अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज़ होने के बाद पहली बार भारत ने एक वरिष्ठ राजनयिक की अगुवाई में अपना प्रतिनिधि दल वहां भेजा है. यात्रा को तालिबान को मान्यता देने की दिशा में क़दम माने जाने के सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यात्रा मानवीय सहायता व वितरण से संबंधित है और इसमें ज़्यादा कुछ अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद पहली बार भारत से विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ राजनयिक की अगुवाई में एक दल काबुल गया है जो उस देश में भारतीय मानवीय सहायता अभियान एवं आपूर्ति का जायजा लेगा तथा वहां सत्तारूढ़ तालिबान के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात भी करेगा. विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गुरुवार को भारतीय दल तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से भी मिला.
इस दल का नेतृत्व पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान (पीएआई) के लिए वरिष्ठ राजनयिक जेपी सिंह कर रहे हैं. यह दल तालिबान के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात कर भारत की ओर से भेजी गई सहायता के बारे में चर्चा के लिए भेजा गया.
सिंह के नेतृत्व में भारतीय दल ने काबुल में एक अस्पताल, एक स्कूल और एक पावर प्लांट का दौरा किया.
तालिबान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल क़हर बाल्की ने बैठक का एक फोटो ट्वीट करते हुए कहा कि अफगानिस्तान और भारत के बीच राजनयिक संबंधों, द्विपक्षीय व्यापार और मानवीय सहायता पर चर्चा की गई.
Today, IEA Acting Deputy Foreign Minister Alhaj Sher Mohammad Abbas Stanekzai met with Indian MEA Joint Secretary J.P. Singh and accompanying delegation.
Mr. Singh called ties between the two countries historic, adding that India wants to assist in line with pic.twitter.com/cwBFmAmUQT
— Abdul Qahar Balkhi (@QaharBalkhi) June 2, 2022
बाल्की ने कहा, मुत्ताकी ने विदेश मंत्रालय और भारत सरकार के पहले प्रतिनिधि मंडल का स्वागत किया और इसे दोनों देशों के बीच अच्छी शुरूआत कहा. उन्होंने अफगानिस्तान को हाल ही में मानवीय और स्वास्थ्य सहायता के लिए भारत को धन्यवाद दिया.
प्रवक्ता के अनुसार, मुत्ताकी ने जोर देकर कहा कि भारत को अपनी रुकी हुई परियोजनाओं को फिर से शुरू करना चाहिए, अपनी राजनयिक उपस्थिति को सक्रिय करना चाहिए और अफगानों, विशेष रूप से अफगान छात्रों और रोगियों को कांसुलर सेवाएं प्रदान करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भी कहा कि वह पहले की तरह अफगानिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहता है और सहायता प्रदान करना जारी रखेगा.
बाल्की ने कहा कि भारत विभिन्न क्षेत्रों में अफगानिस्तान को सहायता देने और साथ काम करने पर विचार करेगा जैसे कि उसने हाल ही में अपनी सीमाओं और बंदरगाहों को अफगान निर्यात के लिए खोल दिया था और निर्यात पिछले वर्षों तुलना में अधिक हुआ.
उन्होंने कहा, ‘इससे अफगानिस्तान के निर्यात में और वृद्धि होने एवं उसकी अर्थव्यवस्था को सहारा मिलने की उम्मीद है.’
इससे पहले, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा था कि विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पीएआई) जेपी सिंह के नेतृत्व में अधिकारियों का एक दल अभी काबुल में है, जो अफगानिस्तान में हमारे मानवीय सहायता आपूर्ति अभियान का जायजा लेगा.
भारतीय दल के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि इसके बारे में वे ज्यादा कुछ नहीं बता सकते हैं लेकिन इसमें प्रासंगिक अधिकारी शामिल हैं जो मानवीय सहायता एवं उसके वितरण को देखेंगे .
दल की सुरक्षा के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा कि जब हमारी टीम वहां गई है तो हमें उनकी सुरक्षा का ध्यान है ताकि कोई दिक्कत नहीं हो .
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि यह दल मानवीय सहायता में शामिल विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेगा और संभवत: उन स्थानों पर भी जाएगा जहां भारतीय कार्यक्रम अथवा परियोजनाएं लागू की जा रही हैं .
