मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िले में बीते 2 जून को आरटीआई कार्यकर्ता रंजीत सोनी की लोक निर्माण विभाग कार्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में पता चला है कि रंजीत सरकारी ठेकों, अधिकारियों की नियुक्तियों और उनके ठेकेदारों से संबंधों आदि में व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आरटीआई के माध्यम से लगातार सक्रिय थे और इसलिए उन्हें धमकियां मिल रही थीं और उन पर पहले भी हमले हो चुके थे.
भोपाल: मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में 2 जून 2022 को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता रंजीत सोनी की एक सरकारी कार्यालय में दिन-दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उन्हें विदिशा के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) कार्यालय के मुख्य गेट पर सिर के पिछले हिस्से में गोली मारी गई थी.
घटना के करीब दो हफ्ते बाद 19 जून को एक फैक्ट फाइंडिंग टीम विदिशा में रंजीत सोनी के परिवार से मिलने गई और उसने उनकी हत्या और कामकाज को लेकर तथ्य जुटाए.
इस पांच सदस्यीय टीम में अंजलि भारद्वाज, रोली शिवहरे, अमृता जौहरी, अजय दुबे और संतोष मालवीय शामिल थे. अंजलि, रोली और अमृता सूचना के जन अधिकार के राष्ट्रीय अभियान की कार्यकारी समिति की सदस्य हैं, जबकि अजय दुबे ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के बोर्ड सदस्य हैं और संतोष मालवीय उनके साथ काम करते हैं.
बीते दिनों इस टीम ने अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें दावा किया गया है कि 130 से अधिक आरटीआई आवेदन और शिकायतें दर्ज कराने वाले रंजीत पर स्थानीय सरकारी ठेकेदारों की ओर से लगातार दबाव डाला जा रहा था कि वे अपनी गतिविधियां रोक दें.
रंजीत की पत्नी गायत्री के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है वह एक ठेकेदार के तौर पर काम करते थे और अक्सर अन्य ठेकेदारों के साथ मिलकर सरकारी काम के ठेके लिया करते थे. इन ठेकेदारों में वे लोग भी शामिल हैं, जिनके खिलाफ रंजीत की हत्या की जांच चल रही है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिस ने हत्या के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें शूटर अंकित यादव उर्फ टुंडा, जसवंत रघुवंशी, नरेश शर्मा, एस. कुमार चौबे और शैलेंद्र पटेल शामिल हैं.
पुलिस के मुताबिक, हत्या रंजीत सोनी और जसवंत रघुवंशी, नरेश शर्मा, एस. कुमार चौबे के बीच झगड़े का परिणाम थी. चारों पहले साथ में ठेकेदारी का काम करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने कई शिकायतें एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज कराई थीं.
पुलिस का कहना है कि रघुवंशी, शर्मा और चौबे ने शैलेंद्र पटेल के जरिये शूटर अंकित को रंजीत की हत्या का काम सौंपा था.
गायत्री ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि कुछ साल पहले रंजीत का जसवंत रघुवंशी और एस. कुमार चौबे के साथ झगड़ा हो गया था और उन्होंने दोनों के साथ काम करना बंद कर दिया था.
गायत्री के मुताबिक, उन्होंने आरटीआई कानून का इस्तेमाल कर सार्वजनिक कार्यों और सरकारी खर्च की जानकारी जुटाना शुरू कर दिया, इस दौरान जो भी अनियमितताएं सामने निकल कर आती थीं, उनकी वे शिकायत कर देते थे. जिनमें इन ठेकेदारों द्वारा किए गए कार्यों की शिकायतें भी शामिल थीं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि रंजीत और उपरोक्त ठेकेदारों के बीच कथित तौर पर रंजीत द्वारा दिए गए एक चेक बाउंस होने का मुकदमा भी चल रहा था, जिसकी सुनवाई 3 जून को निर्धारित थी, लेकिन 2 जून को ही रंजीत की हत्या कर दी गई.
इस संबंध में गायत्री और रंजीत के वकीलों ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि मामले में ठेकेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत पेश किए जाने थे.
साथ ही, गायत्री ने बताया कि रंजीत ठेकेदारों द्वारा सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी कामकाज के टेंडर के लिए फर्जी फिक्सड डिपॉजिट रिसीप्ट (एफडीआर) जमा करने संबंधी मुद्दों पर काम कर रहे थे.
वहीं, रंजीत के वकील ने बताया कि जिन आरोपियों के खिलाफ हत्या के मामले में जांच चल रही है, उन्होंने रंजीत को पहले भी धमकी दी थी कि वे आरटीआई और भ्रष्टाचार की शिकायतों को वापस ले लें.
फैक्ट फाइंडिंग टीम को रंजीत के घर से उनके और विभिन्न सरकारी विभागों के बीच हुए पत्राचार और अन्य कागजात हाथ लगे, जो कि बक्सों और बैगों में भरे हुए थे. इनमें कई आरटीआई आवेदन और लोकायुक्त को दर्ज शिकायतें शामिल थीं.
उन्होंने लोकायुक्त, लोक निर्माण विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न प्राधिकरणों में शिकायत दर्ज कराकर आरोपों पर उचित कार्रवाई की मांग की थी.
