अमेरिकी संसद में भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ता की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर फादर स्टेन स्वामी की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग संबंधी एक प्रस्ताव पेश किया गया. प्रस्ताव में मानवाधिकार रक्षकों और राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के दुरुपयोग पर भी चिंता व्यक्त की. एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार 84 साल के स्टेन स्वामी का पांच जुलाई 2021 को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए हिरासत में निधन हो गया था.
न्यूयॉर्क: अमेरिकी संसद में भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को याद करते हुए उनकी मौत की स्वतंत्र जांच की मांग संबंधी एक प्रस्ताव पेश किया गया है. कांग्रेस सदस्य जुआन वर्गास ने यह जानकारी दी.
वर्गास द्वारा स्टेन स्वामी की मौत और भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को चिह्नित करने के लिए एक वेबिनार में यह घोषणा की गई.
अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य से प्रतिनिधि वर्गास ने बताया कि उन्होंने स्वामी की याद और उनकी मौत की ‘स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए’ कांग्रेस में एक प्रस्ताव पेश किया है.
इस प्रस्ताव को कांग्रेस प्रतिनिधियों आंद्रे कार्सन और जेम्स मैकगोवर्न ने समर्थन दिया है. इस प्रस्ताव को अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में स्टेन स्वामी की पुलिस हिरासत में मौत की पहली बरसी पर पेश किया गया.
वर्गास ने कहा, ‘मैं हिरासत में फादर स्टेन स्वामी के साथ हुए दुर्व्यवहार से दुखी हूं. मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसी हिंसा और दुर्व्यवहार का सामना न करना पड़े.’
रिपोर्ट के मुताबिक, मसौदा प्रस्ताव भारत को मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी, कैद और मौत की स्वतंत्र जांच करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिनकी 5 जुलाई, 2021 को हिरासत में मृत्यु हो गई थी.
इसमें आगे कहा कि प्रस्ताव के पारित होने से ‘भारत सरकार और दुनिया भर की सभी सरकारों को यह स्पष्ट हो जाएगा कि मानवाधिकारों की वकालत करने वाले व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार और उन्हें कैद में नहीं रखा जा सकता’.
प्रस्ताव में मानवाधिकार रक्षकों और राजनीतिक विरोधियों को लक्षित करने के लिए आतंकवाद विरोधी कानूनों के दुरुपयोग पर भी चिंता व्यक्त की.
राजद्रोह कानून को स्थगित रखने के भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए मसौदा प्रस्ताव में भारतीय सांसदों से निलंबन को स्थायी बनाने का भी आग्रह किया गया है.
स्टेन स्वामी की मृत्यु के बाद मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के कार्यालय, मानवाधिकार के लिए यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि और मानवाधिकार नीति और मानवीय सहायता के जर्मन आयुक्त ने भी चिंता व्यक्त की थी.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय आलोचना को खारिज करते हुए दावा किया था कि स्वामी के साथ कानून के अनुसार सख्ती से व्यवहार किया गया था.
मालूम हो कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 84 साल के स्टेन स्वामी का पिछले साल पांच जुलाई को मेडिकल आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था.
एल्गार परिषद मामले में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और मामले में गिरफ्तार 16 लोगों में से एक थे. स्टेन स्वामी अक्टूबर 2020 से जेल में बंद थे.
वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई थी.
एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुलिस का दावा है कि इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों के साथ था.
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)