ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा अपने वकील के माध्यम से एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें आगे बढ़ने से पहले अदालत में लंबित मुक़दमों की स्थिरता (मुक़दमा चलाने लायक है या नहीं) पर निर्णय लेने की मांग की गई थी. अदालत ने मंगलवार तक के लिए अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
वाराणसी: वाराणसी के उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद-शृंगार गौरी मामले में जिला जज एके विश्वेश की अदालत ने सोमवार को इस बात को लेकर अपना फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रखा कि किस मामले पर पहले सुनवाई होगी.
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद-शृंगार गौरी मामले में दोनों पक्षों की ओर से कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. किस याचिका पर पहले सुनवाई होगी, जिला न्यायाधीश एके विश्वेव की अदालत इस पर मंगलवार को फैसला सुनाएगी.
दरअसल ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा अपने वकील के माध्यम से एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें आगे बढ़ने से पहले अदालत में लंबित मुकदमों की स्थिरता (मुकदमा चलाने लायक है या नहीं) पर निर्णय लेने की मांग की गई थी.
कमेटी के अधिवक्ता मोहम्मद तौहीद खान ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने अदालत में याचिका दायर करके कहा है कि यह मुकदमा चलाने लायक नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाए.
जिला न्यायाधीश को कार्यवाही स्थानांतरित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद वाराणसी की अदालत ने इस मामले को उठाया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जिला शासकीय अधिवक्ता महेंद्र प्रसाद पांडेय ने कहा, ‘विपक्षी दलों ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर आवेदन पर आपत्ति जताई है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. मंगलवार को अदालत अपनी कार्रवाई के बारे में फैसला करेगी.’
सोमवार को दोपहर करीब 2:15 बजे शुरू हुई सुनवाई के दौरान सिर्फ आवेदकों और उनके वकीलों को अदालत कक्ष में प्रवेश करने दिया गया.
इसके अलावा ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग के नियमित पूजा अर्चना के लिए अदालत में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने सोमवार को याचिका दायर की.
तिवारी ने कहा, ‘मैं बाबा विश्वनाथ की तरफ से आया हूं. मैंने आज एक याचिका दाखिल कर अदालत से बाबा के नियमित दर्शन-पूजन की मांग की है. मुझे बाबा के राग, भोग, सेवा और भक्तों को दर्शन की अनुमति दी जाय.’
वहीं, जिला शासकीय अधिवक्ता महेंद्र पांडेय की ओर से परिसर में स्थित मानव निर्मित तालाब के पानी में से मछलियों को हटाने और वजूखाने की पाईप लाइन को स्थानांतरित करने की मांग को लेकर याचिका बीते 17 मई को दाखिल की गई थी. पांडेय की यचिका पर भी अदालत द्वारा सुनवाई होनी है.
इस बीच, समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने दावा किया कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में कोई ‘शिवलिंग’ नहीं था और आगामी 2024 के संसदीय चुनावों से पहले भावनाओं को भड़काने के लिए इसके बारे में अफवाह फैलाई गई थी.
ये सभी हालात 2024 के चुनावों के कारण पैदा हो रहे हैं। अगर इतिहास में जाएं तो ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ और कुछ नहीं था। यह सब गलत है।’
संभल से सांसद बर्क ने समाजवादी पार्टी कार्यालय के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘ये सभी हालात 2024 के चुनावों के कारण पैदा हो रहे हैं. अगर इतिहास में जाएं तो ज्ञानवापी मस्जिद में न तो ‘शिवलिंग’ और न ही कुछ और था. यह सब गलत है.’
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 20 मई को ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा दायर दिवानी वाद की सुनवाई वाराणसी के दिवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) के पास से जिला न्यायाधीश (वाराणसी) को स्थानांतरित कर दी थी.
न्यायालय ने कहा था कि मामले की जटिलता और संवेदनशीलता को देखते हुए कहा कि बेहतर होगा कि एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी इसे देखे.
गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह समेत पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.
इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.
शीर्ष अदालत ने बीते 17 मई को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.
बीते अप्रैल माह में वाराणसी की एक अदालत ने इस स्थान का सर्वेक्षण और वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. इस पर मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी, लेकिन उसी महीने इसे खारिज कर दिया गया. अदालत ने कोर्ट कमिश्नर के पक्षपाती होने का दावा करने वाली कमेटी की याचिका भी खारिज कर दी थी.
वाराणसी की अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर 17 मई को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.
बीते 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी की अदालत के हालिया आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली एक अपील पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.
मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.
उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.
इसी दौरान वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को बीते 17 मई को पद से हटा दिया था.
अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए गए अजय कुमार मिश्रा को उनके एक सहयोगी द्वारा मीडिया में खबरें लीक करने के आरोप में पद से हटा दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)