मुग़ल शब्द को भारतीय मुसलमानों को इंगित करने वाला प्रॉक्सी बना दिया गया है. पिछले आठ सालों में, इस समुदाय को- आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि शारीरिक तौर पर- निशाना बनाना न सिर्फ उन्मादी गिरोहबंद भीड़, बल्कि सरकारों की भी शीर्ष प्राथमिकता बन गई है.
हिंदुत्व के धर्मांध दिमागों में मुग़लों की खास जगह है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक मौकों पर 1,200 सालों की गुलामी का जिक्र किया है.
2014 में उनकी सरकार के बनने के बाद दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद ने औरंगजेब रोड का नाम बदल कर अब्दुल कलाम आजाद रोड करने- एक क्रूर मुस्लिम के नाम को एक देशभक्त मुस्लिम के नाम से बदलने- की मांग की और स्थानीय नगर निगम ने उनकी इच्छा का सम्मान करने में देर नहीं लगाई.
उसके बाद हालांकि मुग़लों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और पार्टी और इसकी आभासी सेना ने सीधे भारत के मुसलमानों को ही अपने निशाने पर ले लिया.
मुग़ल शब्द भारतीय मुसलमानों का संकेत करने वाला (प्रॉक्सी) बन गया. पिछले आठ सालों में, इस समुदाय को- आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि शारीरिक तौर पर- निशाना बनाना न सिर्फ उन्मादी गिरोहबंद भीड़, बल्कि सरकारों की भी शीर्ष प्राथमिकता बन गई है.
अब एक बार फिर मुग़ल मुख्य मंच पर आ गए हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस, जो एक लॉ डिग्रीधारी हैं, ने यह दावा किया है कि 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने वालों में वे भी शामिल थे.
सामान्य तौर पर नेता ज्यादा निवेश लाने या अपनी आर्थिक या सामाजिक कल्याण की योजनाओं को उपलब्धि के तौर पर गिनाते हैं. यह शायद पहली बार है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री एक घोषित तौर पर गैरकानूनी कृत्य, जिसने भारत के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को तार-तार कर दिया, में अपनी संलिप्तता के बारे में इतने गर्व के साथ बता रहा है.
फड़णवीस के बयान ने उनके और शिवसेना के बीच जबानी जंग को जन्म दिया है. गौरतलब है कि शिवसेना भी मस्जिद गिराने में अपनी सहभागिता पर गर्व करती है. उद्धव ठाकरे ने घोषणा की कि अगर स्थूलकाय (थुलथुल) फड़णवीस वास्तव में मस्जिद के गुंबद पर चढ़े होंगे, तो मस्जिद खुद-ब-खुद ही गिर गई होगी!
इसी बीच, भाजपा के एक महानुभाव ने राज्य सरकार से मुगलकालीन गांवों का नाम बदलने के लिए कहा है. उन्हें जाहिर तौर पर इस तथ्य से कोई लेना देना नहीं है कि इनमें से कई अक्सर उन लोगों के नामों पर रखे गए थे, जिन्हें भूमि अनुदान दी गई थी.
उत्तर प्रदेश में स्थानीय भाजपा के एक अधिकारी ने कोर्ट से शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल के प्रेम स्मारक के तौर पर बनाए गए- ताजमहल के सीलबंद कमरों को खुलवाने की दरख्वास्त की, ताकि उनमें हिंदू मूर्तियों को खोजा जा सके. इलाहाबाद ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
किसी से पीछे न रहने की होड़ में कई मिथकीय उपन्यासों के लेखक अमीश त्रिपाठी ने यह दावा किया कि ‘मुग़ल विदेशी थे और वे भारतीय नहीं, बल्कि चीनियों की तरह दिखते‘ थे. इस बेवकूफी भरे बयान को कई आधारों से चुनौती दी जा सकती है.
Amish Tripathi is neither a historian nor a legal expert. He is a former banker who writes fantasy novels. What value do NDTV viewers get from hearing his views on this absolutely unnecessary issue? https://t.co/s1MfcwYve5
— Uday Rana (@UdaySRana) May 17, 2022
सबसे पहली बात, ‘भारतीय रूप’ जैसी किसी चीज का वजूद नहीं है- यही भारत की विविधता की खूबसूरती है.
वे बस उत्तर-पूर्व के लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रह को हवा दे रहे हैं, जिन्हें वैसे ही अपने साथी भारतीयों के हाथों भेदभाव का सामना करना पड़ता है. दूसरी बात, हुमायूं के बाद सभी मुगलों का जन्म हिंदुस्तान में हुआ था और कम से कम अकबर की एक राजपूत पत्नी थी, जिसका बेटा जहांगीर था.
वे पूरी तरह से भारत में घुल-मिल गए और अगर इस्लाम का प्रचार करने पर उनका बहुत ज्यादा जोर होता, तो भारतीयों की कहीं ज्यादा बड़ी संख्या मुसलमान होती.
और सबसे बढ़कर, अगर त्रिपाठी के विकृत तर्क के हिसाब से दूसरे देशों में रह रहे भारतीय मूल के लाखों लोगों को वापस भारत जाने के लिए कहा जा सकता है. उनमें से कई, मसलन आयरलैंड में लियो वराडकर और ब्रिटेन में ऋषि सुनक शीर्ष राजनीतिक पदों पर हैं और सत्या नडेला और सुंदर पिचई बड़ी तकनीकी कंपनियों को चला रहे हैं.
त्रिपाठी इतिहासकार नहीं हैं, लेकिन उन्हें भी यह पता होगा कि मुगल पूरी तरह से भारतीय हो गए- उस समय के हिसाब से ऐसा होने का जो भी मतलब रहा हो- और संस्कृति, स्थापत्य और समाज में उनके योगदान ने हमें समृद्ध किया है.
वे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा लंदन में संचालित नेहरू सेंटर के प्रमुख हैं. यह एक सरकारी नौकरी है. यह तथ्य कि एनडीटीवी जैसा एक प्रमुख न्यूज चैनल, जिसे अपनी पत्रकारिता पर गर्व है, ने उन्हें मंच दिया और उनके झुकाव से भलीभांति परिचित होने के बावजूद उनकी बातों पर कोई प्रतिवाद नहीं किया, यह हमारे सार्वजनिक संवाद के गिरते स्तर के बारे मे काफी कुछ बताता है.
चारों तरफ से मुगलों पर हमलावर हो रही आवाज ये संकेत देते हैं यह एक बार फिर सांप्रदायिक पारे को चढ़ाने की एक सोची-समझी रणनीति है.
एक राजनीतिज्ञ, भाजपा की एक स्थानीय इकाई का एक अधिकारी, और अंग्रेजी में लिखने वाला एक लेखक एक साथ मिलकर कई तबकों तक पहुंच सकते हैं और हमें टेलीविजन चैनलों को नहीं भूलना चाहिए, जो नफरत के संदेशों को दूर-दूर तक पहुंचाते हैं. यह सब महज एक संयोग नहीं हो सकता है.
निश्चित तौर पर गुजरात में आने वाला चुनाव इसका एक कारण हो सकता है. इस राज्य के मुसलमानों को पहले ही हाशिये पर डाल दिया गया है और वहां के हिंदू नरेंद्र मोदी और भाजपा के बड़े समर्थक हैं.
कहा जाता है कि महमूद गजनी ने आधुनिक गुजरात के समुद्र तट पर बने सोमनाथ मंदिर का ध्वंस किया और वहां से बहुत सी संपत्ति लूट कर ले गया. यह कहानी, इसकी ऐतिहासिक सत्यता चाहे जो भी हो, न सिर्फ राज्य के बल्कि अन्य जगहों के लोगों के दिमाग में भी धंसी हुई है.
जैसा कि सबको मालूम है, महमूद एक मुग़ल नहीं था और उसका हमला 11वीं सदी में यानी बाबर के भारत की धरती पर पांव रखने से काफी पहले हुआ था. लेकिन जब मकसद मुसलमानों को बुरा साबित करना हो, तो कुछ सदियां क्या मायने रखती हैं?
आज के समय में ‘मुग़ल’ शब्द आधुनिक मुस्लिमों को नीचा दिखाने और उन पर हमला करने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला एक सर्वसमावेशी शब्द बन गया है. ‘बिरयानी’ और अन्य साफ तौर पर ‘भद्दे शब्दों की तरह. ‘वे’ ही उन ऐतिहासिक राजाओं के कथित पापों और अपराधों की कीमत चुकाते हैं, जिनके साथ उनका कोई ताल्लुक नहीं है.
इस सांकेतिक प्रयोग को न सिर्फ हिंदुत्व ब्रिगेड वाले, बल्कि अन्य लोग भी अच्छी तरह से समझते हैं. और भाजपा को उम्मीद है कि दूसरे हिंदू भी संबंधों के इस तार को जोड़ लेंगे और इस तरह से उन्हें चुनाव में अच्छा फायदा पहुंचेगा.
मुस्लिम विरोधी प्रलाप का सतत शोर मीडिया, वॉट्सऐप और यहां तक कि दोस्तों के बीच अनौपचारिक बातचीतों में लोगों तक पहुंच रहा है और यह और कुछ नहीं, तो कम से कम अन्यथा तार्किक तरीके से सोचने वाले के मन में भी संदेह का बीज बोने का काम करता है, जो फिर धीरे-धीरे इन बातों पर विश्वास करने लगता है कि इनमें से कुछ आरोपों में जरूर कुछ सच्चाई होगी.
लोगों की बैठकों में पूछा जाने वाला एक बेहद आम सवाल है, ‘उदारवादी और बुद्धिजीवी मुसलमान अपने समुदाय के कट्टरपंथ की भर्त्सना क्यों नहीं करते हैं?’ कितने भी प्रमाण दिए जाएं, इन-नए संदेहवादियों की शंका का समाधान नहीं किया जा सकता है.
और इन सबका लेना-देना सिर्फ चुनावों से नहीं है. यह व्यापक हिंदू राष्ट्र की परियोजना का एक हिस्सा है. भाजपा और इसके वैचारिक मोर्चे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए मुसलमान और उनकी संस्कृति और उपस्थिति एक अभिशाप है.
सारी महानता, ‘हिंदू संस्कृति’, इसका जो भी अर्थ हो, में ही निहित है. हिंदुत्व के प्रचारकों के लिए यह जरूरी है कि मुग़लों और उनके विस्तार के तौर पर मुस्लिमों को घुसपैठिए और बाहरी के तौर पर देखा जाए, जिन्होंने हिंदू सभ्यता में खलल डालने का काम किया.
उनके लिए जरूरी है कि पूरे समुदाय पर विधर्मी का ठप्पा लगा दिया जाए. इतिहास इस सिद्धांत के पक्ष में गवाही नहीं देता है- लेकिन इतिहास हिंदुत्ववादी दिमाग का मजबूत पक्ष नहीं है. वह तो फर्जी वृत्तांतों के समानांतर ब्रह्मांड में ही विचरण करता है.
मुस्लिम और इस्लाम और इसके एक सिरे के तौर पर मुग़लों को खलनायकों के तौर पर देखा जाता है और उनके लिए यही आखिरी सच्चाई है. भाजपा ने मुगलों के तौर पर एक खजाने की खोज कर ली है, मिथक, दंतकथा और असंतोष के बल पर जिसका दोहन आनेवाले दशकों तक किया जा सकता है.
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