साउथ एशिया सिटीज़न वेब की एक हालिया रिपोर्ट में 24 अमेरिकी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों की गतिविधियों का पता लगा है, जिनकी संपत्ति क़रीब 100 मिलियन डॉलर है.
नई दिल्ली: साउथ एशिया सिटीजन वेब (एसएसीडब्ल्यू) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, संघ परिवार से जुड़ाव रखने वाले सात अमेरिकी समूहों ने करीब दो दशकों में भारत पैसा भेजने समेत विभिन्न परियोजनाओं पर 158 मिलियन डॉलर (1,227 करोड़ रुपये) से अधिक खर्च किए हैं.
93 पृष्ठों की रिपोर्ट में हिंदुत्व नागरिक समाज समूहों के वित्तीय खर्चों को संकलित किया गया है, जिसमें भारत में सहयोगी कंपनियों को पैसा भेजने, धर्म और इतिहास से संबंधित पाठ्य-पुस्तकों और शैक्षणिक नतीजों के संदर्भ में कानून को प्रभावित करने और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की विदेश नीति की प्राथमिकताओं को बढ़ावा देने संबंधी खर्चों पर भी नज़र रखी गई है.
इसमें लिखा है कि श्वेत राष्ट्रवादियों और कथित तौर पर रूस- समर्थित दुष्प्रचार नेटवर्कों के उभार ने ‘ऐसे इनफार्मेशन इकोसिस्टम, जहां कुछ विशिष्ट लोगों के समूह शिकायत भरे नजरिये से दुनिया देखते हैं, की धारणा के बारे में जागरुकता बढ़ाई है. यह वैसी ही रणनीति है, जैसी प्रवासी हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा इस्तेमाल की जाती है.’
कुल मिलाकर, रिपोर्ट में 24 अमेरिकी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के नाम और उनकी गतिविधियों की जानकारी है, जिनकी संपत्ति करीब 100 मिलियन डॉलर है.
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों में से एक में कहा गया है, ‘उपलब्ध टैक्स रिटर्न के मुताबिक, 2001-2019 के बीच सात संघ संबद्ध धर्मार्थ समूहों ने कथित तौर पर कम से कम 158.9 मिलियन डॉलर अपने कार्यक्रमों पर खर्च किए, जिनमें से अधिकांश हिस्सा भारत में अपने समूहों को भेजा गया.’
गणना सात समूहों द्वारा भरे गए टैक्स रिटर्न पर आधारित थी. इन सात समूहों की पहचान ऑल इंडिया मूवमेंट (एआईएम) फॉर सेवा, एकल विद्यालय फाउंडेशन ऑफ अमेरिका, इंडिया डेवलपमेंट एंड रिलीफ फंड, परम शक्ति पीठ, पीवायपी योग फाउंडेशन, अमेरिका विश्व हिंदू परिषद और सेवा इंटरनेशनल के रूप में हुई है.
रिपोर्ट कहती है कि 2001 से हुए 158.9 मिलियन डॉलर खर्चे का करीब 53 फीसदी- 85.4 मिलियन डॉलर- वर्ष 2014 से 2019 के बीच खर्च किया गया था.
‘अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी इकोसिस्टम के हिस्सों का खाका तैयार करने’ के उद्देश्य से बनाई गई यह रिपोर्ट टैक्स रिकॉर्ड, सरकारी फाइलिंग, सार्वजनिक बयान, वेबसाइट और न्यूज रिपोर्ट पर आधारित है.
इसमें इन गैर सरकारी संस्थाओं के शेयर होल्डिंग पैटर्न पर भी गौर किया गया है, जिससे कि बड़े नेटवर्क से इनका जुड़ाव स्थापित किया जा सके. उदाहरण के लिए, धर्म सिविलाइजेशन फाउंडेशन (डीसीएफ) के तीन ट्रस्टी हिंदू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस) के शीर्ष पदाधिकारी रहे हैं. एचएसएस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अमेरिकी समकक्ष माना जाता है.
वर्ष 2012 से 2016 के बीच, डीसीएफ ने तीन अलग-अलग शैक्षणिक संस्थाओं को कम से कम 13 मिलियन डॉलर की पेशकश की.
रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया के शिक्षा विभाग को 2015 में पाठ्यक्रम में ‘दलित’ शब्द शामिल करने का विरोध करते हुए लिखे पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक शख्स को दो संस्थानों- यूएससी के स्कूल ऑफ रिलीजन और ग्रेजुएट थियोलॉजिकल यूनियन द्वारा डीसीएफ से क्रमश: 2012 और 2015 में अनुदान प्राप्त करने के बाद दो बार काम पर रखा गया.
हालांकि, 2016 में इरविन में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय को डीसीएफ द्वारा पेश किए गए करीब 6 मिलियन डॉलर मूल्य के तीसरे अनुदान को इसलिए अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि ‘शिक्षकों और छात्रों ने समूह के भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों से संदिग्ध संबंधों को लेकर सवाल खड़े किए थे.’
इसके अलावा, रिपोर्ट में लॉबी समूहों के राजनीतिक अभियान के वित्तपोषण का भी विश्लेषण किया गया है. सरकारी फाइलिंग के आधार पर, द हिंदू अमेरिकन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (एचएपीएसी) ने 2012-2020 के बीच विभिन्न अमेरिकी चुनावों में 1,72,000 डॉलर खर्च किए थे.
एसएसीडब्ल्यू रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 और 2020 के बीच अमेरिकी कांग्रेस सदस्य राजा कृष्णमूर्ति को एचएपीएसी और संघ से जुड़े व्यक्तियों से 1,17,000 डॉलर से अधिक राशि प्राप्त हुई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कृष्णमूर्ति ‘अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी हितों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें वैधता प्रदान करने में योगदान’ देते हैं, जिसके तहत उन्होंने 2017 में कैलिफोर्निया राज्य शिक्षा बोर्ड को पाठ्यक्रम में ‘हिंदू राष्ट्रवादी सामग्री’ शामिल करने संबंधी पत्र लिखा था. ऐसे कई और उदाहरण भी रिपोर्ट में शामिल हैं.
2019 में ह्यूस्टन में आयोजित हाउडी मोदी कार्यक्रम, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शामिल हुए थे, उसमें शामिल होने वाले एकमात्र भारतीय-अमेरिकी सांसद कृष्णमूर्ति थे.
इसके अलावा, पूर्व महिला सांसद और राष्ट्रपति उम्मीदवार तुलसी गबार्ड ने 2014 और 2019 के बीच पांच सालों में 1,10,000 डॉलर प्राप्त किए. इसी अवधि के दौरान, संसद की विदेशी मामलों की समिति के वरिष्ठ सदस्य कैलिफोर्निया के डेमोक्रेट सांसद ब्रैड शेर्मन को 27,000 डॉलर प्राप्त हुए.
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि ‘संभावित वित्तीय अनियमितताओं के प्रमाण’ थे, क्योंकि सरकारी फाइलिंग और वेबसाइटों की जांच में विभिन्न ट्रस्टों और गैर-लाभकारी समूहों के बीच जमीन और धन ट्रांसफर कारण का सिलसिला दिखाई देता है. यह भी कहा गया है कि इन मामलों में आगे और जांच की जरूरत है.
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