गोवा में 10 अप्रैल को रामनवमी की रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में ‘सिटिजंस फॉर इनिशिएटिव्स फॉर कम्युनल हार्मनी’ नामक संगठन ने एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम वहां भेजी थी, जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि रैली में आयोजकों ने नियमों का उल्लंघन किया था, बावजूद इसके उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
नई दिल्ली: 10 अप्रैल 2022 को रामनवमी समारोह के दौरान गोवा में हुई सांप्रदायिक हिंसा का विस्तृत विश्लेषण करते हुए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया है कि रैली का आयोजन करने वालों को कार्रवाई से सुरक्षा मिली हुई है, जबकि उन्होंने तमाम तरह के नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं और सांप्रदायिक नारे लगाए थे.
टीम का गठन सिटिजंस फॉर इनिशिएटिव्स फॉर कम्युनल हार्मनी (सीआईसीएच) द्वारा किया गया था, जिसकी स्थापना 2006 में कर्चोरेम सांवोर्डेम में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद हुई थी और जिसका काम सांप्रदायिक हिंसा संबंधी शिकायतों का प्रभावी निवारण करना है.
फैक्ट फाइंडिंग टीम में शिक्षाविद् और वास्तुकार (आर्किटेक्ट) तल्लुलाह डिसिल्वा, मानवाधिकार अधिवक्ता सारंग उगलमुगले, स्वंतत्र शोधकर्ता अमिता कानेकर और कार्यकर्ता व सीआईसीएच संयोजक अल्बरिटना अल्मेडा शामिल थे.
रामनवमी के ‘जश्न’ और उस दौरान भड़की हिंसा दोनों को अनोखा बताया गया है. इसमें न्यूज रिपोर्ट, कानून प्रवर्तकों के साक्षात्कारों पर रिपोर्ट, जिन्होंने रामनवमी पर रैली का आयोजन किया और अन्य लोगों पर विस्तृत अध्ययन किया गया है. फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों ने उस पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला है जिसके चलते सांप्रदायिक घटना हुई.
इसमें कहा गया है कि कैसे पूरे भारत में उस दिन सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, इसलिए उन कारणों का पता लगाने की जरूरत पर प्रकाश डाला गया है जिनके चलते गोवा में भी हिंसा हुई.
रिपोर्ट कहती है कि रामनवमी ‘शोभा यात्रा’ के बड़े जुलूस के लिए अनुमति पुलिस द्वारा केसरिया हिंदू वाहिनी (केएचवी) संगठन के राजीव झा को दी गई थी. झा ओल्ड सांकोले चर्च फ्रंटिसपीस में सांप्रदायिक तनाव से जुड़ा रहा था.
रिपोर्ट रैली के सांप्रदायिक संदेश की भी बात करती है, जिसके स्पष्ट संकेत हिंसा शुरू होने से पहले ही वॉट्सऐप ग्रुप और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों पर देखे गए थे.
रिपोर्ट में पाया गया कि हिंदुओं से आह्वान किया गया था कि वे ‘ईसाई मिशनरियों’ से विजयदुर्गा मंदिर पुन: हासिल करने के लिए लड़ने वाले हिंदुओं के समर्थन में एकजुट हों. बताया गया है कि ऐसा भी कहा जाता है कि ईसाई मिशनरी मंदिर की जमीन को ‘अवैध’ तौर पर ‘सांकोले चर्च का फ्रंटपीस’ होने का दावा करते हैं.
इसमें कहा गया है, ‘इस तरह यह रैली न केवल रामनवमी मनाने के लिए एक धार्मिक रैली थी, बल्कि शुरू से ही इसमें हिंदुत्व का रंग था.’
रिपोर्ट में इस रैली को ‘धार्मिक जुलूस’ के तौर पर अनुमति देने के अधिकारियों के फैसले पर भी सवाल उठाया गया है.
समिति ने यह भी पाया कि यह रैली वास्को और सांकोले क्षेत्र से होकर गुजरी, वहां के हिंदू मंदिरों के कई पदाधिकारियों ने इसमें भाग नहीं लिया और दावा किया कि उनका इससे कोई संबंध नहीं है.
