गांधी मेमोरियल की पत्रिका ने निकाला विनायक दामोदर सावरकर पर विशेषांक

गांधी स्मृति और दर्शन समिति की हिंदी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'अंतिम जन' के हिंदुत्व नेता वीडी सावरकर पर निकाले गए विशेषांक की गांधीवादियों ने आलोचना की है. महात्मा गांधी के परपौत्र तुषार गांधी का कहना है कि यह गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने की सुनियोजित रणनीति है.

'अंतिम जन' का सावरकर विशेषांक. (साभार: संबंधित पत्रिका)

द हिंदू के अनुसार, गांधीवादियों और विपक्षी नेताओं ने इसकी आलोचना की है.

गांधी स्मृति और दर्शन समिति की हिंदी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘अंतिम जन’ के कवर पेज पर वीडी सावरकर को जगह मिली है, वहीं विशेषांक में महात्मा गांधी का धार्मिक सहिष्णुता पर लेख, सावरकर का हिंदुत्व पर लेख और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सावरकर पर लेख प्रकाशित किए गए हैं.

सावरकर की हिंदुत्व नाम की किताब के एक अंश को इसी शीर्षक से एक लेख की शक्ल में छापा गया है. ‘देशभक्त सावरकर’ और ‘वीर सावरकर और महात्मा गांधी’ नाम से अन्य लेखकों के लेखों को भी अंक में शामिल किया गया है. पत्रिका के संपादक प्रवीण दत्त शर्मा ने ‘गांधी का गुस्सा’ नाम का लेख लिखा है.

गांधी स्मृति और दर्शन समिति के उपाध्यक्ष विजय गोयल ने शुक्रवार को द हिंदू से बातचीत में बताया कि यह अंक सावरकर को इसलिए समर्पित किया गया क्योंकि 28 मई को उनका जन्मदिन था. उन्होंने कहा, ‘वीर सावरकर महान व्यक्ति थे. जैसे गांधी थे, जैसे पटेल थे. हमें उनके बलिदान से सीखना चाहिए. ब्रिटिश राज में जितना समय सावरकर ने जेल में गुजारा, उतना किसी ने नहीं गुजारा.’

सावरकर की दया याचिकाओं से संबंधित दावों के बारे में पूछने पर गोयल ने कहा कि ‘यह मुद्दा उनके द्वारा उठाया जाता है, जिन्होंने कोई बलिदान नहीं किया.’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि पत्रिका स्वतंत्रता सेनानियों पर अंक प्रकाशित करना जारी रखेगा और अगस्त महीने का अंक स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने में उपलक्ष्य में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ थीम पर रहेगा.

गांधी स्मृति और दर्शन समिति, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं, गांधी स्मृति- नई दिल्ली के तीस जनवरी मार्ग का वह घर जहां 1948 में गांधी की हत्या कर दी गई थी और जिसे उन्हें समर्पित एक संग्रहालय में बदल दिया गया है, के साथ ही गांधी दर्शन, जो राजघाट में महात्मा गांधी का स्मारक है, की देखरेख करती है.

पत्रिका के ऐसा करने पर महात्मा गांधी के परपौत्र और गांधी पर कई किताबें लिख चुके तुषार गांधी ने कहा कि यह हास्यास्पद है.

उन्होंने कहा, ‘गांधीवादी संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले इस प्रशासन के साथ यह बार-बार होता रहेगा. यहीं पर गांधी की विचारधारा पर राजनीतिक विचारधारा के हावी होने का खतरा है. हम इसका विरोध करते रहे हैं. सावरकर की तुलना गांधी के साथ करना उनकी हताशा को भी दिखाता है. यह दिखाता है कि सावरकर के बारे में उनकी आस्था कितनी छिछली और कमजोर है. यह गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने और एक नया नैरेटिव, जो वर्तमान सत्ता के लिए सुविधाजनक है, गढ़ने की बहुत ही सुनियोजित रणनीति है.’

लेखक और पत्रकार धीरेंद्र के झा, जिन्होंने हाल ही में गांधी की हत्या की साजिश पर किताब लिखी है, ने कहा कि ‘सावरकर गांधी की हत्या के आरोपी थे, हालांकि उन्हें छोड़ दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं हुई थी.’

झा ने आगे कहा, ‘लेकिन उस समय गांधी की हत्या में साजिश होने के एंगल की ठीक से जांच नहीं की गई थी. गांधी की हत्या के पीछे की साजिश की जांच के लिए कपूर जांच आयोग का गठन बहुत बाद में 1966 में किया गया था. आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि सावरकर और उनके मातहत लोगों के एक समूह ने गांधी को मारने की योजना बनाई थी. हत्या के मुकदमे के दौरान सावरकर को मिले संदेह के लाभ को सावरकर की पूरी तरह दोषमुक्ति की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.’

लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार गांधी स्मृति संस्था को उसी तरह नष्ट करने की कोशिश कर रहा है जैसे वह अन्य संस्थानों के साथ कर रहा है.

उन्होंने कहा, ‘सावरकर को एक बड़ी शख्सियत के तौर पर प्रदर्शित किया जा रहा है. यह आरएसएस का एजेंडा है. लेकिन इतिहास ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति सावरकर के रुख को बयां करता है. वर्तमान सरकार को संतुष्ट करने के लिए देश के इतिहास से छेड़छाड़ की जा रही है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.’