सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों के समूह-कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने एक बयान जारी कर कहा है कि यूएपीए के तहत ‘ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों’ के अपराधीकरण को बनाए रखते हुए आईपीसी की धारा 124ए यानी राजद्रोह को हटाने से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी को पर्याप्त राजनीतिक लाभ मिलेगा.
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नई दिल्ली: राजद्रोह के प्रावधान को निलंबित करने के एक माह बाद, 100 से अधिक पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने रविवार को कहा कि गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ के अपराधीकरण को बरकरार रखते हुए आईपीसी की धारा 124ए को हटाने से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ दल को ‘पर्याप्त राजनीतिक लाभ’ मिलेगा.
किसी राजनीतिक दल से संबद्ध न होने का दावा करने वाले कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) ने सुझाव दिया कि शीर्ष अदालत को ‘संविधान की बुनियादी संरचना’ के सिद्धांत के तहत अनुच्छेद 19 की पड़ताल सभी मौजूदा कानूनों और ‘बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर अंकुश लगाने वाले प्रावधानों के संदर्भ में करनी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने 11 मई को राजद्रोह के औपनिवेशिक कालीन दंडात्मक प्रावधान के इस्तेमाल पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कि एक ‘उपयुक्त’ सरकारी मंच इसकी फिर से जांच नहीं कर लेता. न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस अपराध के तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न करने का निर्देश दिया था.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने व्यवस्था दी थी कि प्राथमिकी दर्ज करने पर रोक के अलावा देशभर में राजद्रोह कानून के तहत पहले से चल रही जांच, लंबित मुकदमे और सभी कार्यवाही को भी स्थगित रखा जाएगा.
सीसीजी ने 108 पूर्व नौकशाहों द्वारा हस्ताक्षरित एक खुले बयान में कहा, ‘महत्वपूर्ण रूप से कोई भी राजनीतिक दल इस संबंध में निर्दोष नहीं है और सभी राजनीतिक दलों की सरकारें मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रही हैं.’
ये पूर्व नौकरशाह केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम कर चुके हैं. हस्ताक्षर करने वालों में रिसर्च एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख एएस दुलत, पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) वजाहत हबीबुल्लाह, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई, सिक्किम के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अविनाश मोहनाने और पूर्व अतिरिक्त सचिव राणा बनर्जी शामिल हैं.
बयान में कहा गया है कि किसी भी मौजूदा सरकार के प्रति असंतोष और अवमानना ऐसी भावनाएं हैं, जिनसे लोकतांत्रिक गणराज्य बनते हैं, पर तानाशाही में ऐसी भावनाओं को ही अपराध माना जाता है.
इसमें कहा गया है, ‘जहां चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से सरकारें बदली जा सकती हैं या बदली जाती हैं, वहां किसी नागरिक द्वारा सरकार के प्रति असंतोष आदि की भावना रखना और व्यक्त करना निश्चित रूप से अपराध नहीं हो सकता है.’
बयान में कहा गया है कि धारा 124ए से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि की कम दर, जांच और अभियोजन के दौरान किए गए दावों की वास्तविकता के बारे में गंभीर संदेह पैदा करती है, और ‘यह दर्शाती है कि ऐसे कानूनों का वास्तविक उद्देश्य निरंकुश शासकों को प्रतिद्वंद्वियों के दमन और जनता की राय को नियंत्रित करने के लिए एक शक्तिशाली हथियार प्रदान करना होता है.’
इसमें कहा गया है कि धारा 124ए को बदला जाए या नहीं, अंतत: इससे आम नागरिक को बहुत कम फर्क पड़ेगा.
बयान में लिखा है, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि आईपीसी की धारा 124ए के अलावा आईपीसी और अन्य अधिनियमों में कई अन्य ऐसे प्रावधान हैं जो नागरिकों के मौलिक अधिकार में बाधक बनते हैं, उन्हें सरकार द्वारा मनमानी गिरफ्तारी और मुकदमों का शिकार बनने का रास्ता दे देते हैं.’
इसमें आगे कहा गया है कि असहमति और विरोध को दबाने और जनमत के स्वतंत्र गठन को नियंत्रित करने के लिए बीते वर्षों में धारा 124ए जैसे और भी प्रावधान आ गए हैं जिनमें आईपीसी की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ आरोप या दावे), 505 (सार्वजनिक व्यवस्था बिगाड़ने वाले बयान) और 505 (2) (वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान) प्रमुख हैं.
इसमें कहा गया है, ‘इन प्रावधानों का आज पुलिस और उनके राजनीतिक आकाओं द्वारा व्यापक और नियमित रूप से दुरुपयोग किया जाता है, जिसका उद्देश्य 124ए के समान ही होता है.’
समूह ने कहा, ‘अगर आईपीसी की धारा 124ए को अदालत द्वारा असंवैधानिक माना जाता है, क्योंकि बोलने और अभिव्यक्ति उत्पन्न असहमति संरक्षित हैं (निषिद्ध नहीं), … ऐसे में यूएपीए में धारा 124ए से लिए गए तत्वों को हटाने के लिए भी इसमें (यूएपीए) संशोधन करने की जरूरत होगी. नागरिकों के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने का एकमात्र तरीका यह है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की मूल संरचना सिद्धांत के तहत उन सभी मौजूदा कानूनों और प्रावधानों के संदर्भ में, जो इस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते हैं, अनुच्छेद 19 की पड़ताल करे.’
बयान में आगे कहा गया है, ‘यूएपीए के तहत ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ के अपराधीकरण को बरकरार रखते हुए आईपीसी की धारा 124ए को हटाने से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी को पर्याप्त राजनीतिक लाभ मिलेगा.’
इसमें कहा गया है कि यूएपीए में राज्य सरकारों के पास कोई शक्ति नहीं है. इसके तहत कोई भी अदालत केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना गैरकानूनी गतिविधि के किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती.
बयान में आगे कहा गया है, ‘आईपीसी की धारा 124 ए को हटाने का मतलब यह होगा कि सरकार के खिलाफ प्रतिकूल राय को बढ़ावा देने वालों पर मुकदमा चलाने की शक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास होगी.’
बयान में आगे कहा गया है, ‘यह मानवाधिकारों की रक्षा की आड़ में धारा 124ए हटाने के लिए केंद्र सरकार को बढ़ावा देता है, जबकि वास्तविकता यह है कि इससे (केंद्र सरकार को) और अधिक कठोर तरीके से अधिकारों को दबाने की क्षमता को मजबूती मिलती है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)