भीमा-कोरेगांव केस: वरवरा राव ने स्थायी चिकित्सा ज़मानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपी 83 वर्षीय वरवरा राव ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें स्थायी चिकित्सा ज़मानत के उनके आवेदन को ख़ारिज कर दिया गया था. उन्हें चिकित्सा ज़मानत मिली थी और जुलाई में आत्मसमर्पण करना है. याचिका में कहा गया है कि आगे की कोई भी क़ैद उनके ख़राब होते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए मौत की घंटी होगी.

तेलुगू कवि वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई)

भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपी 83 वर्षीय वरवरा राव ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें स्थायी चिकित्सा ज़मानत के उनके आवेदन को ख़ारिज कर दिया गया था. उन्हें चिकित्सा ज़मानत मिली थी और जुलाई में आत्मसमर्पण करना है. याचिका में कहा गया है कि आगे की कोई भी क़ैद उनके ख़राब होते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए मौत की घंटी होगी.

तेलुगू कवि वरवराा राव. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपी तेलुगू कवि वरवरा राव द्वारा दायर याचिका पर 11 जुलाई को सुनवाई करेगा.

याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें स्थायी चिकित्सा जमानत के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि राव 83 वर्षीय व्यक्ति हैं और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं.

ग्रोवर ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका का उल्लेख करते हुए पीठ से कहा, ‘मैं बस इतना कह रहा हूं कि अदालत के फिर से खुलने पर याचिका को सूचीबद्ध किया जाए.’

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को चिकित्सा जमानत मिली थी और उन्हें जुलाई में आत्मसमर्पण करना है.

पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 11 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करेगी.

अवकाशकालीन पीठ ने आदेश दिया, ‘याचिकाकर्ता की ओर से मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का आग्रह करने वाले विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा मौखिक रूप से उल्लेख किए जाने पर रजिस्ट्री को इस मामले को एक उपयुक्त पीठ के समक्ष 11 जुलाई, 2022 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जाता है.’

वरवरा राव ने 13 अप्रैल के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अधिवक्ता नूपुर कुमार के माध्यम से दायर अपनी अपील में कहा था, ‘याचिकाकर्ता, 83 वर्षीय प्रसिद्ध तेलुगू कवि और वक्ता हैं, जो विचाराधीन कैदी के रूप में दो साल से अधिक समय तक जेल में रहे हैं. वर्तमान में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा चिकित्सा आधार पर दी गई जमानत पर है. कोई भी आगे की कैद उनके खराब होते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए मौत की घंटी होगी.’

जस्टिस एसबी शुक्रे और जस्टिस जीए सानप की पीठ ने राव की जमानत याचिका को खारिज करने के अलावा मुकदमे की अवधि के दौरान तेलंगाना में रहने के उनके आवेदन को भी खारिज कर दिया था.

हालांकि, अदालत ने उन्हें चिकित्सा आधार पर अस्थायी जमानत देने के पहले के आदेश को तीन महीने और बढ़ा दिया था.

उसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस साल मई में भीमा कोरेगांव मामले में वरवरा राव और दो अन्य आरोपियों- अरुण फरेरा और  वर्नोन गॉन्जाल्विस द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट के दिसंबर 2021 के फैसले की पुनर्विचार करने की मांग की गई थी, जिसने उन्हें डिफॉल्ट जमानत से इनकार कर दिया गया था.

हाईकोर्ट ने कहा था कि उसके लिए यह कहना मुश्किल है कि उसके पहले के फैसले में कोई तथ्यात्मक त्रुटि थी और उस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.

तीनों आरोपियों ने जस्टिस शिंदे की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित 1 दिसंबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मामले में सह-अभियुक्त वकील सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी गई थी, लेकिन इन तीन याचिकाकर्ताओं सहित आठ अन्य आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था.

बता दें वरवरा राव को 28 अगस्त, 2018 को हैदराबाद स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था और वह भीमा कोरेगांव मामले में विचाराधीन कैदी हैं.

उनके खिलाफ पुणे पुलिस ने आठ जनवरी, 2018 को विश्रामबाग थाने में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों तहत एफआईआर दर्ज की थी.

मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी.

पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि सम्मेलन कथित तौर पर माओवादियों से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा आयोजित किया गया था. बाद में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी.

एनआईए ने भी आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.

मामले में केवल एक अन्य आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.

फादर स्टेन स्वामी की पिछले साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे. अन्य आरोपी विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में बंद हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)