योग गुरु रामदेव के पतंजलि योगपीठ की इकाई दिव्य फार्मेसी पर अपने आयुर्वेदिक उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन जारी करने का आरोप है. इसे लेकर आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा (उत्तराखंड) के लाइसेंसिंग अधिकारी ने कंपनी के ख़िलाफ़ ज़रूरी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.
नई दिल्ली: योग गुरु रामदेव के पतंजलि योगपीठ की इकाई दिव्य फार्मेसी कपंनी पर अपने आयुर्वेदिक उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन जारी करने के आरोप हैं, जिसके चलते आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा (उत्तराखंड) के लाइसेंसिंग अधिकारी ने हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर को दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, केरल के कन्नूर में नेत्र रोग विशेषज्ञ और आरटीआई कार्यकर्ता केवी बाबू को अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराने के बाद यह दस्तावेज प्राप्त हुए.
उन्होंने शनिवार को कहा कि कंपनी ने औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम-1954 की धारा 3 के उल्लंघन से इनकार नहीं किया है. इसका एकमात्र बचाव यह था कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम-1945 के नियम 170 के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर 2 फरवरी 2019 को रोक लगा दी थी.
वह मामला आयुर्वेदिक दवा निर्माता संघ और दिव्य फार्मेसी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर आधारित था.
डॉ. बाबू ने कहा, ‘मेरी शिकायत पर नियम 170 लागू नहीं होता. इसका बॉम्बे कोर्ट के स्टे से भी कोई लेना-देना नहीं है. मेरा आरोप आपत्तिजनक विज्ञापनों से संबंधित क़ानून से संबंध रखता है.’
कंपनी को इस संबंध में एक आधिकारिक नोटिस मिला था जिसमें आरोप लगाया गया था कि विज्ञापन, औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों के नियम 170 के प्रावधानों के तहत, ‘आपत्तिजनक और भ्रामक’ पाए गए.
इस पर सात मई को कंपनी के एक अधिकृत प्रतिनिधि ने स्वीकारा था कि नोटिस को ध्यान में रखते हुए विवादित विज्ञापनों का प्रकाशन रोक दिया गया है.
जिन दवाओं के विज्ञापनों पर आपत्ति थी वे दिव्य लिपिडोम टैबलेट, दिव्य लिपोग्रिट टैबलेट, दिव्य लिवामृत एडवांस टैबलेट, दिव्य मधुनाशिनी वटी और दिव्य मधुनाशिनी टैबलेट के थे.
लाइसेंसिंग अधिकारी ने हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर/जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी को भेजे एक फॉलो-अप मेल में 27 मई को कहा, कंपनी के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए.
अधिनियम का हवाला देते हुए डॉ. बाबू ने कहा कि जो भी इस कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है, वह पहली बार इस तरह का उल्लंघन करता पाए जाने पर छह महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों के तहत दंडनीय अपराधी होता है.
उन्होंने कहा कि केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने इससे पहले कर्नाटक, राजस्थान और उत्तराखंड में ड्रग लाइसेंसिंग अधिकारियों को उन शिकायतों पर जरूरी कार्रवाई करने को कहा था जिनमें दावा किया गया था कि अवैध विज्ञापनों के माध्यम से हृदय और लिवर संबंधी रोगों के उत्पादों का प्रचार किया जा रहा है.