एनएसओ के अनुसार, जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर साल-दर-साल धीमी होकर 4.1% हो गई. यह एक साल में इसकी सबसे धीमी गति है. वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.71 प्रतिशत रहा है जो संशोधित बजट अनुमान से कम है.
नई दिल्ली: रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद कच्चे तेल और वस्तुओं की उच्च कीमतों से बढ़ते जोखिमों के बीच जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर साल-दर-साल धीमी होकर 4.1% हो गई. यह एक साल में इसकी सबसे धीमी गति है.
मंगलवार 31 मई को सामने आए आधिकारिक आंकड़ों से यह पता चला है. वित्तीय वर्ष 2022 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर दूसरे तिमाही की 8.5% और पहले तिमाही की 20.3% से घटकर 5.4% रह गई थी.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2021-22 के पूरे साल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही. इसके पहले वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 6.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी.
राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) ने मंगलवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी.
हालांकि मार्च 2022 में समाप्त वित्त वर्ष का वृद्धि आंकड़ा एनएसओ के पूर्वानुमान से कम रहा है. एनएसओ ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में इसके 8.9 प्रतिशत रहने की संभावना जताई थी.
8.7% की वृद्धि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के 2021-22 के लिए जीडीपी वृद्धि के 9.5% के अनुमान से भी कम है.
वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.7 प्रतिशत
वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.71 प्रतिशत रहा है जो 6.9 प्रतिशत के संशोधित बजट अनुमान से कम है.
मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने पहले इसके 6.8 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान जताया था लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया गया था.
महालेखा नियंत्रक (सीजीए) की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2022 में समाप्त वित्त वर्ष के लिए वास्तविक रूप में राजकोषीय घाटा 15,86,537 करोड़ रुपये रहा है जो जीडीपी का 6.7 प्रतिशत है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत एक फरवरी को वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते समय अनुमान जताया था कि वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा 15,91,089 करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 6.9 प्रतिशत रहेगा.
आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2021-22 के अंत में राजस्व घाटा 4.37 प्रतिशत रहा.
राजस्व बढ़ने से राजकोषीय घाटा हुआ कम
वित्त वर्ष में कर प्राप्तियां 18.2 लाख करोड़ रुपये रहीं जबकि इसका संशोधित अनुमान 17.65 लाख करोड़ रुपये का था. कुल व्यय भी 37.7 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से अधिक 37.94 लाख करोड़ रुपये रहा.
सीजीए ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल 2022 में राजकोषीय घाटा समूचे वित्त वर्ष के बजट अनुमान का 4.5 प्रतिशत रहा. एक साल पहले अप्रैल 2021 में राजकोषीय घाटा 5.2 प्रतिशत रहा था. सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा 16.61 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है.
अप्रैल के महीने में 591 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष देखा गया. सरकार अपने राजकोषीय घाटे की भरपाई बाजार से उधारी जुटाकर करती है.
इन आंकड़ों पर टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी के साझेदार विवेक जालान ने कहा कि वर्ष 2021-22 में राजस्व संग्रह 22 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से करीब पांच लाख करोड़ रुपये अधिक रहा. यह वर्ष 2020-21 के राजस्व संग्रह से करीब 35 प्रतिशत अधिक है.
रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि राजस्व संग्रह बेहतर होने और कम पूंजीगत व्यय के कारण केंद्र का राजकोषीय घाटा संशोधित अनुमान से बेहतर रहा है.
वर्ष 2022-23 के परिदृश्य पर उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटा 16.6 लाख करोड़ रुपये पर सीमित रखने की राह में कई जोखिम हैं. उत्पाद शुल्क में कटौती, रिजर्व बैंक से मिलने वाले अधिशेष में कमी और खाद्य, उर्वरक एवं एलपीजी सब्सिडी पर बोझ बढ़ने जैसी चुनौतियां मौजूद हैं.
महामारी के असर, सामानों के दाम बढ़ने से चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में सुस्तीः विशेषज्ञ
इस बीच, विशेषज्ञों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहने की मुख्य वजह महामारी की तीसरी लहर और जिंसों के दामों (commodity prices) में तेजी है.
सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी का अस्थायी अनुमान कोविड-पूर्व के स्तर से अधिक है जो आर्थिक पुनरुद्धार पूरा हो जाने की बात स्थापित करता है.’
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लिए आर्थिक वृद्धि दर में नरमी के साथ ऊंची मुद्रास्फीति (स्टैगफ्लेशन) का जोखिम नहीं है. उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में है.
रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर कम रहना अपरिहार्य था क्योंकि उसी समय कोविड की तीसरी लहर आने से संपर्क-आधारित सेवाएं बाधित हुईं और जिंसों के दाम भी बढ़ गए थे. इसके अलावा आधार प्रभाव के प्रतिकूल नहीं रहने का भी असर पड़ा.
नायर ने कहा कि चौथी तिमाही में आश्चर्यजनक रूप से सेवा क्षेत्र ने 3.9 प्रतिशत जीवीए वृद्धि के साथ सबसे अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा सार्वजनिक खर्च बढ़ने से लोक प्रशासन, रक्षा एवं अन्य सेवाओं में वृद्धि तेज रही.
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार के मुताबिक, वास्तविक जीडीपी एवं मौजूदा मूल्य पर जीडीपी के बीच के फर्क से पता चलता है कि मुद्रास्फीति एक स्थायी समस्या रही है और अर्थव्यवस्था लंबे समय से बढ़ती कीमतों की चुनौती से जूझ रही है.
मजूमदार ने कहा, ‘भारत समेत तमाम उभरते बाजारों से वैश्विक निवेशकों ने पूंजी की निकासी की. इससे मुद्रा के मूल्य में गिरावट आई और आयात बिल बढ़ गया.’
कोलियर्स इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (भारत) रमेश नायर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2020-21 में आई 6.6 प्रतिशत की गिरावट से उबरते हुए शानदार वापसी की है. उन्होंने कहा, ‘यह दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था अब महामारी के चंगुल से निकल चुकी है और पुनरुद्धार की राह पर है.’
ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि एनएसओ की तरफ से जारी जीडीपी आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं कि सभी खंडों का प्रदर्शन महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच चुका है.
हालांकि चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक परिदृश्य धुंधला ही नजर आ रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि रूस-यूक्रेन संकट की वजह से कच्चा तेल फिर से 120 डॉलर प्रति बैरल की तरफ जा रहा है.
भारत की प्रति व्यक्ति आय 2021-22 में कोविड से पहले के स्तर से नीचे
हालांकि, एक अन्य आंकड़े बताते हैं कि देश की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय 2021-22 में स्थिर कीमतों पर 91,481 रुपये रही, जो कोविड से पहले के स्तर से नीचे है. मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली.
हालांकि, स्थिर मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय आय (एनएनआई) के आधार पर प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2021-22 में इससे पिछले वर्ष के मुकाबले 7.5 प्रतिशत बढ़ी.
कोविड-19 महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां बाधित हुईं थीं. इस कारण स्थिर कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 2019-20 में 94,270 रुपये से घटकर 2020-21 में 85,110 रुपये रह गई.
मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 18.3 प्रतिशत बढ़कर 1.5 लाख रुपये हो गई.
मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 2020-21 में घटकर 1.27 लाख करोड़ रुपये पर आ गई थी जो 2019-20 में 1.32 लाख करोड़ रुपये थी.
आईएमएफ भारत के वृद्धि अनुमान में कर सकता है कटौती
इस बीच, खबर आई है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) वर्ष 2022 के लिए भारत के वृद्धि पूर्वानुमान को संशोधित करने की तैयारी में है. इसमें अनुमानित वृद्धि दर में कटौती की जा सकती है.
भारत में आईएमएफ के वरिष्ठ स्थानीय प्रतिनिधि लुइ ब्रुएर ने मंगलवार को कहा कि धीमी आर्थिक वृद्धि के साथ मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि (स्टैगफ्लेशन) के मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में भारत का संशोधित वृद्धि पूर्वानुमान 8.2 प्रतिशत के पुराने अनुमान से कम रह सकता है.
उन्होंने कहा, ‘इस समय आईएमएफ वर्ष 2022 के लिए भारत के वृद्धि पूर्वानुमान को संशोधित कर रहा है. इस दिशा में काम जारी है.’
आईएमएफ ने गत अप्रैल में कहा था कि साल 2022 में भारत की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रह सकती है. इसके पहले जनवरी, 2022 में इसने 9 प्रतिशत वृद्धि दर की संभावना जताई थी. इसके साथ ही आईएमएफ ने कहा था कि वर्ष 2023 तक भारत की वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रह सकती है.
ब्रुएर ने कहा कि भारत उच्च मुद्रास्फीति के साथ निम्न रोजगार की समस्या से जूझ रहा है और रोजगार के नए अवसर पैदा होने के लिहाज से यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है.
हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और इस समय पुनरुद्धार के दौर से गुजर रही है. उन्होंने मौजूदा हालात में समाज के कमजोर तबकों को सुरक्षित रखने की जरूरत का ध्यान रखने के साथ ही ऋण को उच्च दर पर स्थिर रखने का भी आह्वान किया.
आईएमएफ अधिकारी ने कहा कि अमेरिका और यूरोप के केंद्रीय बैंकों ने बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए नीतिगत ब्याज दरों में बढ़ोतरी करनी शुरू कर दी है. उन्होंने कहा कि कर्ज की लागत बढ़ने का वृद्धि दर पर असर पड़ना लाजिमी है.
उन्होंने आशंका जताई कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से भविष्य में ब्याज दरें फिर बढ़ाने की स्थिति में दुनिया भर की पूंजी ऊंचे रिटर्न की उम्मीद में अमेरिका पहुंच जाएगी.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया अभी कोविड-19 महामारी के चंगुल से पूरी तरह उबर नहीं पाई है. इस बीच दुनिया का कारखाना कहे जाने वाले चीन के कुछ हिस्सों में अभी भी ‘लॉकडाउन’ लगा हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘अगर चीन में सुस्ती की स्थिति आती है तो उसका भारत पर भी नकारात्मक असर होगा. अगर चीन के जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट आती है तो भारत की जीडीपी 0.6 प्रतिशत गिर जाएगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)