प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि तकनीकी समिति पेगासस स्पायवेयर प्रभावित मोबाइल फोन की जांच कर रही है और उसने पत्रकारों समेत कुछ लोगों के बयान भी दर्ज किए हैं. शीर्ष अदालत कथित जासूसी मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाली पत्रकारों और मीडिया संगठनों द्वारा दाख़िल की गईं याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कथित पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए उसके द्वारा नियुक्त तकनीकी एवं निगरानी समितियों के रिपोर्ट सौंपने की समय-सीमा शुक्रवार को बढ़ा दी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि इजरायली स्पायवेयर पेगासस के सिलसिले में 29 ‘प्रभावित’ मोबाइल फोन की जांच की जा रही है और यह प्रक्रिया चार हफ्ते (20 जून तक) में पूरी हो जानी चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि तकनीकी समिति स्पायवेयर को लेकर प्रभावित मोबाइल फोन की जांच कर रही है और उसने पत्रकारों समेत कुछ लोगों के बयान भी दर्ज किए हैं.
पीठ ने कहा कि ‘प्रभावित उपकरणों’ की जांच के लिए मानक संचालन प्रक्रिया को भी अंतिम रूप दिया जाएगा.
न्यायालय ने कहा कि तकनीकी समिति की जांच मई के अंत तक पूरी हो सकती है और फिर पर्यवेक्षी न्यायाधीश (Supervisory Judge) पीठ के विचार के लिए एक रिपोर्ट तैयार करेंगे.
पीठ के सदस्यों में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं.
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘29 मोबाइल फोन की जांच की जा रही है. उन्होंने आपत्तियां आमंत्रित की हैं और अभी भी मोबाइल फोनों की जांच की जा रही है. तकनीकी समिति ने 29 उपकरणों को जब्त कर कुछ की जांच की है. एक बार जब तकनीकी समिति पर्यवेक्षी न्यायाधीश को एक रिपोर्ट सौंपती है, तो न्यायाधीश अपनी टिप्पणियों को भी इसमें जोड़ देंगे. इसलिए हम समय बढ़ाना उचित समझते हैं. हम तकनीकी समिति को फोन की जांच में तेजी लाने का निर्देश देते हैं.’
पीठ ने एक अंतरिम रिपोर्ट मिलने का जिक्र करते हुए कहा कि तकनीकी समिति, जिसने स्पायवेयर की जांच के लिए 29 मोबाइल फोन प्राप्त किए हैं, ने इस उद्देश्य (जांच) के लिए अपना सॉफ्टवेयर विकसित किया है और कुछ सरकारी एजेंसियों तथा पत्रकारों सहित व्यक्तियों को नोटिस जारी किए हैं.
न्यायालय ने कहा, ‘अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए वक्त देने का अनुरोध किया गया है. अब यह प्रक्रिया के तहत है. हम उन्हें वक्त देंगे.’
पीठ ने कहा, ‘तकनीकी समिति की प्रक्रिया चार हफ्तों में पूरी हो जानी चाहिए और पर्यवेक्षी न्यायाधीश को सूचित किया जाना चाहिए. वह उसके बाद अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे. (सुनवाई) जुलाई में किसी तारीख के लिए सूचीबद्ध की जाए.’
हालांकि, पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा किए गए अनुरोध से जुड़ा कोई आदेश नहीं जारी किया, जो कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हो रहे हैं. उन्होंने अंतरिम रिपोर्ट पक्षकरों को उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है.
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रिपोर्ट अंतरिम है, जिसे इस समय सार्वजनिक किए जाने की जरूरत नहीं है.
शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2021 में इजरायली स्पायवेयर के कथित उपयोग की जांच के आदेश दिए थे.
समिति का गठन पिछले साल 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में तब हुआ था जब शीर्ष अदालत ने पाया कि केंद्र सरकार द्वारा पेगासस के इस्तेमाल से इनकार की अनुपस्थिति में अदालत के पास मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति के गठन के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.
इस समिति में जस्टिस रवींद्रन के अलावा साल 1976 बैच के पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/ अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग की संयुक्त तकनीकी समिति में उप-समिति के अध्यक्ष संदीप ओबेरॉय शामिल हैं.
वहीं, एक तीन सदस्यीय तकनीकी समिति भी है जो कि सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त समिति को जांच में सुझाव देती है, इसमें साइबर सुरक्षा और डिजिटल फॉरेंसिक्स के प्रोफेसर और गुजरात के गांधीनगर में स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के डीन डॉ. नवीन कुमार चौधरी, केरल के अमृता विश्व विद्यापीठम में इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रभारन पी. और बंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग के संस्थान अध्यक्ष एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं.
शीर्ष अदालत को इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाली कई याचिकाएं मिली हैं. कुछ याचिकाकर्ताओं में अधिवक्ता एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, द हिंदू अखबार समूह के निदेशक एन. राम, एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, इप्सा शताक्षी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आबिदी और प्रेम शंकर झा शामिल हैं.
मालूम हो कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने 2021 में पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये दुनियाभर में नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस कड़ी में 18 जुलाई 2021 से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
इस एक पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
यह खुलासा सामने आने के बाद देश और दुनियाभर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था.
बता दें कि एनएसओ ग्रुप मिलिट्री ग्रेड के इस स्पायवेयर को सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)