2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या में मूर्तियों की स्थापना की बेहद महत्वाकांक्षी राजनीति भी शुरू की थी. हालांकि अपने अंतर्विरोधों के कारण यह राजनीति अब कई मायनों में उसके लिए फांस बनती दिख रही है.
आज अयोध्या की ‘बड़ी-बड़ी’ बातों ने कई ‘छोटी’ बातों को इतनी छोटी कर डाला है कि वे न पत्रकारों को नज़र आती हैं, न सरकारी अमले को. ऐसे में उन आम अयोध्यावासियों की तकलीफें अनदेखी की शिकार हैं, जो ‘ऊंची उड़ानों’ पर नहीं जाना चाहते या जिन्हें उन उड़ानों के इंतज़ामकार अपने साथ नहीं ले जाना चाहते.
इस बार दीपावली के अवसर पर जब उत्तर प्रदेश सरकार अयोध्या में दीपोत्सव मना रही थी, शहर के लोगों में डेंगू का भय समाया हुआ था. 2021 में ज़िले में डेंगू के कुल 571 व 2022 में कुल 668 मरीज़ मिले थे, वहीं इस साल अब तक यह आंकड़ा आठ सौ के पार जा चुका है.
अपने स्वर्णकाल में भी ‘असुरक्षा’ की शिकार हिंदुत्ववादी जमातों ने डॉ. मनमोहन सिंह को छोड़कर हर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हिंदुत्ववादी क़रार देने या खींच-खांचकर हिंदुत्व के पाले में लाने के प्रयास किया है. इंदिरा गांधी भी इससे अछूती नहीं रही हैं.
विशेष: दीपावली को बुराई पर अच्छाई, अंधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व माना जाता है. झूठ पर सच की जीत का भी. पर ऐसा क्यों है कि हर दीपावली पर बुराइयां, अंधेरे और झूठ घटने के बजाय पिछली बार के मुक़ाबले बढ़े दिखते हैं.
जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गांधीवादी-समाजवादी’ जमात के सदस्य और दर्शन व इतिहास के लोकप्रिय व्याख्याता रहे जेबी कृपलानी को उनकी ‘चिर असहमति’ के लिए भी जाना जाता है. इसका नतीजा यह भी रहा कि वे बार-बार अपनी भूमिकाएं पुनर्निर्धारित करते रहे.
11 नवंबर को अयोध्या में होने वाले सरकारी दीपोत्सव को दीपों की संख्या के लिहाज़ से रिकॉर्डतोड़ और ‘दिव्य’ बनाने के लिए सप्ताह भर पहले ही सरयू के पक्के घाट से तीर्थ पुरोहितों की झोपड़ियां उजाड़कर तख़्त हटा दिए गए, जिसके चलते श्रद्धालुओं को सरयू के घाट पर पूजा-पाठ आदि कराकर जीविकोपार्जन करने वाले इन लोगों की आजीविका का ज़रिया छिन गया है.
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने राम मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा के बाद प्रतिदिन सेवा, निमित्त उत्सवों आदि को रामानंदी पद्धति से करना तय किया है. यह संप्रदाय रामभक्ति की विभिन्न धाराओं व शाखाओं के बीच समन्वय, वर्ण-विद्वेष को धता बताने के लिए जाना जाता है, जो बहुलवाद की अनुपस्थिति वाली ट्रस्ट के उलट है.
पुण्यतिथि विशेष: जनता को जागरूक करने वाली पत्रकारिता के लक्ष्य को लेकर 'महात्मा' हरगोविंद ने 1958 में सहकारिता का सफल प्रयोग करते हुए ‘जनमोर्चा’ का प्रकाशन शुरू किया. पांच लोगों के पंद्रह-पंद्रह रुपयों के योगदान से शुरू हुआ यह अख़बार आज भी व्यक्तिगत मालिकाने के बिना चल रहा है.
गत 19 अक्टूबर को हनुमानगढ़ी की बसंतिया पट्टी के एक नागा साधु की उनके दो शिष्यों द्वारा ही धारदार हथियार से हत्या कर दी गई. पुलिस का कहना है कि ये शिष्य नकद रुपयों व महंती के उत्तराधिकार के लालच में गुरुहंता बने.
लगभग चालीस साल पहले अयोध्या में रहने वाले 'गुमनामी बाबा' को सुभाष चंद्र बोस बताए जाने की कहानी एक स्थानीय अख़बार की सनसनीखेज़ सुर्ख़ी से शुरू हुई थी. इसके बाद तो नेताजी के प्रति उमड़ी भावनाओं के अतिरेक ने लोगों को बहाकर वहां ले जा छोड़ा, जहां तर्कों की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.
पुण्यतिथि विशेष: रामधारी सिंह 'दिनकर' की निगाह से लोहिया को देखना एक मित्र की निगाह से देखना तो है ही, राष्ट्रकवि की निगाह से देखना भी है, सत्ता में बैठी उस पार्टी के नेता की निगाह से देखना भी, जिसे वे उसके सबसे बड़े नेता समेत उखाड़ फेंकना चाहते थे.
देखते ही देखते संविधान व क़ानून दोनों का अनुपालन कराने की शक्तियां ऐसी राजनीति के हाथ में चली गई हैं, जिसका ख़ुद लोकतंत्र में विश्वास बहुत संदिग्ध है और जो निर्मम और अन्यायी होकर उसे अपने कुटिल मंसूबों और सुविधाओं के लिए इस्तेमाल कर रही है.
निर्माणाधीन राम मंदिर परिसर के पास स्थित ‘मस्जिद बद्र’ की ज़मीन के कथित मुतवल्ली द्वारा इसे तीस लाख रुपये में श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को बेचने के ‘गुपचुप’ एग्रीमेंट और आधी रकम एडवांस लेने पर मुस्लिम प्रतिनिधियों ने सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि सौदा करने वाले न ही मुतवल्ली हैं, न ही वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति होने के चलते उनके पास इसे बेचने का हक़ है.
सामाजिक न्याय के लिए लड़ने का दावा करने वाले हिंदुत्ववादी शक्तियों से किसी सुविचारित दीर्घकालिक रणनीति के बजाय चुनावी समीकरणों के सहारे निपटते रहे. इसने उन्हें सत्ता दिलाई तो भी सामाजिक न्यायोन्मुख नीतियां लागू व कार्यक्रम चलाकर उसकी अपील का विस्तार नहीं किया.