प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चीनी मोबाइल निर्माता कंपनी वीवो की 23 संबद्ध कंपनियों के ख़िलाफ़ तलाशी अभियान के बाद उनके बैंक खातों में जमा 465 करोड़ रुपये की राशि जब्त की गई है. इसके अलावा 73 लाख रुपये की नकदी और दो किलोग्राम सोने की छड़ें भी जब्त की गई हैं. इसके ख़िलाफ़ वीवो ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाख़िल की है.
नई दिल्ली/बीजिंग: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी वीवो की भारतीय इकाई ने यहां पर कर देनदारी से बचने के लिए अपने कुल कारोबार का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा यानी 62,476 करोड़ रुपये विदेशों में भेज दिए.
केंद्रीय जांच एजेंसी ने कहा कि वीवो इंडिया ने भारत में कर देने से बचने के लिए अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा चीन एवं कुछ अन्य देशों में भेज दिया. विदेशों में भेजी गई राशि 62,476 करोड़ रुपये है, जो उसके कारोबार का लगभग आधा हिस्सा है.
ईडी ने कहा कि वीवो मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं इसकी 23 संबद्ध कंपनियों के खिलाफ बुधवार (छह जुलाई) को चलाए गए सघन तलाशी अभियान के बाद उनके बैंक खातों में जमा 465 करोड़ रुपये की राशि जब्त की गई है. इसके अलावा 73 लाख रुपये की नकदी और दो किलोग्राम सोने की छड़ें भी जब्त की गई हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि वीवो के पूर्व निदेशक बिन लोऊ ने भारत में कई कंपनियां बनाने के बाद वर्ष 2018 में देश छोड़ दिया था. अब इन कंपनियों के वित्तीय ब्योरों पर जांच एजेंसी की नजरें हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने यह आरोप भी लगाया है कि वीवो इंडिया के कर्मचारियों ने उसकी तलाशी अभियान के दौरान सहयोग नहीं किया और भागने एवं डिजिटल उपकरणों को छिपाने की कोशिश भी की. हालांकि एजेंसी की तलाशी टीमें इन डिजिटल सूचनाओं को हासिल करने में सफल रहीं.
बिजनेस स्टैंडर्स के मुताबिक, वीवो इंडिया को अगस्त 2014 में हांगकांग स्थित एक कंपनी मल्टी एकॉर्ड लिमिटेड की सहायक कंपनी के रूप में निगमित कर दिल्ली में इसका रजिस्ट्रेशन किया गया था.
इस जांच की शुरुआत तब हुई जब कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने वीवो की सहयोगी कंपनी ग्रैंड प्रॉस्पेक्ट इंटरनेशनल कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (जीपीआईसीपीएल), उसके निदेशकों, शेयरधारकों, प्रमाणित करने वाले पेशेवरों आदि के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराई थी.
यह आरोप लगाया गया था कि जीपीआईसीपीएल और उसके शेयरधारकों ने निगमन के समय जाली पहचान दस्तावेजों और झूठे पतों का इस्तेमाल किया था.
ईडी ने कहा, ‘आरोप सही पाए गए क्योंकि जांच से पता चला कि जीपीआईसीपीएल के निदेशकों द्वारा बताए गए पते उनके नहीं थे, क्योंकि उन्होंने सरकारी भवन, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के घर के पते को पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया था.’
ईडी ने यह भी कहा कि कंपनी को चार्टर्ड अकाउंटेंट सीए नितिन गर्ग की मदद से झेंगशेन ओयू, बिन लोऊ और झांग जी ने निगमित (Incorporated यानी कंपनी के रूप में गठन) किया था. बाद में कंपनी के निदेशक देश छोड़कर भाग गए. एक निदेशक बिन लोऊ ने अप्रैल 2018 में भारत छोड़ दिया था.
अधिकारियों के अनुसार, दो अन्य (झेंगशेन ओऊ और झांग जी) 2021 में भारत छोड़ गए. बिन लोऊ जीपीआईसीपीएल के निदेशक भी थे. उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में कई कंपनियों को निगमित किया था.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-15 में वीवो की स्थापना के ठीक बाद कुल 18 कंपनियों को निगमित किया गया था. बाद में एक अन्य चीनी व्यक्ति ज़िक्सिन वेई ने चार और कंपनियों को निगमित किया था.