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दूसरे समुदायों के पूजास्थलों के पास अशांति खड़ी करने का एक स्पष्ट पैटर्न था. हालांकि, यहां तक कि पुलिस के पास सांकोले के ओल्ड सांकोले चर्च फ्रंटिसपीस से रैली निकालने की योजना के बारे में खुफिया जानकारी भी थी, जबकि यह अनुमति दिए गए मार्ग का हिस्सा नहीं थी, फिर भी पुलिस ने इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं किए.
रैली में अनुमति उल्लंघन के और भी उदाहरण थे, जैसे कि रैली में सिर्फ कार और बाइक की अनुमति थी लेकिन एक लंबा ‘रथ’ भी देखा गया.
रिपोर्ट कहती है, ‘रैली ने जुआरीनगर में मीनार मस्जिद, एमईएस कॉलेज पर मस्जिद-ए-नूर और सांकोले चर्च के बाहर तेज आवाज में नारे और संगीत लगाकर अशांति पैदा करने का प्रयास किया.’ यहां लगाए गए नारों में से एक ‘जय श्री राम’ का नारा भी था.
विपक्षी दावों पर रिपोर्ट का कहना है कि ‘जैसा कि रैली के आयोजकों ने दावा किया है कि जुलूस पर अक्सा मस्जिद या पास के मदरसे से पथराव किया गया था, तो ऐसा होना घटनास्थल के भूगोल को देखते हुए संभव नहीं था.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपद्रवियों की एक दूसरी यूनिट भी थी जिसने भगवा झंडों के साथ अक्सा मस्जिद में घुसने की कोशिश की और बाद में 150 लोगों की भीड़ में शामिल हो गई. उन्होंने दो लोगों को घायल भी कर दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्को पुलिस थाने के बाहर तमाशा देख रहे लोगों और स्थानीय प्रतिनिधियों पर भी हमले हुए. ‘जय श्री राम’ और ‘मुसलमान आतंकवादी हैं’ के नारे लगाकर मस्जिद में नमाज बाधित करने की कोशिश की गई थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा के बाद पुलिस की कार्रवाई किस तरह समिति के निष्कर्षों के विपरीत रही. तीन व्यक्तियों की शिकायतों के आधार पर तीन एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, सभी के सभी मुसलमान हैं. सभी 13 लोगों को एक ही एफआईआर के संबंध में गिरफ्तार किया गया था और बाकी दो एफआईआर के संबंध में किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
रैली के आयोजक राजीव झा और अन्य अगले ही दिन ‘मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से मिले’. रैली के आयोजक के खिलाफ कोई भी एफआईआर नहीं हुई, जिन पर नियमों के उल्लंघन, सांप्रदायिक संदेश फैलाने और हमले में चोटें पहुंचाने समेत और भी आरोप हैं.
रिपोर्ट में दर्ज है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य रैली और 17 अप्रैल को हुए एक सम्मेलन में भी मौजूद थे. इस सम्मेलन में दावा किया गया कि ‘देशद्रोहियों’ ने 10 अप्रैल को पथराव किया.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए दो पुलिसकर्मियों का तबादला कर दिया गया.
रिपोर्ट कहती है, ‘शिकायतों की जांच की प्रगति के बारे में स्थानीय स्तर पर कोई पारदर्शिता नहीं है और न ही कोई जानकारी सामने रखी जा रही है, जिसमें गिरफ्तारी का विवरण आदि शामिल हो, और जो यह दिखा सके कि न्याय किया जा रहा है और आम जनता को आश्वासन मिले. जनता के बीच सूचना को प्रसारित करने का काम करने वाले गोवा पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी का पद रिक्त है.’
पूरी रिपोर्ट विस्तृत है और मामले की कई बारीकियों का विवरण देती है, इसके अलावा गवाहों और जो कथित तौर पर मामले से जुड़े हैं, उनका रिकॉर्ड भी रखती है.
फैक्ट-फाइंडिंग टीम द्वारा दिए गए कई सुझावों और सिफारिशों में अल्पसंख्यक आयोग का गठन, घटना वाले दिन हुई घटनाओं की विस्तृत जांच और सांप्रदायिक दंगों के माध्यम से शांति भंग करने का उद्देश्य रखने वाले नेताओं पर करीबी नजर रखना शामिल है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)