बागची ने कहा कि यह दल परियोजनाओं को देखने काबुल या उसके बाहर जाएगा, इसके बारे में अभी जानकारी नहीं दे सकते. इस बारे में जब कोई जानकारी मिलेगी, तब बताएंगे .
काबुल में भारतीय दूतावास खोलने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि इस बारे में हमें पिछले वर्ष अगस्त के बाद के घटनाक्रम पर ध्यान देना चाहिए. जैसा कि हम जानते हैं कि पिछले 15 अगस्त के बाद वहां बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को देखते हुए भारत के सभी कर्मियों को वापस लाया गया था .
उन्होंने कहा कि हालांकि, वहां स्थानीय कर्मी दूतावास की उचित देखभाल करते हैं और मानवीय सहायता में भी मदद करते हैं .
यह पूछे जाने पर कि क्या यह तालिबान को मान्यता देने की दिशा में एक कदम है, इस पर बागची ने कहा कि यह सही है कि यह काबुल के लिए पहली यात्रा (भारतीय दल की) है लेकिन यह यात्रा मानवीय सहायता एवं वितरण के विषय से संबंधित हैं और इसमें ज्यादा कुछ अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत, अफगानिस्तान से जुड़े मुद्दों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संपर्क में है. बागची ने कहा कि हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संपर्क में हैं कि उनकी तालिबान से क्या अपेक्षाएं हैं .
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पिछले वर्ष सितंबर में कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा के भारतीय दूतावास में तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनेकजई से मुलाकात की थी.
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने बयान में बताया कि अफगानिस्तान के लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत अब तक 20 हजार मीट्रिक टन गेहूं, 13 टन दवा, कोविड रोधी टीके की पांच लाख खुराक, गर्म कपड़े आदि वहां भेज चुका है. यह सामग्री काबुल में इंदिरा गांधी बाल अस्पताल, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूईपी जैसी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों को सौंपी गई हैं.
मंत्रालय ने कहा, ‘हमने अफगानिस्तान के लोगों के साथ हमारी विकास साझेदारी को जारी रखते हुए भारत में निर्मित कोवैक्सीन की 10 लाख खुराक ईरान को दीं ताकि ईरान में रहने वाले अफगानिस्तान के शरणार्थियों को खुराकें दी जा सकें.’
इसमें कहा गया है, ‘यूनीसेफ को अफगानी लोगों के लिए पोलियो के टीके की छह करोड़ खुराक और दो टन आवश्यक दवाओं की आपूर्ति की गई है.’
बयान के अनुसार, भारत से अफगानिस्तान को और भी चिकित्सा सहायता व खाद्यान्न की खेप भेजे जाने की प्रक्रिया चल रही है.
इसमें कहा गया है कि भारत के अफगानिस्तान के साथ ऐतिहासिक एवं सभ्यता से जुड़े संबंध हैं और ये हमारे रुख का मार्गदर्शन करेंगे.
गौरतलब है कि भारत, अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त करता रहा है. भारत ने नवंबर में अफगानिस्तान के मुद्दे पर एक क्षेत्रीय वार्ता की मेजबानी की थी जिसमें रूस, ईरान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने हिस्सा लिया था .
इस वार्ता में हिस्सा लेने वाले देशों ने यह सुनिश्चित करने के लिए काम करने का संकल्प लिया था कि अफगानिस्तान वैश्विक आतंकवाद की पनाहगाह नहीं बने. इन देशों ने अफगानिस्तान में ‘खुली एवं सच्चे अर्थो में समावेशी’ सरकार के गठन का आह्वान किया था जिसमें अफगानिस्तान के सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व हो .
दिल्ली में अफगानिस्तान के विषय पर हुई क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता के अंत में जारी एक घोषणापत्र में कहा गया था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी तरह की आतंकी गतिविधियों के वित्त पोषण, पनाह, प्रशिक्षण या योजना बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
भारत, अफगानिस्तान में निर्बाध रूप से मानवीय सहायता प्रदान करने की वकालत करता रहा है ताकि उस देश में मानवीय संकट को दूर किया जा सके. वहीं, भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को अभी तक मान्यता प्रदान नहीं की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)