महाराष्ट्रीय अस्मिता से अधिक बलशाली अब हिंदुत्व की पुकार है

भाजपा की फूहड़, हिंसक, बेहिस विभाजनकारी शासन नीति से अलग सभ्य, शालीन, ज़िम्मेदार शासन नीति और आचरण के लिए उद्धव ठाकरे की सरकार को याद किया जाएगा. कम से कम इस प्रयास के लिए कि एक अतीत के बावजूद सभ्यता का प्रयास किया जा सकता है.

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23 जून को गुवाहाटी के एक होटल में बागी शिवसेना विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे. (फोटो: पीटीआई)

भाजपा की फूहड़, हिंसक, बेहिस विभाजनकारी शासन नीति से अलग सभ्य, शालीन, ज़िम्मेदार शासन नीति और आचरण के लिए उद्धव ठाकरे की सरकार को याद किया जाएगा. कम से कम इस प्रयास के लिए कि एक अतीत के बावजूद सभ्यता का प्रयास किया जा सकता है.

23 जून को गुवाहाटी के एक होटल में बागी शिवसेना विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई और गुवाहाटी में क्या रिश्ता है? यही कि वे भारत नामक देश या राष्ट्र के दो शहर हैं. कुछ दिन पहले तक अपनी महाराष्ट्रीय अस्मिता के दंभ में चूर राजनीति के लिए यह घड़ी आत्मचिंतन की होनी चाहिए.

महाराष्ट्र की सरकार का भविष्य एक दूसरे राज्य असम में तय हो रहा है. लेकिन इसे दूसरे तरीक़े से भी देखा जा सकता है. महाराष्ट्रीय अस्मिता से अधिक बलशाली अब हिंदुत्व की पुकार है.

आख़िर मुंबई से भागे, या भगाए गए शिवसेना के विधायकों के गिरोह के अगुवा की शिकायत तो यही है न? उनके मुताबिक़ उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की राह छोड़ दी है और विचारधारा के साथ समझौता कर लिया है. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर ‘महा विकासअघाड़ी’ गठबंधन का निर्माण और फिर उसकी सरकार बनाना उनके मुताबिक़ शिवसेना की अपनी विचारधारा के साथ द्रोह है.

शिवसेना के विधायक एकनाथ शिंदे ने यह बार-बार कहा है कि वे सेना के संस्थापक बाल ठाकरे की मूल विचारधारा की रक्षा के लिए इस सरकार से अलग हुए हैं. विश्लेषक कारण कुछ और बतला रहे है. दल में उनकी उपेक्षा, संवाद का अभाव आदि. लेकिन हमें शिंदे साहब की बात को यूं ही नहीं उड़ा देना चाहिए.

वे बार-बार ज़ोर दे रहे हैं कि उनके लिए हिंदुत्व की विचारधारा ही महत्त्वपूर्ण है और उसी के लिए वे सत्ता का साथ छोड़ रहे हैं. कह रहे हैं कि शिवसेना का इस अघाड़ी गठबंधन में शामिल होना उसके अस्तित्व तर्क से असंगत है. जो दल गर्व से ऐलान करता हो कि उसने बाबरी मस्जिद गिराई थी, वह कांग्रेस के साथ सरकार बनाए, इससे बेतुकी बात आख़िर क्या हो सकती थी?

यही हमने भी तब सोचा था जब इस गठबंधन की सुगबुगाहट हुई थी. हम जैसे लोगों ने तब कांग्रेस की आलोचना यह कहते हुए की थी कि वह शिवसेना जैसे घोर हिंदुत्ववादी दल के साथ सरकार में जाने की बात सोच भी कैसे सकती है. लेकिन उसी समय महाराष्ट्र में अलग-अलग इलाक़ों में भिन्न-भिन्न समुदायों और वर्गों के लोगों से बात करने पर हैरानी हुई कि वे इस गठबंधन का स्वागत कर रहे थे.

वे चाहे मज़दूर संगठनों के लोग हों या मुसलमान, सबका कहना था कि आज के हालात में यह गठबंधन उनके लिए राहत की तरह है. जो भी भारतीय जनता पार्टी को बाहर रख सके, वह उनके लिए वरेण्य है.

हिंदुत्व कहने से हमें उस झूठ, बेईमानी, धोखाधड़ी, ढिठाई, असंवेदनशीलता, हिंसा, क्रूरता और अश्लीलता का आभास नहीं मिलता जो आज की भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की विशेषता है. इनका हमला रोज़ाना मुसलमानों, ईसाइयों पर तो होता ही है, समाज के दूसरे तबके भी इसे झेलने को बाध्य हैं क्योंकि इन दो समुदायों के लिए सरकार के इस बर्ताव को स्वीकार्य मान लिया गया है.

अगर झूठ और हिंसा को हम मुसलमानों के संदर्भ में क़बूल करेंगे तो फिर ख़ुद उनसे कैसे बच सकते हैं?

जैसे सिलचर के वे लोग, जिन्होंने भाजपा को विजयी बनाया क्योंकि उनके लिए मुसलमानों से घृणा किसी भी दूसरी चीज़ से अधिक ताकतवर थी, अभी भाजपा सरकार की बेहिसी झेल रहे हैं. पूरा सिलचर अभूतपूर्व बाढ़ में डूबा हुआ है.

राज्य का सारा ध्यान अभी सिलचर और असम की जनता को राहत देने पर होना चाहिए लेकिन सरकारी तंत्र महाराष्ट्र के शिवसेना के विधायकों की निगरानी, उनकी मेज़बानी में लगा हुआ है. आप मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा का वक्तव्य पढ़ें और वह वक्तव्य देते हुए उनकी तस्वीर देखें: कुटिलता और क्रूरता अगर साथ कहीं हो तो यहां है.

