19 साल की सिस्टर अभया का शव 27 मार्च 1992 को केरल के कोट्टायम स्थित सेंट पायस कॉन्वेंट के एक कुएं में मिला था. सिस्टर अभया ने चर्च के पादरी थॉमस कोट्टूर, फादर जोस पुथ्रीक्कयील और नन सेफी को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था, जिसकी वजह से उनकी हत्या कर दी गई थी. 28 साल लंबी लड़ाई लड़ने के बाद दोषियों को दिसंबर 2020 में सीबीआई की एक अदालत ने आजीवान कारावास की सज़ा सुनाई थी.
तिरुवनंतपुरम: केरल हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को सिस्टर अभया की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैथोलिक पादरी थॉमस कोट्टूर और नन सेफी को जमानत देते हुए उनकी आजीवान कारावास की सजा भी निलंबित कर दी.
उन्हें हत्या के मामले में सीबीआई कोर्ट ने करीब तीन दशक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सजा सुनाई थी. 19 वर्षीय सिस्टर अभया का शव 27 मार्च 1992 को कोट्टायम के सेंट पायस कॉन्वेंट के कुएं में मिला था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, हाईकोर्ट ने दोषियों द्वारा दायर आजीवन कारावास की सजा कम करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला दिया. याचिका को जस्टिस विनोद चंद्रन और सी. जयचंद्रन की पीठ द्वारा स्वीकार किया गया था.
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद तिरुवनंतपुरम की एक सीबीआई अदालत ने दिसंबर 2020 में दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (सबूत मिटाने) के तहत आरोप लगाए गए थे. अदालत ने फादर कोट्टूर को भारतीय दंड संहिता की धारा 449 (अनधिकार प्रवेश) का दोषी भी पाया था. दोषी जमानत पर थे और उन्हें कोविड-19 की जांच कराने के बाद हिरासत में ले लिया गया था.
कोट्टूर और सेफी इस मामले में पहले और तीसरे दोषी हैं. सीबीआई ने एक अन्य पादरी फादर जोस पुथ्रीक्कयील को दूसरे आरोपी के तौर पर नामित किया था, लेकिन अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.
यह मामला 19 वर्षीय सिस्टर अभया की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत से संबंधित है. उनका शव 27 मार्च 1992 को सेंट पायस कॉन्वेंट के एक कुएं से मिला था. अभया कोट्टयम के बीसीएम कॉलेज में द्वितीय वर्ष की छात्रा थीं और कॉन्वेंट में रहती थीं.
शुरुआत में मामले की जांच स्थानीय पुलिस और राज्य की अपराध शाखा ने की थी और दोनों ने ही कहा था कि अभया ने खुदकुशी की है.
सीबीआई ने मामले की जांच 29 मार्च 1993 को अपने हाथ में ली और तीन क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी तथा कहा था कि यह हत्या का मामला है, लेकिन अपराधियों का पता नहीं चल सका है.
सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, 27 मार्च 1992 को अभया ने सुबह जल्दी उठने के बाद कोट्टूर, पूथ्रीक्कयील और सेफी को कथित रूप से आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था.
चर्च के पादरियों और नन के लिए कठोर ब्रह्मचर्य नियमों की वजह से दो दोषियों और एक अन्य आरोपी को डर था कि उन्हें अब चर्च से निकाल दिया जाएगा. जिसके बाद उन लोगों ने अभया पर कुल्हाड़ी से हमलाकर उनकी हत्या कर दी और शव कुएं में फेंक दिया था.
मामले को पहले आत्महत्या का रूप देने की भी कोशिश की गई थी.
द हिंदू के मुताबिक, सिस्टर सेफी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील पी. विजयभानु ने दलील दी कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी 26 मार्च 1992 की रात को एक-दूसरे से मिले थे. रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शाता हो कि मृतक के शरीर पर पाई गईं चोटें आरोपियों द्वारा या उनमें से किसी एक के द्वारा दी गई थीं.
उन्होंने कहा कि नन सेफी 22 दिसंबर 2020 से आजीवन कारावास की सजा काट रही हैं. अगर उनकी अपील के निपटारे तक सजा निलंबित नहीं की जाती है तो उन्हें गंभीर पूर्वाग्रह और अपूरणीय क्षति होगी.
वहीं, फादर कोट्टूर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील बी. रमन पिल्लई ने कहा कि विशेष अदालत द्वारा दी गई सजा अनुचित और गलत थी. ट्रायल में गंभीर अवैधताएं और अनियमितताएं शुमार थीं.
उन्होंने तर्क प्रस्तुत किया, ‘दोषसिद्धि और सजा तीन अविश्वसनीय गवाहों द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर थी. इसके अलावा फैसला एक निराधार कहानी पर आधारित था. यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं था कि अभया के शरीर पर पाई गईं चोटें किसी एक आरोपी या संयुक्त रूप से दोनों आरोपियों के द्वारा पहुंचाई गई थीं.’
उन्होंने आगे तर्क दिया कि फैसला मामले में सबूतों का परीक्षण किए बिना सुनाया गया था.
बहरहाल, चार सितंबर 2008 को केरल उच्च न्यायालय ने मामले को लेकर सीबीआई को फटकार लगाई थी और कहा था कि एजेंसी अभी भी राजनीतिक और नौकरशाही की शक्ति रखने वालों की कैदी है तथा सीबीआई की दिल्ली इकाई को निर्देश दिया था कि वह जांच को कोच्चि इकाई को सौंप दे.
इसके बाद सीबीआई ने सिस्टर अभया की हत्या के तकरीबन 16 साल बाद नवंबर 2008 में तीनों आरोपियों- फादर कोट्टूर, फादर पूथ्रीक्कयील और नन सेफी को गिरफ्तार कर लिया था.
सिस्टर अभया का मामला केरल के सबसे लंबे चलने वाले और सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक था. इस मामले में ट्रायल के दौरान 49 में से अभियोजन पक्ष के आठ गवाह, जिनमें से अधिकांश चर्च के करीबी थे, अपने बयान से मुकर गए थे.