सुप्रीम कोर्ट का कई राज्यों में जारी तोड़फोड़ अभियान के ख़िलाफ़ अंतरिम आदेश देने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि हिंसा के हालिया मामलों के आरोपियों की संपत्तियों में और तोड़फोड़ न की जाए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि हिंसा के हालिया मामलों के आरोपियों की संपत्तियों में और तोड़फोड़ न की जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन के आरोपियों की संपत्ति ढहाए जाने की कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए अंतरिम निर्देश पारित करने से बुधवार को इनकार कर दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि कोई अवैध निर्माण किया गया है और निगम या परिषद कार्रवाई करने के लिए अधिकृत है, तो वह तोड़फोड़ अभियान के खिलाफ ऐसा सर्वव्यापी आदेश कैसे पारित कर सकती है.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की एक पीठ ने कहा, ‘किस तरह के सर्वव्यापी निर्देश जारी किए जा सकते हैं.. इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि कानून का पालन करना होगा. लेकिन क्या हम एक सर्वव्यापी आदेश पारित कर सकते हैं? यदि हम ऐसा सर्वव्यापी आदेश पारित करते हैं तो ऐसा करके क्या हम अधिकारियों को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोकेंगे?’

शीर्ष अदालत मुस्लिम संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि हिंसा के हालिया मामलों के आरोपियों की संपत्तियों में और तोड़फोड़ न की जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने 16 जून को उत्तर प्रदेश सरकार को ‘कानून से इतर ध्वस्तीकरण गतिविधियों को अंजाम न देने के लिए कहा था, साथ ही पूछा था कि क्या उनके हालिया अभियानों ने प्रक्रियात्मक और नगरपालिका कानूनों का पालन किया गया था है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दाखिल याचिकाओं के जवाब में दायर हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा था कि आवेदनों में जिस विध्वंस का जिक्र किया गया है, वे स्थानीय विकास प्राधिकरण द्वारा किए गए थे और वे राज्य प्रशासन से स्वतंत्र वैधानिक स्वायत्त निकाय हैं.

सरकार ने कानपुर और इलाहाबाद में निजी संपत्तियों की तोड़फोड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कानपुर विकास प्राधिकरण (केडीए) और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) द्वारा उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम-1972 के तहत कार्रवाई की गई थीं और उनका दंगों की घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं था.

बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि यह मामला ‘बेहद’ गंभीर है और उन्हें समाचार पत्र की एक खबर के जरिये पता चला है कि असम में हत्या के एक आरोपी का भी मकान ढहा दिया गया है.

दवे ने तोड़फोड़ के खिलाफ अंतरिम निर्देश जारी करने की मांग करते हुए कहा, ‘हम यह चलन नहीं चाहते. माननीय आपको हमेशा के लिए इस संबंध में फैसला करना होगा. उन्हें कानून का पालन करना होगा. वे नगर निगम कानूनों का फायदा नहीं उठा सकते और केवल किसी मामले में आरोपी होने पर ही किसी का मकान नहीं ढहा सकते.’’

उन्होंने कहा, ‘यह देश इसकी अनुमति नहीं देगा. हमारा समाज कानून द्वारा चलता है, जो कि संविधान की बुनियाद है. इस पर सुनवाई करके, इसका निपटारा किया जाना चाहिए.’

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि बाकी अनधिकृत मकानों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई, जबकि कुछ अन्य समुदायों को निशाना बनाया गया.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद एक शहर के बाद दूसरे शहर में ऐसी ही कार्रवाई की जा रही है.

सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें याचिकाकर्ता के कुछ दावों पर आपत्ति है.

लाइव लॉ के अनुसार, एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ता ‘अनावश्यक रूप से सनसनीखेज प्रचार” कर रहे हैं।

मेहता ने कहा, ‘अधिकारियों ने जवाब दायर किए हैं कि नोटिस जारी किए गए थे और प्रक्रिया का पालन किया गया है. (अतिक्रमण रोधी) अभियान कथित दंगों से काफी समय पहले शुरू हुआ था. आपके केवल कथित दंगों में शामिल होने से, आपके अवैध निर्माण को ढहाने से सुरक्षा नहीं मिल सकती. प्रभावित लोग पहले भी कई अदालतों के समक्ष मामला उठा चुके हैं. बिना वजह इसे सनसनीखेज न बनाएं.’

उन्होंने दवे की दलीलों का विरोध किया और कहा कि सभी समुदाय के लोग भारतीय हैं. मेहता ने कहा, ‘हम समुदाय-आधारित जनहित याचिकाएं स्वीकार नहीं कर सकते.’

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून के शासन की बात पर बहुत जोर दिया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता ‘डगमगाने वाली’ हो सकती है.

साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकती कि नगरपालिका कानून के बावजूद किसी आरोपी के मकान गिराए नहीं जा सकते.

पीठ ने सभी पक्षों से मामले से जुड़ी दलीलें पूरी करने को कहा और फिर तोड़फोड़ के खिलाफ जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका को 10 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)