कुछ सहयोगी संस्थाएं रुई चुआंग टेक्नोलॉजीज (अहमदाबाद), वी-ड्रीम टेक्नोलॉजी एंड कम्युनिकेशन (हैदराबाद), रेगेनवो मोबाइल (लखनऊ), फेंग्स टेक्नोलॉजी (चेन्नई), वीवो कम्युनिकेशन (बेंगलुरु), बुबुगाओ कम्युनिकेशन (जयपुर), हाइचेंग मोबाइल (नई दिल्ली), जॉइनमे मुंबई इलेक्ट्रॉनिक्स (मुंबई), और यिंगजिया कम्युनिकेशन (कोलकाता) हैं.
इस बीच, नई दिल्ली में चीनी दूतावास ने एक बयान जारी कर कहा है कि भारतीय प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा चीनी कंपनियों में कई जांच देश में निवेश और संचालन करने वाली विदेशी संस्थाओं के विश्वास को नुकसान पहुंचा रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट वीवो की याचिका पर तत्काल सुनवाई को राजी हुआ
इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट चीन की स्मार्टफोन विनिर्माता कंपनी वीवो के खिलाफ ईडी की मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में बैंक खातों पर रोक लगाने के खिलाफ कंपनी की याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए शुक्रवार को राजी हो गया.
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ के समक्ष याचिका आई और वह इस पर शुक्रवार को सुनवाई करने के लिए सूचीबद्ध करने को राजी हो गई. याचिका अब जस्टिस यशवंत वर्मा के समक्ष सूचीबद्ध की गई है जो इस पर जल्द सुनवाई कर सकते हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने पांच जुलाई को वीवो और संबंधित फर्मों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में कई स्थानों पर तलाशी ली थी.
मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मेघालय, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में वीवो और उससे संबंधित कंपनियों से जुड़े 44 स्थानों पर तहत छापेमारी की गई थी. वीवो ने अपनी याचिका में बैंक खातों पर रोक लगाने के ईडी के आदेश को रद्द करन का अनुरोध किया है.
मालूम हो कि बीते 29 अप्रैल को ईडी ने चीन की एक अन्य स्मार्टफोन निर्माता कंपनी शाओमी के बैंक खातों में जमा 5,551 करोड़ रुपये की राशि को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जब्त कर लिया था.
शाओमी इंडिया चीन की मोबाइल विनिर्माता कंपनी शाओमी की पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी है. शाओमी टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट भारत में एमआई (MI) ब्रांड के तहत मोबाइल फोन की बिक्री एवं वितरण करती है.
हालांकि बीते पांच मई को कर्नाटक हाईकोर्ट ने शाओमी टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को राहत प्रदान करते हुए कंपनी के 5551.27 करोड़ रुपये जब्त करने के ईडी के आदेश पर रोक लगा दी थी.
शाओमी ने किसी भी गलत काम से इनकार करते हुए कहा है कि उसके रॉयल्टी भुगतान वैध थे.
ईडी ने फरवरी में चीनी कंपनी द्वारा विदेश भेजे गए कथित ‘अवैध धन’ के सिलसिले में जांच शुरू की थी. वर्ष 2014 में भारत में अपना परिचालन शुरू करने वाली शाओमी ने अगले ही साल से यहां से धन चीन भेजना शुरू कर दिया था.
ईडी ने कहा था, ‘कंपनी ने 5,551.27 करोड़ रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा को रॉयल्टी के नाम पर विदेश स्थित तीन कंपनियों को भेजा है. इनमें शाओमी समूह की एक कंपनी भी शामिल है.’
एजेंसी ने कहा था, ‘अन्य दो अमेरिकी असंबद्ध कंपनियों को भेजी गई राशि भी अंतत: शाओमी समूह की कंपनियों के लाभ के लिए थी. रॉयल्टी के नाम पर इतनी बड़ी राशि उनके चीनी मूल कंपनी के निर्देश पर ही भेजी गई थी.’
प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक, शाओमी इंडिया भारत के विनिर्माताओं से पूरी तरह तैयार मोबाइल सेट और अन्य उत्पाद खरीदती है. उसने इन तीन विदेशी कंपनियों में से किसी की सेवा नहीं ली, जिन्हें यह राशि भेजी गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)