वामपंथी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की बहू ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि 2015 से मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और जांच की स्थिति निराशाजनक है. इस पर अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस के सीआईडी को पानसरे की 2015 में हुई हत्या की जांच में 2020 से अब तक हुई प्रगति की जानकारी देते हुए एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया.
मुंबई: वामपंथी नेता और कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की बहू ने बृहस्पतिवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक अंतरिम आवेदन दायर कर उनकी हत्या की जांच महाराष्ट्र सीआईडी से राज्य एटीएस को स्थानांतरित करने की मांग की.
याचिका में दावा किया गया है कि 2015 से मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और जांच की स्थिति ‘निराशाजनक’ है.
अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की 2015 में हुई हत्या की जांच में 2020 से अब तक हुई प्रगति की जानकारी देते हुए एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत पानसरे की बेटी स्मिता पानसरे और अन्य दिवंगत कार्यकर्ताओं के परिजन मुक्ता दाभोलकर द्वारा दायर दो याचिकाओं और कई अन्य आवेदनों पर सुनवाई कर रही है, जिसमें अदालत से दोनों मामलों की जांच की निगरानी करने की मांग की गई है.
अधिवक्ता अभय नेवागी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में गोविंद पानसरे की बहू और कार्यकर्ता मेघा पानसरे ने दावा किया कि पानसरे, तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, कन्नड़ शिक्षाविद व कार्यकर्ता एमएम कलबुर्गी तथा पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याओं के पीछे एक ‘बड़ी साजिश’ थी.
नेवागी ने जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस वीजी बिष्ट की पीठ से कहा, ‘उनके (कत्ल के) पीछे की कड़ी व मुख्य साजिशकर्ता की जांच होनी चाहिए.’
अधिवक्ता ने तर्क दिया कि चूंकि दाभोलकर हत्याकांड का मुकदमा पहले ही शुरू हो चुका है, इसलिए जांच किसी अन्य एजेंसी को स्थानांतरित नहीं की जा सकती है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद पानसरे के मामले को आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) को स्थानांतरित किया जा सकता है.
दाभोलकर की हत्या की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कर रहा है, जबकि पानसरे की हत्या की जांच महाराष्ट्र पुलिस की सीआईडी का विशेष जांच दल (एसआईटी) कर रहा है. कर्नाटक पुलिस की सीआईडी कलबुर्गी हत्या मामले की जांच कर रही है.
नेवागी ने दावा किया कि सीआईडी ने पानसरे मामले में 2015 से जांच में कोई प्रगति नहीं की है और जांच की स्थिति निराशाजनक है.
पीठ ने इस पर राज्य को नोटिस जारी करते हुए उससे जवाब मांगा.
उसने राज्य सीआईडी से मामले में 2020 से अब तक हुई प्रगति की रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है. सीआईडी ने इससे पहले 2020 में आखिरी बार जांच की स्थिति रिपोर्ट दी थी.
गौरतलब है कि नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे में गोली मारकर उस समय हत्या कर दी गई थी, जब वह सुबह की सैर पर निकले थे. पानसारे की कोल्हापुर में 16 फरवरी, 2015 को गोली मारी गई थी और कुछ दिनों बाद 20 फरवरी को उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
इसी तरह लेखक और तर्कवादी एमएम कलबुर्गी की कर्नाटक के धारवाड़ में 30 अगस्त, 2015 को गोली मारकर हत्या की गई थी.
तीन मामलों की जांच करने वाली एजेंसियों ने अदालत में पिछले मौकों पर कहा है कि मामलों में कुछ समान ‘कड़ियां’ और आरोपी व्यक्ति थे.
नेवागी ने एक अर्जी दायर करते हुए दावा किया कि दाभोलकर, पानसरे और कन्नड़ कार्यकर्ता एवं विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्याओं के तार आपस में जुड़े हुए हैं.
उन्होंने हाईकोर्ट से महाराष्ट्र के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) को यह जांच करने का निर्देश देने का अनुरोध किया कि इन हत्याओं के पीछे का मास्टरमाइंड कौन था.
हाईकोर्ट ने अर्जी पर अभी तक कोई निर्देश नहीं दिया है. अदालत ने कहा, ‘उन्हें (राज्य सीआईडी) पहले पानसरे मामले में 2020 से 2022 तक की स्थिति रिपोर्ट देने दीजिए.’
पीठ ने बृहस्पतिवार को राज्य सरकार को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक तिरुपति काकडे़ को पानसरे मामले में जांच अधिकारी (आईओ) पद से मुक्त करने की अनुमति भी दी. काकडे़ का, साढ़े चार साल तक मामले की जांच का नेतृत्व करने के बाद अब तबादला किया जाना है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले निर्देश दिया था कि दोनों मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का अदालत की अनुमति के बिना तबादला न किया जाए. इसके बाद राज्य सरकार ने बृहस्पतिवार को हाईकोर्ट का रुख किया.
पीठ ने काकडे़ को पदभार से ‘मुक्त’ करने के राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए कहा कि नए आईओ की नियुक्ति चार हफ्तों के भीतर की जाए और इसके बाद ही काकडे़ नया पद संभाल सकते हैं.
राज्य ने अदालत को सूचित किया कि मामले की जांच कर रहे एसआईटी में 15 अधिकारी थे, जिनमें से दो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए और एक की मौत कोविड-19 से हो गई थी.
मालूम हो कि मई 2019 में सीआईडी की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने गोविंद पानसरे की हत्या के संबंध में दक्षिणपंथी कार्यकर्ता शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया था.
दाभोलकर मामले में सीबीआई ने इस मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार किया था और इनमें से पांच के खिलाफ आरोप-पत्र भी दाखिल किया है.
सीबीआई ने 2016 में सनातन संस्था के सदस्य ईएनटी सर्जन और कथित प्रमुख साजिशकर्ता डॉ. वीरेंद्र तावड़े को गिरफ्तार किया था. उसके बाद अगस्त 2018 में दो शूटरों- शरद कलासकर व सचिन प्रकाशराव अंडुरे को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने कथित तौर पर दाभोलकर पर गोलियां चलाई थीं.
मई 2019 में मुबंई के सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर व उसके सहयोगी विक्रम भावे को गिरफ्तार किया गया था. इन पांचों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया था.
सीबीआई ने तीन अन्य लोगों- अमोल काले, अमित दिगवेकर और राजेश बांगेरा को गिरफ्तार किया था, जो कि 2017 में हुई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के भी आरोपी हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)