उत्तराखंड: वकीलों ने सीएम धामी को लिखा- हेट स्पीच और हिंसा के प्रयासों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें

देश के कुछ वकीलों और क़ानूनी पेशेवरों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में नफ़रत और हिंसा को बढ़ावा देने वालों के ख़िलाफ़ प्रदेश सरकार का रुख़ नरम है और अल्पसंख्यकों को लेकर उसका रवैया पक्षपातपूर्ण है.

//
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. (फोटो: पीटीआई)

देश के कुछ वकीलों और क़ानूनी पेशेवरों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में नफ़रत और हिंसा को बढ़ावा देने वालों के ख़िलाफ़ प्रदेश सरकार का रुख़ नरम है और अल्पसंख्यकों को लेकर उसका रवैया पक्षपातपूर्ण है.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उत्तराखंड में पिछले पांच वर्षों के भाजपा शासन के दौरान ‘नफ़रत भरी भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग)’ की कई घटनाओं की ओर इशारा करते हुए वरिष्ठ वकीलों और कानूनी पेशेवरों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे एक खुले पत्र में आरोप लगाया है कि ‘राज्य सरकार ऐसी घटनाओं में समान रूप से कानून लागू करती प्रतीत नहीं होती है.’

उन्होंने कहा है, ‘इसके बजाय एक ऐसा पैटर्न दिखाई देता है जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा के करीबी लोगों का समर्थन किया जाता है.’

पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 42 हस्ताक्षरकर्ताओं ने आगाह किया कि आरोपियों को संरक्षण प्रदान करने वाले ‘ऐसे कृत्यों का प्रभाव आगे नफरत व हिंसा को और प्रोत्साहित करेगा’ जिसके स्थायी प्रभाव नागरिकों के जीवन व अधिकारों और राज्य के भविष्य पर भी दिखाई देंगे.

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश, संजय पारिख, प्रशांत भूषण, एनडी पांचोली, राजू रामचंद्रन, कामिनी जायसवाल, गोपाल शंकर नारायण और चंद्र उदय सिंह भी शामिल हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे समय में जब सरकार समान नागरिक संहिता लाने के संबंध में कई सार्वजनिक बयान दे रही है, तो ‘यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि सरकार संविधान के अनुसार आपराधिक संहिता एक समान रूप से लागू करे.’

उन्होंने कहा, ‘अन्यथा इस तरह के अन्य अभ्यास नागरिकों के एक समूह को उकसाने का उद्देश्य प्रतीत होते हैं, और समान अधिकारों को सम्मान देना सुनिश्चित नहीं करते हैं.’

विभिन्न अखबारों और न्यूज पोर्टल में छपे 19 लेखों, जिनमें द वायर  के 4 लेख भी शामिल हैं, का हवाला देते हुए पत्र में ऐसे महत्वपूर्ण उदाहरणों की ओर इशारा किया गया है जहां उत्तराखंड में कानून को समान रूप से लागू करने का स्पष्ट अभाव था.

‘जमानत शर्तों का उल्लंघन करने के बावजूद नरसिंहानंद की जमानत रद्द कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किए’

इस संबंध में, पत्र में पहला मुद्दा यह उठाया गया है कि ‘कैसे दिसंबर 2021 में हरिद्वार में एक कार्यक्रम हुआ, जिसमें मुस्लिमों के नरसंहार का खुला आह्वान किया गया’ जिसकी निंदा सेना और नौसेना के सेवानिवृत प्रमुखों, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, केरल और अन्य राज्यों के पूर्व पुलिस महानिदेशकों, 76 वकीलों और अन्य कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा की गई थी और इसे नागरिकों के जीवन और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था.

पत्र में कहा गया है कि कार्यक्रम के खिलाफ इस तरह की आवाजें उठने के बावजूद भी तीन हफ्तों की देरी के बाद केवल दो आयोजकों को पकड़ा गया. दोनों को जमानत मिल गई है.

पत्र में कहा गया है कि जमानत पाए एक आरोपी यति नरसिंहानंद को मिली 7 फरवरी 2022 को जमानत की शर्त में दर्ज है कि वह सामाजिक सद्भाव के लिए हानिकारक किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे.

लेकिन वकीलों ने इस ओर ध्यान आकर्षित कराया है कि नरसिंहानंद ‘3 अप्रैल को दिल्ली में’ और ‘सोशल मीडिया’ में भी ऐसे नफरती भाषण दे चुके हैं. इस संबंध में उन पर 3 अप्रैल और 9 जून को दो एफआईआर भी दर्ज हो चुकी हैं.

पत्र में कहा गया है कि ‘इस तरह जमानत शर्तों का उल्लंघन करने के बावजूद भी ऐसा नजर आता है कि अब तक उनकी जमानत रद्द करने की मांग करने के संबंध में कोई प्रयास नहीं हुए हैं.’

यति नरसिंहानंद. (फोटो: पीटीआई)

‘2017 के बाद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएं’

पत्र में ‘2017 के बाद से पूरे राज्य में हुईं घटनाओं की श्रृंखला का भी उल्लेख किया गया है’, जिसके चलते सिविल सोसाइटी समूहों ने इस साल जनवरी में राज्य सरकार को लिखकर कहा था कि ‘उत्तराखंड में इस पैमाने पर कभी हिंसा नहीं हुई.’