गुवाहाटी में महाराष्ट्र के विधायकों की मौजूदगी के बारे में पूछने पर उन्होंने साफ़ इनकार किया कि इसकी उनको कोई जानकारी है. क्या इस बाढ़ के बीच इस तरह की राजनीतिक तिकड़म में ध्यान लगाना चाहिए? शर्मा ने कहा कि लोग बाहर से आएंगे, होटल में ठहरेंगे, उससे कमाई होगी तभी तो बाढ़ग्रस्त लोगों को राहत दी जा सकेगी! वे तो चाहते हैं कि देश भर से विधायक असम आएं, यहां का आतिथ्य स्वीकार करें.

इसके पहले भी जब गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस उठा ले आई थी तब भी शर्मा ने चेहरे पर बिना किसी विकार लाए कहा था कि वे जानते नहीं कि जिग्नेश कौन हैं और कहां हैं?

जिस समय असम के लोग बाढ़ की विभीषिका का सामना कर रहे हैं, गुवाहाटी के पांच सितारा होटल में जनप्रतिनिधि शतरंज खेल रहे हैं. किसी ने ठीक ही लिखा है कि इसे देखकर प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी की याद आ जाती है. अवध पर अंग्रेजों का क़ब्ज़ा हो रहा था, नवाब शतरंज खेल रहे थे. यह है वह बेपरवाही जो भाजपा के नेताओं के आचरण की विशेषता है.

गुवाहाटी के होटल में शतरंज खेलते एकनाथ शिंदे. (फोटो: पीटीआई)

जब पूरे भारत में नौजवान हताशा और बदहवासी में सड़क पर थे, प्रधानमंत्री पुष्पवर्षा का सुख ले रहे थे. जैसे असम में बाढ़ की आपदा के बीच महाराष्ट्र की सरकार गिराने में भाजपा व्यस्त है, वैसे ही कोरोना की पहली लहर के बीच वह मध्य प्रदेश की सरकार गिराने में व्यस्त थी. यह जनता के प्रति वह असंवेदनशीलता है जो भाजपा की विशेषता है.

महाराष्ट्र के लोग यह सब कुछ देवेंद्र फड़णवीस की सरकार में झेल चुके थे और उससे जो भी उन्हें निजात दिलाए, उसके लिए तैयार थे. इसी वजह से महाअघाड़ी गठबंधन का मुसलमान समुदाय ने भी स्वागत किया. शिवसेना की पिछली यादों के बावजूद.

और पिछले दो वर्ष हमें महाराष्ट्र से वे खबरें नहीं मिलीं जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, असम जैसे भाजपा शासित राज्यों से मिल रही थीं. मुसलमानों को पीट-पीटकर उनकी हत्या की, उन्हें गाली देते हुए जुलूस के साथ उनके मोहल्लों पर हमले किए, मस्जिदों, गिरजाघरों पर हमले, पादरियों के साथ मारपीट, उन्हें गिरफ़्तार करने, नमाज़ भंग करने, बुलडोज़र से उनके घरों को ध्वस्त करने या मुसलमानों की किसी न किसी बहाने से गिरफ़्तारी की जो खबरें इन राज्यों से मिलती रही हैं, महाराष्ट्र उनसे आज़ाद रहा.

वहां मुसलमानों के संहार के नारों वाली हिंदू धर्म संसद या रैली नहीं हुईं. मुसलमानों को रोज़ाना का अपमान जो इन राज्यों में झेलना पड़ता है, महाराष्ट्र के मुसलमान उससे मुक्त रहे. यह पर्याप्त नहीं लेकिन कम भी नहीं है. यह आपको तभी मालूम होगा जब आप मुसलमान या ईसाई हों.

यह वह हिंदुत्व है, जिसकी कमी शिंदे महसूस कर रहे हैं. अगर आपको याद हो तो बीच में भाजपा नेता और अब महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी साहब ने उद्धव ठाकरे पर व्यंग्य किया था कि अब वह धर्मनिरपेक्ष हो चले हैं. और उसका जवाब उन्हें शिवसेना के नेताओं ने यह पूछते हुए दिया था कि क्या राज्यपाल महोदय को भारत का संविधान याद नहीं!

यह तब जब प्रधानमंत्री गर्वपूर्वक अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि उन्होंने ऐसी हालत पैदा कर दी कि अब कोई राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता को याद करने की भूल नहीं करता. किसे यह अंदाज था कि धर्मनिरपेक्षता को शिवसेना एक उसूल के तौर भी क़बूल करेगी.

भाजपा की फूहड़, हिंसक, बेहिस विभाजनकारी शासन नीति से अलग सभ्य, शालीन, ज़िम्मेदार शासन नीति और आचरण के लिए उद्धव ठाकरे की सरकार को याद किया जाएगा. कम से कम इस प्रयास के लिए कि एक अतीत के बावजूद सभ्यता का प्रयास किया जा सकता है.

भाजपा को धर्मनिरपेक्षता से परहेज़ इसी वजह से है कि वह सभ्यता के अभ्यास की चुनौती है. आख़िर महाराष्ट्र में ही सभ्यता क्यों रहे जब पूरे देश को उससे एलर्जी है! कैसे साबित होगा कि गुजरात से असम तक जो भारत फैला है, महाराष्ट्र भी उसी का अंग है!

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)