शिवलिंग पर टिप्पणी: जम्मू कश्मीर के मानवाधिकार कार्यकर्ता वक़ार एच. भट्टी गिरफ़्तार

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ होने के दावे पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल को बीते दिनों गिरफ़्तार किया गया था. हालांकि, उन्हें ज़मानत मिल गई थी. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन के ख़िलाफ़ भी ऐसी ही टिप्पणी करने के लिए बीते 10 मई को एफ़आईआर दर्ज की गई थी.

वकार एच. भट्टी. (फोटो साभार: फेसबुक)

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ होने के दावे पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल को बीते दिनों गिरफ़्तार किया गया था. हालांकि, उन्हें ज़मानत मिल गई थी. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन के ख़िलाफ़ भी ऐसी ही टिप्पणी करने के लिए बीते 10 मई को एफ़आईआर दर्ज की गई थी.

वकार एच. भट्टी. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू: ‘शिवलिंग’ पर किए गए ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप पुलिस ने जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती जिले राजौरी के सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता वकार एच. भट्टी को बीते शुक्रवार को बारामुला जिले से गिरफ्तार किया है.

भट्टी के ट्वीट के बाद लोगों ने उनकी तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी. यह ट्वीट बाद में हटा दिया गया था.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘उनके ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी, इस संबंध में एफआईआर दर्ज की गई.’

उन्होंने कहा कि भट्टी को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था.

सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया मिलने पर भट्टी ने एक अन्य ट्वीट के जरिये अपनी बात स्पष्ट करनी चाही और कहा, ‘बाद के एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने जीवन में कभी किसी धर्म का अनादर नहीं करता और न ही करूंगा, क्योंकि मैं हर धर्म का सम्मान करता हूं. जो लोग मेरे खिलाफ एफआईआर की मांग कर रहे हैं, वे असल में राजनीति कर रहे हैं और कुछ नहीं.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार नहीं है जब भट्टी को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इससे पहले उन्हें जम्मू कश्मीर के सुंदरबनी इलाके में अगस्त 2020 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के एक साल का जश्न होने से पहले पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

जुलाई 2018 में उन्हें ग्वालियर रेलवे स्टेशन के बाहर एक वीडियो शूट करने के लिए मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जिसमें उन्होंने आरएसएस नेताओं को उनसे मिलने की चुनौती दी थी और कहा था कि वह अगले तीन दिनों के लिए शहर में हैं.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक अध्यापक रतन लाल को वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ होने के दावे पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, एक दिन बाद उन्हें जमानत मिल गई थी.

दिल्ली के एक वकील की शिकायत के आधार पर 17 मई की रात इतिहास के प्रोफेसर रतन लाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. अपनी शिकायत में अधिवक्ता विनीत जिंदल ने कहा था कि रतन लाल ने ‘शिवलिंग के बारे में अपमानजनक, उकसाने वाला और भड़काऊ ट्वीट साझा किया था.

इसी तरह काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर के संबंध में कथित रूप से विवादास्पद बयान देने को लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन के खिलाफ हसनगंज थाने में समुदायों के बीच नफरत उत्पन्न करने एवं सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने, शांति भंग करने के लिए भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमानजनक बातें कहने तथा वर्गों के बीच शत्रुता उत्पन्न करना समेत 66 आईटी एक्ट के आरोपों के तहत 10 मई को एफआईआर दर्ज की गई थी.

बीते 18 मई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग के मिलने संबंधी खबरों को लेकर ट्विटर पर एक कथित टिप्पणी करने को लेकर गुजरात की अहमदाबाद पुलिस ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता दानिश कुरैशी को गिरफ्तार किया था.

एआईएमआईएम नेता के अलावा नागपुर पुलिस ने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि में भगवान शिव के बारे में फेसबुक पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में 18 मई को ही नागपुर के गणेश पेठ इलाके के रहने वाले और ऑडियो रिकॉर्डिंग की दुकान चलाने वाले चारुदत्त जिचकर को गिरफ्तार किया था.

इस तरह की कुछ और गिरफ्तारियां पुलिस द्वारा हाल के कुछ दिनों में की गई हैं.

मालूम हो कि शीर्ष अदालत ने बीते 17 मई को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.

हालांकि मुस्लिम पक्ष ने शिवलिंग मिलने के दावे को गलत करार दिया है. ज्ञानवापी मस्जिद की रखरखाव करने वाली संस्था ‘अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी’ के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन ने कहा कि मुगल काल की बनी जितनी भी मस्जिदें हैं, उन सभी के वजू खाने में फव्वारा लगाया जाता था. उन्होंने कहा कि बाकी मस्जिदों की तरह ज्ञानवापी मस्जिद के फव्वारे में भी एक हरा पत्थर लगाया गया था, जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है.

इससे पहले वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने बीते 12 मई को ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर बीते 17 मई को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)