पत्र में कहा गया था कि ‘2017 और 2018 में इस तरह की 13 घटनाएं हुईं.’ और सबसे ताजा घटना रुड़की की 3 अक्टूबर 2021 की है जहां दिनदहाड़े एक चर्च में तोड़फोड़ की गई थी और चार लोगों को बुरी तरह पीटकर घायल कर दिया था. एक घटना देहरादून के सीपीएम कार्यालय के साथ अक्टूबर 2017 में हुई.

पत्र में कहा गया है कि कई गवाह होने के बावजूद इन दोनों मामलों में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई.

‘सरकार ने लोगों को भड़काने वाले आह्वानों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए’

पत्र में मुख्यमंत्री धामी को संबोधित करते हुए लिखा गया है कि हरिद्वार में 16 अप्रैल को हुई हिंसक घटनाओं के बाद सरकार ने उसी गांव में ‘हिंदू महापंचायत’ के भड़काऊ और उकसाने वाले आह्वान को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 26 अप्रैल को मुख्य सचिव को इस संबंध में निर्देश नहीं दिया.

पत्र में कहा गया है कि शीर्ष अदालत को राज्य सरकार से कहना पड़ा कि वह संविधान के तहत अपनी जिम्मेदारी निभाए. इसमें कहा गया है कि ‘अदालत के आदेश के बाद रातों-रात महापंचायत पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जबकि सरकार को इस घटनाक्रम के बारे में पहले से पता था, लेकिन फिर भी उसने तब तक कोई फैसला नहीं लिया जब तक कि अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया.’

पत्र में आगे कहा गया है कि इस आयोजन में बोलने वाले लोगों में श्री आनंद स्वरूप और अन्य शामिल थे, जो स्वयं को दिसंबर के कार्यक्रम की कोर कमेटी का हिस्सा बता रहे थे, जो दिखाता है कि राज्य में हिंसा भड़काने के बार-बार प्रयास और ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने में प्रशासन की बार-बार की विफलता के बीच सीधा संबंध है.

मुख्यमंत्री धामी पर पक्षपातपूर्ण बयान देने का आरोप

पत्र में धामी और अन्य निर्वाचित सदस्यों पर पिछले साल से राज्य में ‘जनसांख्यिकीय परिवर्तन’ संबंधी टिप्पणियां करने का भी आरोप लगाया है.

पत्र में वकीलों ने कहा कि एक आदेश उत्तराखंड सरकार द्वारा 24 सितंबर 2021 को जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि ‘इस जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण एक विशेष समुदाय के सदस्य उन क्षेत्रों से पलायन करने के लिए मजबूर हैं.’

पत्र में कहा गया है कि हालांकि आज तक ऐसे किसी स्थान के बारे में नहीं बताया गया है जहां से ऐसा पलायन हुआ हो. हाल ही में, मजारों (और अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य धार्मिक संस्थानों) द्वारा अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा करने संबंधी बयान भी दिए गए.

पत्र में कहा गया है कि ‘सभी समुदायों के धार्मिक प्रतिष्ठान भारत में सरकारी जमीन कब्जाने के आरोपी रहे हैं’ और ‘बिना सबूत के ऐसे पक्षपाती बयान भय और असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं, जिससे कुछ लोग अपने साथी नागरिकों से ही डरने लगते हैं.’

आखिर में वकीलों ने हत्या के एक मामले के आरोपी सलमान के रुद्रपुर स्थित घर और गोदाम को तोड़े जाने के मुद्दे को उठाया.

उन्होंने कहा, ‘यह उल्लेख करना उचित होगा कि उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, किसी अन्य समुदाय के आरोपी के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है और इस मामले में कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन करने का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है.’

धामी सरकार से बिना भेदभाव क़ानून लागू करने का आग्रह किया

इन सभी उदाहरणों को देखते हुए पत्र में उत्तराखंड की धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से आग्रह किया गया है कि वह ‘बिना किसी भेदभाव के क़ानून लागू करना सुनिश्चित करे’ और जो भी राज्य में नफरत को बढ़ावा देने और भीड़ की हिंसा को फैलाने की कोशिश करें, उनके खिलाफ कार्रवाई करे.

पत्र में यह भी मांग की गई है कि सरकार राज्य में मॉब लिचिंग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2018 के निर्देशों को ‘पूरी तरह लागू’ करे और ‘दिसंबर के कार्यक्रमों के सभी आयोजकों के साथ-साथ ऐसे अन्य संगठन या व्यक्तियों के खिलाफ कानून की सभी मान्य धाराओं के तहत तत्काल कार्रवाई करे जो कि हिंसा के लिए खुला आह्वान करने में शामिल हैं.’

धामी सरकार को ‘सार्वजनिक रूप से यह कहने के लिए कहा गया है कि आपकी सरकार राज्य में रहने वाले सभी लोगों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी’ और ‘हिंसा भड़काकर व हिंसा को बढ़ावा देकर जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को दी गई जमानत को तुरंत रद्द करने की मांग करेगी.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)