लैंगिक समता के मामले में 146 देशों की सूची में भारत 135वें स्थान पर: विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट

विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, कुल 146 देशों के सूचकांक में सिर्फ 11 देश ही भारत से नीचे हैं. अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, कांगो, ईरान और चाड सूची में सबसे निचले पायदान वाले पांच देशों में शामिल हैं. हालांकि स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा सूचकांक में भारत का स्थान 146वां है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, कुल 146 देशों के सूचकांक में सिर्फ 11 देश ही भारत से नीचे हैं. अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, कांगो, ईरान और चाड सूची में सबसे निचले पायदान वाले पांच देशों में शामिल हैं. हालांकि स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा सूचकांक में भारत का स्थान 146वां है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की एक रिपोर्ट में भारत को लैंगिक समता (Gender Parity) के मामले में विश्व में 135वें स्थान पर रखा गया है. हालांकि, यह पिछले साल से आर्थिक भागीदारी एवं अवसर के क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करते हुए पांच पायदान ऊपर चढ़ा है.

डब्ल्यूईएफ की जिनेवा में जारी वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2022 (Gender Gap Report 2022) के मुताबिक, आइसलैंड विश्व के लैंगिक रूप से सर्वाधिक समता वाले देश के रूप में शीर्ष पर काबिज है, जिसके बाद फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड और स्वीडन का स्थान है.

कुल 146 देशों के सूचकांक में सिर्फ 11 देश ही भारत से नीचे हैं. अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कांगो, ईरान और चाड सूची में सबसे निचले पायदान वाले पांच देशों में शामिल हैं.

विश्व आर्थिक मंच ने चेतावनी दी है कि जीवनयापन के संकट से विश्व में महिलाओं के सर्वाधिक प्रभावित होने की संभावना है. श्रम बल में लैंगिक अंतराल (Gender Gap) बढ़ने से इसको पाटने में और 132 साल (2021 के 136 साल की तुलना में) लगेंगे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कोविड-19 ने लैंगिक समता को एक पीढ़ी पीछे कर दिया है और इससे उबरने की कमजोर दर इसे वैश्विक रूप से और प्रभावित कर रही है.

डब्ल्यूईएफ ने भारत पर कहा कि इसका लैंगिक अंतराल अंक (Gender Gap Score) पिछले 16 वर्षों में इसके सातवें सर्वोच्च स्तर पर दर्ज किया गया है, लेकिन यह विभिन्न मानदंडों पर सर्वाधिक खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल है.

रिपोर्ट चार आयामों – ‘आर्थिक भागीदारी और अवसर’, ‘शिक्षा प्राप्ति’, ‘स्वास्थ्य और अस्तित्व’ तथा ‘राजनीतिक सशक्तिकरण’ – में लैंगिक समानता का अध्ययन करती है.

पिछले साल से भारत ने आर्थिक साझेदारी और अवसर पर अपने प्रदर्शन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक बदलाव दर्ज किया है. लेकिन श्रम बल भागीदारी 2021 से पुरुषों और महिलाओं, दोनों की कम हो गई है.

महिला सांसदों/विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों की हिस्सेदारी 14.6 प्रतिशत से बढ़कर 17.6 प्रतिशत हो गई है तथा पेशेवर एवं तकनीकी श्रमिकों के रूप में महिलाओं की हिस्सेदारी 29.2 प्रतिशत से बढ़कर 32.9 प्रतिशत हो गई है.

अनुमानित अर्जित आय के मामले में लैंगिक समता अंक बेहतर हुआ है, जबकि पुरुषों और महिलाओं के लिए इसके मूल्य में कमी आई है. वहीं, इस संदर्भ में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक कमी आई है.

राजनीतिक सशक्तिकरण के उप-सूचकांक में अंक का घटना इसलिए प्रदर्शित हुआ है कि पिछले 50 वर्षों में राष्ट्र प्रमुख के तौर पर महिलाओं की भागीदारी के वर्षों में कमी आई है. हालांकि, भारत इस उप-सूचकांक में 48वें स्थान पर है, जो अपेक्षाकृत अधिक है.

स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा सूचकांक में भारत का रैंक 146वां है और यह उन पांच देशों में शुमार है, जहां का लैंगिक अंतराल पांच प्रतिशत से अधिक है. अन्य चार देश- कतर, पाकिस्तान, अजरबैजान और चीन हैं.

हालांकि, प्राथमिक शिक्षा में दाखिले के लिए लैंगिक समता के मामले में भारत विश्व में पहले स्थान पर है.

दक्षिण एशिया के भीतर बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और भूटान के बाद भारत को समग्र स्कोर पर छठा स्थान मिला. ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भारत से भी खराब स्कोर किया.

डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जहीदी ने कहा, ‘महामारी के दौरान श्रम बाजार को नुकसान पहुंचने के बाद जीवनयापन की लागत पर आए संकट ने महिलाओं को काफी प्रभावित किया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कमजोर सुधार के सामने सरकार और कारोबारियों को दो तहर के प्रयास करने चाहिए – कार्यबल में महिलाओं की वापसी और भविष्य के उद्योगों में महिलाओं की प्रतिभा विकास का समर्थन करने के लिए लक्षित नीतियां. अन्यथा, हम पिछले दशकों के लाभ को स्थायी रूप से नष्ट करने और विविधता के भविष्य के आर्थिक लाभ को खोने का जोखिम उठाते रहेंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)