क्या कीजिएगा, न वे विदेश नीति बरत पाते हैं, न सर्व धर्म समभाव!

भाजपा देर से ही सही नूपुर शर्मा व नवीन जिंदल के विरुद्ध इतनी सख़्त हो गई कि पैगंबर मोहम्मद को लेकर दिए उनके बयानों से ख़ुद को अलग करती हुई उन्हें ‘शरारती तत्व’ क़रार दे रही है. सवाल ये है कि क्या वह अब तक उनका बचाव करते आ रहे नेताओं के साथ भी ऐसी सख़्ती बरतेगी और इनकी तरह उन्हें भी माफ़ी मांगने को मजबूर करेगी?

Mumbai: Activists shout slogans as they react to remarks of suspended BJP leader Nupur Sharma on Prophet Muhammad during a protest in Mumbai, Monday, June 6, 2022. (PTI Photo/Kunal Patil)(PTI06_06_2022_000104B)

भाजपा देर से ही सही नूपुर शर्मा व नवीन जिंदल के विरुद्ध इतनी सख़्त हो गई कि पैगंबर मोहम्मद को लेकर दिए उनके बयानों से ख़ुद को अलग करती हुई उन्हें ‘शरारती तत्व’ क़रार दे रही है. सवाल ये है कि क्या वह अब तक उनका बचाव करते आ रहे नेताओं के साथ भी ऐसी सख़्ती बरतेगी और इनकी तरह उन्हें भी माफ़ी मांगने को मजबूर करेगी?

नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. (फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा गत तीन जून को नागपुर में एक कार्यक्रम में यह ‘पूछकर’ कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढ़ना’, दिए गए इस ‘आश्वासन’ को कि संघ अब कोई नया मंदिर आंदोलन नहीं शुरू करेगा, समूचे संघ परिवार के हृदय परिवर्तन का संकेत मानने वाले महानुभाव अभी अपने गलत सिद्ध होने का गम गलत भी नहीं कर पाए थे कि पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी को लेकर भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा का पार्टी से निलंबन उनके सिर पर आ गहराया है. रही-सही कसर पार्टी की दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल के निष्कासन ने पूरी कर दी है.

कोई कहे कुछ भी, इससे भाजपा के वे नेता व कार्यकर्ता सन्न होकर रह गए हैं, जो इन दोनों नेताओं के ‘अप्रत्याशित’ निलंबन व निष्कासन के क्षण तक उनको सही सिद्ध करने और उनके सुर में सुर मिलाने में मगन थे.

साफ कहें तो उनकी हालत एक बार फिर वैसी ही हो गई है जैसी पिछले साल 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक अपनी सरकार के लाए तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस ले लेने के एलान के बाद हो गई थी.

जैसे उस वक्त वे समझ नहीं पा रहे थे कि उक्त कृषि कानूनों को लाने को मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक बताने में अपनी जीभें घिसा चुकने के बाद उनकी वापसी को मास्टरस्ट्रोक कैसे बताएं.

वे (नेता व कार्यकर्ता) अब समझ नहीं पा रहे कि नूपुर व नवीन की टिप्पणियों पर मगन होकर उन्होंने क्या गलती की थी और अब उसे सुधारने के लिए जीवित मक्खी निगलने की नई गलती कैसे करें? कैसे मान लें कि उनकी हिंदुत्ववादी भाजपा सचमुच किसी भी धर्म के पूजनीयों का अपमान या ऐसा कोई विचार स्वीकार नहीं करती जो किसी धर्म या संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाए.

वह भी जब जानकार कहते हैं कि मोहन भागवत के उक्त आश्वासन के पीछे उनके या संघ के हृदय परिवर्तन से ज्यादा 22 मई को अमेरिकी कांग्रेस द्वारा गठित अर्ध-न्यायिक निकाय यूएससीआईआरएफ द्वारा अमेरिकी प्रशासन से दोबारा की गई इस सिफारिश का दबाव था कि वह भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और 11 अन्य देशों को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के संदर्भ में ‘विशेष चिंता वाले देश’ के तौर पर वर्गीकृत करे.

गौरतलब है कि निकाय की यह सिफारिश मान लिए जताने की स्थिति में दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रताओं के उल्लंघन के जिम्मेदार व्यक्तियों व संस्थाओं पर टारगेटेड बैन लगाए जा सकते हैं. साथ ही ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं की संपत्ति को फ्रीज और संयुक्त राज्य में उनके प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती है.

लेकिन बात इतनी-सी ही नहीं थी. पिछले दो महीनों से अमेरिका बार-बार भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे सीधी चिंता जता रहा था और मोदी सरकार के लिए इससे संबंधित रिपोर्टों को ‘पक्षपातपूर्ण विचारों के आधार पर तैयार आकलन’ करार देकर उनसे अपना दामन बचाना कठिन हो रहा था.

इन रिपोर्टों में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संसद को सौंपी गई वह वार्षिक रिपोर्ट भी शामिल है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारत में 2021 में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर पूरे साल हमले हुए, जिनमें हत्याएं और धमकाने के मामले भी शामिल हैं.

इस रिपोर्ट में भागवत के उस बहुचर्चित बयान का भी हवाला है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है और उन्हें धर्म के आधार पर अलग नहीं किया जाना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 12 सितंबर, 2021 के उस बयान का भी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश में पहले की सरकारों ने लाभ वितरण में मुस्लिम वर्ग का पक्ष लिया था. रिपोर्ट में पुलिस द्वारा गैर-हिंदुओं की ऐसी टिप्पणियों के लिए की गईं गिरफ्तारियों का भी जिक्र है, जिन्हें हिंदू अपमानजनक मानते हैं.

अब इसे संयोग कहें या प्रयोग, लेकिन इसी रिपोर्ट के बाद ही भागवत ने नागपुर में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए, लेकिन हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने और रोजाना नया विवाद खड़ा करने की जरूरत नहीं है.

नूपुर शर्मा, भागवत के यह सब कहने से पहले 27 मई को ही एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में पैगंबर मोहम्मद के बारे में टिप्पणी कर चुकी थीं, जिसे लेकर असंतोष फैला और बवाल मचा हुआ है. लेकिन चौतरफा मांग के बावजूद भाजपा ने उन पर कोई कार्रवाई गवारा नहीं की थी.

शायद उसने और उसकी मोदी सरकार दोनों ने यह समझने की गलती की कि भागवत के ‘आश्वासन’ को पर्याप्त मान लिया जाएगा और बात आई-गई हो जाएगी. मगर वे गलत सिद्ध हुईं और अब नूपुर पर तुरंत कार्रवाई न करने को लेकर कठिन सवालों का सामना कर रही हैं.

कहा जा रहा है कि कुवैत व कतर समेत इस्लामिक विश्व के बड़े हिस्से ने नूपुर की टिप्पणी को लेकर नाराजगी का खुला प्रदर्शन शुरू कर दिया, बात भारतीय राजदूतों को तलबकर भारत से माफी की मांग करने तक पहुंच गई और कतर में मौजूद उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को अपने सम्मान में दिया गया भोज रद्द कर दिए जाने के बाद असहज स्थिति का सामना करना पड़ गया.

तब भाजपा ने ‘मरती क्या न करती’ की तर्ज पर नूपुर और नवीन दोनों पर तथाकथित अनुशासन का डंडा चलाया! लेकिन तब तक उसके उस डपोरशंखी दावे की कलई उतर चुकी थी कि मोदी के आठ साल के राज में विदेशों में देश की प्रतिष्ठा आसमान चूमने लगी है.

इसे लेकर सबसे मजेदार टिप्पणी वरिष्ठ टीवी न्यूज एंकर रवीश कुमार ने की है. यह पूछकर कि ‘राष्ट्रवादी’ भाजपा ने मुगलों से लोहा ले रहे अपने दो प्रवक्ताओं को अरबों यानी अरब देशों के दबाव में क्यों हटा दिया? अरब देशों में इन प्रवक्ताओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चल रहा था और भारत के बारे में अच्छी बातें नहीं कही जा रही थीं तो भाजपा की आईटी सेना जवाबी अभियान चलाकर उसकी ईंट से ईंट क्यों नहीं बजा सकती थी!

निस्संदेह, इसे विडंबना ही कहेंगे कि भाजपा ने इस मामले में स्वदेशी मुसलमानों की भावनाओं या विरोध की परवाह तो कतई नहीं की, मगर इस्लामिक विश्व के यानी विदेशी एतराजों के सामने ठहर नहीं पाई. शायद उसके सामने वैसी ही समस्या आ खड़ी हुई थी जैसी 2002 के गुजरात दंगे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने आई थी. तब अटल ने कहा था, ‘हम कौन-सा मुंह लेकर दुनिया के पास जाएंगे? हमारे कई मित्र देश हैं, जहां मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं. उन्हें हम क्या मुंह दिखाएंगे?’

जो भी हो, देश के लिहाज से देखें तो बेहतर यही होता कि भागवत के उक्त ‘आश्वासन’ और भाजपा की नूपुर व नवीन के खिलाफ कार्रवाइयों के पीछे कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दबाव अथवा समस्या नहीं, बल्कि ऐसी सदाशयता होती, जो संघ परिवार के हृदय का परिवर्तित होना सिद्ध करती. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है.

अभी भी जब नरेंद्र मोदी सरकार तालिबान, पाकिस्तान और 57 मुस्लिम देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन को ‘भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने के लिए आड़े हाथों लेकर और यह कहकर कि उनका मुंह ऐसा कहा है कि वे भारत की ओर उंगली उठा सकें, डेमेज कंट्रोल करने में लगी है, इससे जुड़े कई सवालों को जवाब की दरकार है.

पहला यह कि जो भाजपा देर से ही सही नूपुर व नवीन के विरुद्ध इतनी सख्त हो गई है कि खुद को उनके बयानों से अलग करती हुई उन्हें ‘शरारती तत्व’ करार दे रही है, क्या वह अब तक उनका बचाव करते आ रहे नेताओं के साथ भी ऐसी सख्ती बरतेगी और इनकी तरह उन्हें भी माफी मांगने को मजबूर करेगी?

सवाल यह भी है कि घरेलू राजनीतिक दबावों को नकारती रहने वाली इस पार्टी ने इस मामले में खुद पर विदेशी दबाव को बुरी तरह हावी होने देकर क्या फिर यही नहीं सिद्ध किया कि उसे विदेश नीति बरतना नहीं आता?

ऐसे में नूपुर व नवीन के उदाहरणों को भाजपा व उसकी सरकार के अंतर्विरोधों के उजागर होने के तौर पर लिया जाए या गलती के एहसास व पछतावे के रूप में? अगर पछतावे के रूप में तो क्या इसके समानांतर अपने आखिरी मुस्लिम सांसद के भी दोबारा राज्यसभा लौटने का रास्ता बंद करके वह यह भी नहीं सिद्ध कर रही कि उसे विदेश नीति की ही तरह सर्व धर्म समभाव बरतना भी नहीं आता, जिसका इस मामले में वह दावा कर रही है!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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