सपोर्ट रोहित रंजन का हैशटैग चलाने वाले ज़ी न्यूज़ ने थाने में शिकायत क्यों दर्ज करवाई

ज़ी न्यूज़ के डीएनए कार्यक्रम में राहुल गांधी के ग़लत वीडियो पर कांग्रेस की आपत्ति के बाद ज़ी न्यूज़ ने तुरंत ही माफ़ी मांगी और इसे मानवीय भूल बताया. फिर ज़ी न्यूज़ ने पुलिस शिकायत क्यों दर्ज कराई कि वीडियो का मामला मानवीय भूल से आगे का है और पुलिस जांच करे? क्या माफ़ी मांगने से पहले जांच नहीं हुई होगी?

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(स्क्रीनग्रैब साभार: ज़ी न्यूज़)

ज़ी न्यूज़ के डीएनए कार्यक्रम में राहुल गांधी के ग़लत वीडियो पर कांग्रेस की आपत्ति के बाद ज़ी न्यूज़ ने तुरंत ही माफ़ी मांगी और इसे मानवीय भूल बताया. फिर ज़ी न्यूज़ ने पुलिस शिकायत क्यों दर्ज कराई कि वीडियो का मामला मानवीय भूल से आगे का है और पुलिस जांच करे? क्या माफ़ी मांगने से पहले जांच नहीं हुई होगी?

(स्क्रीनग्रैब साभार: ज़ी न्यूज़)

हैशटैग आई सपोर्ट रोहित (#ISupportRohit) चलाने वाले ज़ी न्यूज़ ने थाने में शिकायत क्यों की?

ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित रंजन को ज़ी न्यूज़ की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया और ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. गौतमबुद्धनगर पुलिस के मीडिया सेल ने बताया है कि रोहित को पूछताछ के लिए बुलाया गया था. पूछताछ के बाद साक्ष्यों के आधार पर उनकी गिरफ्तारी की गई. उनके ऊपर लगी धाराओं के जमानती अपराध होने के चलते उन्हे जमानत पर रिहा कर दिया गया है.

सूचना में यह नहीं लिखा है कि किसकी शिकायत पर यह पूछताछ की गई है लेकिन अब यह बात जगज़ाहिर है कि ज़ी न्यूज़ ने ही नोएडा पुलिस से शिकायत की थी वह इस मामले में जांच करे और कानूनी कार्रवाई करे. क्या यह गिरफ़्तारी उसी शिकायत के आधार पर नहीं हुई है?

एक तरफ ज़ी न्यूज़ की शिकायत पर उसके एंकर को गिरफ्तार किया जाता है, दूसरी तरफ़ ज़ी न्यूज़ के डीएनए में हैशटैग चल रहा है, आई सपोर्ट रोहित रंजन. जब रोहित को सपोर्ट ही करना था, तब ज़ी न्यूज़ ने थाने में शिकायत क्यों कराई?

ज़ी न्यूज़ ने पुलिस से जो शिकायत की है, उसमें रोहित रंजन का नाम नहीं है. सीनियर प्रोड्यूसर नरेंद्र सिंह और प्रशिक्षु प्रोड्यूसर बिकास कुमार झा का नाम है. बिकास तो ट्रेनी प्रोड्यूसर हैं यानी नौकरी में नए आए हैं. बताइए आते ही निकाल दिए गए, वह किस कदर तनाव में होगा.

मैं नहीं जानता कि बिकास किस प्रवृत्ति का पत्रकार है लेकिन है तो इंसान ही. उसकी चिंता हो रही है. ज़ी न्यूज़ की शिकायत में लिखा गया है कि लापरवाही से ज़्यादा गंभीर अपराध का अंदेशा लगता है, बिकास और नरेंद्र की मिलीभगत लगती है, इसलिए पुलिस मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करे.

एक जुलाई को ज़ी न्यूज़ के डीएनए कार्यक्रम में राहुल गांधी का वीडियो चलाया जाता है और उसे उदयपुर से जोड़ दिया जाता है. कांग्रेस की आपत्ति के बाद ज़ी न्यूज़ ने तुरंत ही माफी मांगी और इसे मानवीय भूल बताया. फिर अब ज़ी न्यूज़ ने शिकायत क्यों दर्ज कराई कि वीडियो का मामला मानवीय भूल से आगे का है और पुलिस जांच करे?

क्या माफ़ी मांगने से पहले जांच नहीं हुई होगी? यह कोई मनी लॉन्ड्रिंग का केस है कि ईडी की ज़रूरत थी?

मेरी राय में जब जी न्यूज़ और एंकर रोहित रंजन ने प्रमुखता से माफी मांग ली, तब यह मामला ख़त्म मान लिया जाना चाहिए. कांग्रेस को भी गिरफ्तारी पर ज़ोर नहीं देना चाहिए. लेकिन क्या यही राय रोहित रंजन मोहम्मद ज़ुबैर के लिए लिख सकते हैं?

दूसरी बात, जब ज़ी न्यूज़ ही थाने में मामला दर्ज करा दे, तब फिर आप कैसे आरोप लगा सकते हैं कि कांग्रेस पुलिस का इस्तेमाल कर रही है और पत्रकारिता पर हमला कर रही है. साफ़ है कि ज़ी न्यूज़ ने रोहित रंजन, नरेंद्र सिंह और बिकास कुमार झा का साथ नहीं दिया.