जिनके अवलोकन के बाद फैक्ट फाइंडिंग टीम ने टिप्पणी की है, ‘उपलब्ध कागजातों को देखने के बाद स्पष्ट है कि सार्वजनिक धन के दुरुपयोग या भ्रष्टाचार की जानकारी मिलने पर रंजीत लोकायुक्त, लोक निर्माण विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न प्राधिकरणों में शिकायत दर्ज कर आरोपों पर उचित कार्रवाई की मांग कर रहे थे.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘उनके द्वारा दायर आरटीआई आवेदनों के अवलोकन से पता चलता है कि कई मामलों में वे ऐसी जानकारी मांग रहे थे, जो सरकार को स्वयं ही आरटीआई अधिनियम की धारा-4 के तहत सार्वजनिक करनी चाहिए थी.’
रंजीत द्वारा दायर किए गए कई आरटीआई आवेदन को देखने के बाद फैक्ट फाइंडिंग टीम को मालूम हुआ कि उन्होंने सड़क निर्माण के विवरण, सरकारी पद पर नियुक्त अधिकारियों की योग्यता, अस्पताल निर्माण में भ्रष्टाचार आदि के संबंध में और उनकी शिकायतों पर क्या कार्रवाई हुई, इस संबंध में कई आरटीआई आवेदन लगाए थे.
2016 में रंजीत ने जसवंत रघुवंशी और उनके बेटे के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि क्षेत्र में सड़क निर्माण का विवरण मांगने के लिए उनके द्वारा लगाई गई आरटीआई के बाद उन पर पीडब्ल्यूडी कार्यालय में हमला हुआ था.
लेकिन, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की तो उन्होंने स्थानीय अदालत का रुख किया. जिसके कुछ दिन बाद ही हमलावरों ने उन्हें उनके ही घर पर निशाना बनाया, जिसकी शिकायत भी उन्होंने पुलिस में दर्ज कराई थी.
यहां तक कि रंजीत के खिलाफ एक मुकदमा एससी/एसटी कानून के तहत भी दर्ज किया गया था, जिसके संबंध में रंजीत ने स्वयं अपनी एक शिकायत में लिखा था कि वे मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति को जानते-पहचानते ही नहीं थे कि वह है कौन? रंजीत द्वारा पुलिस के समक्ष दी गई शिकायत में उन्होंने दावा किया था कि उनके ऊपर रघुवंशी और उनके बेटे का दबाव था कि वे आरटीआई वापस लें, अन्यथा झूठे मामले में फंसा दिए जाएंगे.
गायत्री ने बताया कि आरोपी ठेकेदारों के दबाव के चलते रंजीत का भुगतान तक रुक गया था, जिसके चलते रंजीत को अपना घर तक बेचना पड़ा था.
रंजीत की मृत्यु के बाद उनके परिवार में उनकी पत्नी गायत्री के अलावा 15 और 10 वर्षीय दो बेटे हैं.
गायत्री के मुताबिक, रंजीत की मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है, क्योंकि परिवार उन पर निर्भर था. उनके बच्चों की शिक्षा पर संकट के बादल छा गए हैं, पड़ोसी राशन देकर उनकी मदद करते हैं.
परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी बदहाल है कि उन्हें लोगों को भुगतान करने के एवज में घर का सामान तक देना पड़ रहा है.
बहरहाल, फैक्ट फाइंडिंग टीम का कहना है, ‘हमारा मानना है कि रंजीत की हत्या और उनके द्वारा सूचना के अधिनियम का इस्तेमाल करने व कथित भ्रष्टाचार/अनियमितताओं को उजागर करने के बीच संबंध से इनकार नहीं किया जा सकता है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि रंजीत की हत्या की जांच के अलावा अन्य संबंधित पहलुओं पर भी दृढ़ता से काम करने की जरूरत है, विशेष रूप से उनके द्वारा दायर आरटीआई आवेदनों और लोकायुक्त, पीडब्ल्यूडी एवं अन्य विभागों में की गईं शिकायतों पर.
रिपोर्ट में परिवार की गंभीर आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनके लिए मुआवजे की भी मांग की गई है और कहा गया है कि परिवार को विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत लाभ प्रदान किए जाएं.
साथ ही, मांग की गई है कि रंजीत द्वारा पिछले एक वर्ष में दायर सभी आरटीआई आवेदनों (लंबित आवेदनों समेत) और उनके जवाब व संबंधित सूचना को प्रत्येक सरकारी विभाग अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे.
यह भी मांग है कि रंजीत द्वारा पीडब्ल्यूडी को दायर की गईं भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं की विभिन्न शिकायतों की जांच के लिए जिले के बाहर के एक वरिष्ठ पीडब्ल्यूडी अधिकारी की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन हो और समिति के निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाए.
साथ ही मांग की गई है कि रंजीत द्वारा लोकायुक्त में दायर शिकायतों को फास्ट ट्रैक आधार पर निपटाया जाए. उनकी मृत्यु के कारण शिकायतों को बंद या खारिज न किया जाए.
रिपोर्ट में पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत की जांच की भी मांग की गई है, क्योंकि उनकी हत्या पीडब्ल्यूडी कार्यालय में हुई और इससे पहले भी उनके ऊपर हमला यहीं हुआ था.
साथ ही, मांग की गई है कि राज्य सरकार ह्विसिलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों की तर्ज पर एक नीति/कानून बनाए.
रिपोर्ट में ह्विसिलब्लोअर्स को संरक्षण प्रदान करने में सरकार की निष्क्रियता को लेकर कहा गया है, ‘ह्विसिलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम 2014 में संसद में पारित हुआ था, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा नियम न बनाए जाने के चलते आज तक यह लागू नहीं हो पाया है.’