवीन) को हिरासत में लिया गया था.
मामले में छह दिसंबर 2019 को चारों आरोपियों की मौत के बाद मीडिया ने हैदराबाद की साइबराबाद के तत्कालीन पुलिस आयुक्त वीसी सज्जनार की प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रसारण किया था.
इस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन पुलिस आयुक्त ने अपराध के ग्राफिक सीक्वेंस का ब्योरा देते हुए पुलिस एनकाउंटर में चारों आरोपियों के मारे जाने का दावा किया था. पुलिस का दावा था कि सभी आरोपी भागने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस फायरिंग में मारे गए, जिसे लेकर लोगों ने उनकी सराहना भी की थी.
एनकाउंटर स्थल के आसपास के गांवों ने ‘त्वरित न्याय’ की बात करते हुए पुलिसकर्मियों पर फूल बरसाए थे.
महिला डॉक्टर की बलात्कार और हत्या की उस समय हैदराबाद में एक मजबूत प्रतिक्रिया पैदा हुई थी और संदिग्धों की एनकांउटर में मौत की खबर का पुलिसिया बयान बहुत विश्वसनीय न दिखने के बावजूद राजनेताओं द्वारा इसका स्वागत किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारी राय में आरोपियों को जान-बूझकर मौत के घाट उतारने के इरादे और इस सोच के साथ गोली मार दी गई थी कि गोली लगने से संदिग्धों की मौत हो जाएगी.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मृतकों को सभी चोटें कमर के ऊपर के महत्वपूर्ण अंगों पर हैं और गोली के प्रवेश के सभी घाव सामने की तरफ और बाहर निकलने के घाव पीछे की तरफ हैं.
आगे क्या प्रक्रिया होनी चाहिए, इसके बारे में कुछ सिफारिशें करते हुए आयोग ने कहा, ‘जिस तरह मॉब लिंचिंग अस्वीकार्य है, उसी तरह तत्काल न्याय का कोई विचार भी अस्वीकार्य है. हर समय कानून का शासन कायम होना चाहिए. अपराध के लिए सजा केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा होनी चाहिए.’
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तेलंगाना सरकार के दस्तावेजों को बंद लिफाफे में रखने के अनुरोध को खारिज किए जाने के कुछ समय बाद शुक्रवार (20 मई) को आयोग की 387 पन्नों की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘हम आयोग सचिवालय को दोनों पक्षों को रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश देते हैं.’ न्यायालय ने मामले को आगे की कार्रवाई के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया.
पीठ ने कहा, ‘यह (रिपोर्ट) एनकाउंटर मामले से संबद्ध है. इसमें यहां रखने जैसी कोई बात नहीं है. आयोग ने किसी को दोषी पाया है. हम मामले को हाईकोर्ट के पास भेजना चाहते हैं. हमें मामले को वापस हाईकोर्ट के पास भेजना पड़ेगा, हम इस मामले की निगरानी नहीं कर सकते. एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी गई है. सवाल यह है कि क्या उचित कार्रवाई की जाए. उन्होंने कुछ सिफारिशें की हैं.’
मालूम हो कि 26 वर्षीय महिला डॉक्टर 27 नवंबर, 2019 की शाम को हैदराबाद के गचीबौली में एक क्लीनिक के लिए अपने घर से निकली थीं. टोल प्लाजा के पास अपने दोपहिया वाहन पार्क करने के बाद वह क्लीनिक के लिए एक टैक्सी ले लिया था. रात 9:22 बजे उन्होंने अपनी छोटी बहन को फोन कर बताया था कि उनकी बाइक का पिछला टायर पंक्चर हो गया है और उन्हें कुछ ट्रक कर्मचारियों द्वारा मदद की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था.
हालांकि, वह चिंतित लग रही थीं और संदिग्ध दिखने वाले पुरुषों के बीच अकेले होने का डर भी व्यक्त किया था. उनकी बहन ने उन्हें टोल प्लाजा पर चलने और वहां इंतजार करने की सलाह दी थी, लेकिन वह वहां जाने से हिचकिचा रही थीं. करीब छह मिनट के बाद कॉल कट गई. इसके बाद से उनका फोन स्विच ऑफ हो गया था.
28 नवंबर 2019 की सुबह शादनगर थाना क्षेत्र के चटनपल्ली गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर एक अंडरपास से महिला डॉक्टर का जला हुआ शव बरामद किया गया था.
इसके अगले दिन (29 नवंबर 2019) साइबराबाद पुलिस आयुक्त ने घोषणा की थी कि मामले में चार लोगों- मोहम्मद आरिफ, जोलू शिवा, जोलू नवीन और चिंताकुंटा चेन्नाकेसावुलु – को महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है.
साइबराबाद पुलिस ने दावा किया कि 27 नवंबर 2019 को महिला पशु चिकित्सक का अपहरण कर उससे दुष्कर्म किया गया तथा बाद में उसकी हत्या कर दी गयी. पुलिस ने दावा किया था कि आरोपियों ने महिला का शव जला दिया था.
चार संदिग्धों को पुलिस ने 6 दिसंबर 2019 को हैदराबाद के चटनपल्ली में उसी राजमार्ग पर कथित एनकाउंटर में मार गिराया था, जहां 26 वर्षीय महिला डॉक्टर का जला हुआ शव मिला था.
पुलिस चारों आरोपियों को मौके पर पशु चिकित्सक का फोन, घड़ी और मामले से संबंधित अन्य सामान की बरामदगी के लिये लेकर गई थी.
साइबराबाद पुलिस ने कहा था कि इस दौरान दो आरोपियों ने मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों के हथियार छीनने के बाद पुलिस पर गोलियां चलाईं, इसके अलावा बाद में पत्थरों और लाठियों से हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप दो पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके बाद पुलिस को जवाबी कार्रवाई करते हुए गोली चलानी पड़ी.
चारों संदिग्धों के परिजनों ने ‘फर्जी’ एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी. जोलू शिवा के पिता ने कहा, ‘हमने पहले आयोग को बताया था कि वे एक फर्जी एनकाउंटर में मारे गए थे. हम कहते रहे हैं कि यह एक फर्जी एनकाउंटर थी.’
आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि दो संदिग्धों के पुलिस पर कीचड़ और मिट्टी फेंकने, पुलिस से हथियार छीनने और अंधाधुंध गोलीबारी करने के बारे में पुलिस के बयान में काफी विसंगतियां हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपियों के साथ अपराध स्थल पर जाने वाले पुलिस अधिकारी उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे.
आयोग के अनुसार, ‘अगर अपने कार्यों या चूक से वे अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में विफल रहे, तो मृतक संदिग्धों की मौत का कारण बनने का उनका सामान्य इरादा स्थापित होता है.’
12 दिसंबर, 2019 को तेलंगाना हाईकोर्ट में मामले की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय आयोग का गठन कर छह महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने को कहा था, जिसकी समयसीमा बाद में बढ़ा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस सिरपुरकर के अलावा आयोग में बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिर रेखा सोंदुर बलदोता और सीबीआई के पूर्व निदेशक डीआर कार्तिकेयन शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)