संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र पर किसानों से किए वादे से पीछे हटने का आरोप लगाया

निरस्त हो चुके तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति का गठन किया गया और न ही आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज फ़र्ज़ी मामले वापस लिए गए हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता. (फोटो: पीटीआई)

निरस्त हो चुके तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति का गठन किया गया और न ही आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज फ़र्ज़ी मामले वापस लिए गए हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने रविवार को केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी निराशा व्यक्त की और आरोप लगाया कि केंद्र पिछले साल नौ दिसंबर को किसानों से किए गए लिखित वादों से पूरी तरह मुकर रहा है.

रविवार को गाजियाबाद में आयोजित किसान मोर्चा से जुड़े सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक में किसान आंदोलन को लेकर तीन अहम फैसले लिए गए.

संगठन द्वारा जारी एक बयान में किसान संगठन ने दावा किया कि न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति का गठन किया गया और न ही आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज ‘फर्जी’ मामले वापस लिए गए हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों की सबसे बड़ी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी को लेकर विचार करने के लिए तैयार नहीं है.

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में विवादित तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की घोषणा की थी.

इन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर तकरीबन एक साल तक प्रदर्शन किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  द्वारा विवादित तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद किसानों ने दिसंबर 2021 में अपना आंदोलन स्थगित कर दिया था.

तब भारतीय किसान यूनियन और अन्य किसान नेताओं ने कहा था कि वे राष्ट्रीय राजधानी छोड़ रहे हैं, लेकिन अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो वे आंदोलन फिर से शुरू करेंगे.

संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा कि सरकार द्वारा इस कथित ‘विश्वासघात’ के विरोध में आगामी 18 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से 31 जुलाई (शहीद उधम सिंह के शहादत दिवस) तक देश भर में जिला स्तर पर ‘विश्वासघात के खिलाफ विरोध प्रदर्शन’, जनसभाओं का आयोजन किया जाएगा.

मोर्चा ने यह भी घोषणा की है कि इस अभियान के अंत में 31 जुलाई को दिन में 11 बजे से दोपहर तीन बजे तक देश भर के सभी प्रमुख राजमार्गों पर चक्का जाम का आयोजन किया जाएगा.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बैठक में यह भी निर्णय लिया गया है कि कृषि संगठन बेरोजगार युवाओं और पूर्व सैनिकों को अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ लामबंद करेंगे, जो राष्ट्र विरोधी और युवा विरोधी होने के साथ-साथ किसान विरोधी भी है.

बयान में कहा गया, ‘अग्निपथ योजना का पर्दाफाश करने के लिए देश भर में सात अगस्त से 14 अगस्त तक ‘जय जवान, जय किसान’ सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे, जिसमें पूर्व सैनिकों और बेरोजगार युवाओं को भी आमंत्रित किया जाएगा.’

इसके अलावा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त करने की मांग को लेकर आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर 18 अगस्त से 20 अगस्त तक लखीमपुर खीरी में 75 घंटे का सामूहिक धरना होगा.

गौरतलब है कि पिछले साल तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया गांव में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोग मारे गए थे. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा को नौ अक्टूबर 2021 को मुख्य अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार किया गया था.

तीन अक्टूबर 2021 को यानी घटना के दिन लखीमपुर खीरी के सांसद अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के विरोध में वहां के आंदोलित किसानों ने उनके (टेनी) पैतृक गांव बनबीरपुर में आयोजित एक समारोह में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के जाने का विरोध किया था.

केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा लखीमपुर खीरी हिंसा के दौरान किसानों की मौत के मामले में आरोपी हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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