सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ने गुजरात दंगों में गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री की क़ानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज मामले में तीस्ता के अलावा आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार को भी आरोपी बनाया गया है.
अहमदाबाद/नई दिल्ली: 2002 में गुजरात की मुस्लिम विरोधी हिंसा में नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट देने के निचली अदालत के फैसले का बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जकिया जाफरी की याचिका खारिज किए जाने के एक दिन से भी कम समय में राज्य के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने याचिकाकर्ताओं में से एक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार कर लिया है.
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. जाफरी के पति एहसान जाफरी दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मार दिए गए थे.
मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस ने उनके सांताक्रूज स्थित आवास से हिरासत में लिया.
सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के परिवार ने द वायर को बताया कि उन्हें गुजरात पुलिस के एटीएस ने मुंबई में उनके घर से हिरासत में लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया और फिर अहमदाबाद ले जाया गया. यह स्पष्ट नहीं है कि एटीएस ने उन्हें क्यों हिरासत में लिया, हालांकि मामला अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा (Crime Branch) द्वारा दर्ज किया गया था.
Teesta is being taken by the Gujarat ATS officers- there are 6 of them, 2 lady officers. She is being taken to Santa Cruz police station and then is likely to be taken to Ahmedabad.
Senior Gujarat ATS officer Jasmin Rosia came later. pic.twitter.com/dgtIjse5YF
— Ashlin Mathew (@ashlinpmathew) June 25, 2022
एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के रूप में उपयोग करना), 120बी (आपराधिक साजिश), 194 (गंभीर अपराध का दोष सिद्ध करने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) और 211 (घायल करने के लिए किए गए अपराध का झूठा आरोप) का जिक्र है.
सीतलवाड़ के साथ गुजरात के दो आईपीएस अधिकारी – संजीव भट्ट, जो पहले से ही एक अन्य मामले में जेल में हैं और आरबी श्रीकुमार – भी आरोपी हैं.
इन तीनों पर गुजरात दंगों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) को गुमराह करने की साजिश रचने का आरोप है, जो गुजरात दंगे और नरेंद्र मोदी की बतौर मुख्यमंत्री इसमें अगर कोई भूमिका थी, की जांच कर रही थीं.
दंगों में 1,200 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे.
गौरतलब है कि एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के बीते शुक्रवार (24 जून) के फैसले के एक हिस्से का हवाला दिया गया है, जिसमें जकिया जाफरी की उस याचिका को खारिज कर दिया गया था जिसमें एसआईटी द्वारा सामूहिक हिंसा के पीछे एक बड़ी साजिश को खारिज करने को चुनौती दी गई थी.
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था,
अंत में हमें यह प्रतीत होता है कि गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जो उनके अपने ज्ञान के लिए झूठे थे. वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए.
एफआईआर अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच में एक पुलिस इंस्पेक्टर दर्शन सिंह बी. बराड की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी. एफआईआर में सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार ‘और अन्य’ पर झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है, ताकि कई लोगों को मौत की सजा के साथ दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सके.
इसमें कहा गया है कि उन्होंने ‘चोट पहुंचाने के इरादे से निर्दोष लोगों के खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक कार्यवाही’ भी शुरू की थी.
कानूनी विशेषज्ञों ने सीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया है, क्योंकि उन पर लगाए गए आरोपों में ऐसा कोई आरोप नहीं है, जिसमें सात साल या उससे अधिक की जेल की सजा का प्रावधान हो- क़ैद की यह अवधि वह तय सीमा है, जो सुप्रीम कोर्ट के अनुसार उन मामलों में, जहां अगर पुलिस किसी आरोपी व्यक्ति को पूछताछ के लिए हिरासत में लेना चाहती है, पार होनी चाहिए.
सीतलवाड़ ने गुजरात एटीएस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए कहा है कि वे उनके घर में घुसे और उनके साथ मारपीट की. कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हें अपने वकील से संपर्क करने से रोक दिया गया था. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी जान को खतरा है.
एफआईआर में कहा गया है कि भट्ट और श्रीकुमार, जो कथित कमीशन और चूक के दौरान पुलिस अधिकारियों की सेवा कर रहे थे, ने ‘कई लोगों को चोट पहुंचाने के इरादे से गलत रिकॉर्ड बनाया’, जो कि आईपीसी की धारा 218 के तहत दोषी है.
आरोपियों ने ‘साजिश रची, झूठे रिकॉर्ड तैयार किए’ और बेईमानी से उन रिकॉर्डों का इस्तेमाल कई लोगों को नुकसान और चोट पहुंचाने के इरादे से किया, जो कि आईपीसी की धारा 468 (जालसाजी) और 471 (धोखाधड़ी या बेईमानी से जाली दस्तावेजों का उपयोग करके) के तहत दंडनीय है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एक साक्षात्कार में सीतलवाड़ पर निशाना साधा है.
उन्होंने कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा संचालित एनजीओ ने ‘गुजरात दंगों के बारे में आधारहीन जानकारी दी’ और उस पर मामले की प्रमुख याचिकाकर्ता जकिया जाफरी को उकसाने का आरोप लगाया, जिनकी याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.
शाह ने कहा, ‘मैंने फैसले को बहुत ध्यान से पढ़ा है. फैसले में तीस्ता सीतलवाड़ के नाम का स्पष्ट उल्लेख है. उनके द्वारा चलाए जा रहे एनजीओ – मुझे उसका नाम याद नहीं है – ने पुलिस को दंगों के बारे में आधारहीन जानकारी दी थी.’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात सरकार, जो एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका में प्रतिवादी थी, ने सीतलवाड़ के याचिका में शामिल होने पर ‘गंभीर आपत्ति’ जताई थी.
अदालत ने कहा कि सरकार ने न केवल ये तर्क दिया था कि उन्हें (तीस्ता) मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह भी जोड़ा कि उनके पिछले इतिहास (उन पर लगे आरोप) को देखे जाने की भी जरूरत है, क्योंकि वे बदले की भावना के अपने परोक्ष मकसद के चलते उनको (मोदी) परेशान करने के लिए जकिया एहसान जाफरी के जज्बातों का फायदा उठा रही हैं.
तीस्ता सीतलवाड़, संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार
एफआईआर की पहली आरोपी तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने गुजरात में 2002 के मुस्लिम विरोधी नरसंहार, विशेष रूप से गुलबर्ग सोसाइटी और नरोदा पाटिया हत्याओं से उपजे मामलों का प्रचार और मुकदमेबाजी की है. बाद के मामले में प्रमुख भाजपा नेता और पूर्व मंत्री माया कोडनानी को दोषी ठहराया गया था.
दूसरे आरोपी संजीव भट्ट – जो 2002 के दंगों के समय पुलिस उप महानिरीक्षक डीआईजी थे – ने मोदी पर हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था.
उन्हें 2018 में हिरासत में मौत के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था जो दो दशक से अधिक पुराना था. उनके परिवार ने हलफनामे के लिए उनकी गिरफ्तारी को राजकीय उत्पीड़न बताया है.
तीसरे आरोपी आरबी श्रीकुमार ने नानावटी आयोग को बताया कि उन्हें गुजरात पुलिस के डीजीपी ने 2002 में सूचित किया था कि मोदी ने पुलिस से कहा था कि वे गोधरा ट्रेन आग में 59 कारसेवकों की कथित सुनियोजित हत्या के खिलाफ ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने’ दें.
श्रीकुमार डीजीपी बनने की कतार में थे, लेकिन हटा दिया गया था.
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