अब बात रोहित रंजन की पत्रकारिता और उनके ट्वीट कर लेते हैं. आज हमने रोहित के कई ट्वीट और उनके कुछ कार्यक्रमों के टाइटल देखे. धर्म की आड़ लेकर दूसरे मज़हब को ललकारने और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के आधार पर बहस की महफिल सजाने में रोहित रंजन किसी से कम नहीं है.

रोहित रंजन अपनी पत्रकारिता मे धर्म की आड़ लेते हैं ताकि जब पत्रकारिता पर सवाल उठे तब धर्म रक्षक के कोटे से समाज में मान्यता मिल जाए. जो पत्रकार पत्रकारिता का धर्म नहीं बचा सके, पत्रकारिता का धर्म कुचलने में लगे हुए हैं, वे धर्म बचा लेंगे, इसे लेकर किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए. जो अपने पेशे का धर्म नहीं निभा सकता वो किसी का भी धर्म नहीं बचा सकता है.

धर्म के नाम पर सत्ता और राजनीतिक दल का संरक्षण मिल सकता है लेकिन पत्रकारिता नहीं मिल सकती. रोहित रंजन के शो से अगर धर्म के नाम पर दूसरे धर्म को ललकारने की हनक निकाल दें तो क्या उसमें किसी भी तरह की पत्रकारिता बचती है?

रोहित की गिरफ्तारी बेवजह हुई. दिक्कत है कि उन्हें इस बात पर यकीन भी नहीं होगा कि मैंने ऐसा लिखा है.

लेकिन जब ज़ी न्यूज़ ने ही शिकायत कर दी और उसके आधार पर पूछताछ के बाद गिरफ़्तार कर लिया गया तो तुरंत कहना ठीक नहीं कि गिरफ्तारी बेवजह हुई. इंतज़ार करना चाहिए कि नोएडा पुलिस अपनी जांच के बाद रोहित रंजन, नरेंद्र सिंह और बिकास कुमार झा को क्लीन चिट देती है या नहीं.

उम्मीद तो यह भी की जानी चाहिए कि इसके बाद ज़ी न्यूज़ नरेंद्र सिंह और बिकास कुमार झा को नौकरी पर रख ले.

क्या यह पूछा जा सकता है कि रोहित रंजन और उनके साथ खड़े पत्रकारों ने ज़ी न्यूज़ की शिकायत का विरोध किया है या नहीं? ज़ी न्यूज़ क्यों इस मामले को लेकर पुलिस के पास गया? न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन नाम की संस्था है, उससे जांच के लिए कह सकता था. इस संस्था के रहते पुलिस के पास जाकर ज़ी न्यूज़ ने वही काम नहीं किया, जिसके लिए छत्तीसगढ़ से चलकर वहां की पुलिस आई थी?

क्या यह पूछा जा सकता है कि रोहित रंजन के लिए हैशटैग आई सपोर्ट रोहित लिखने वालों ने कभी किसी पत्रकार की गिरफ्तारी का विरोध किया है? कितने ही पत्रकारों के मामले में आरोप लगे हैं कि उन्हें केंद्र में मोदी सरकार और राज्यों की भाजपा सरकारों के इशारे पर गिरफ्तार किया गया है या उन्हें जांच के घेरे में फंसाया गया है. क्या रोहित रंजन ने ऐसे किसी भी एक मामले में किसी पत्रकार का पक्ष लिया है?

ऑल्ट न्यूज़ के पत्रकार मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर रोहित रंजन का ट्वीट देख लीजिए, पत्रकार होने के नाते ज़ुबैर से ज़रा भी हमदर्दी नहीं है बल्कि रोहित ने ट्वीट किया है कि ज़ुबैर धर्म के नाम पर आग लगाने वाला है.

चार जुलाई को प्रेस क्लब में पत्रकारों की गिरफ्तारी और प्रताड़ना को लेकर सभा हुई, कई संगठनों ने उसकी निंदा की, क्या रोहित रंजन और उनके लिए हैशटैग चलाने वालों ने कभी इस बैठक का समर्थन किया? प्रेस क्लब के बयान को अपना बयान माना?

जो पत्रकार रोहित की गिरफ्तारी से भयभीत होने का नाटक कर रहे, उनमें से किसी ने 2014 के बाद पत्रकारिता के दमन के ख़िलाफ़ किसी प्रदर्शन में हिस्सा लिया है? कभी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और एडिटर्स गिल्ड के किसी ट्वीट को लाइक भी किया है या रीट्टीट की बात तो छोड़ दीजिए.

मेरा सवाल जायज़ है, इसके बाद भी अगर इन लोगों ने किसी पत्रकार के दमन का विरोध नहीं किया गया है तब भी मैं लिखता हूं कि जब माफी मांग ली तब गिरफ्तारी की ज़िद छोड़ देनी चाहिए थी लेकिन जब ज़ी न्यूज़ ही शिकायत दर्ज करा दे और उस पर रोहित रंजन की गिरफ्तारी हो जाए तो कोई क्या करे. उसे इसमें गंभीर अपराध का अंदेशा नज़र आ रहा है तब कोई क्या कहे.

(मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित)