सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपी 83 वर्षीय कवि और कार्यकर्ता वरवरा राव की चिकित्सा आधार पर नियमित ज़मानत दिए जाने की मांग वाली याचिका पर एनआईए को नोटिस जारी कर अपना रुख़ स्पष्ट करने को कहा. राव ने चिकित्सा के आधार पर स्थायी ज़मानत संबंधी उनकी अपील को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ख़ारिज किए जाने के फ़ैसले को चुनौती देते हुए यह याचिका दाख़िल की है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी कवि और कार्यकर्ता वरवरा राव की चिकित्सा आधार पर नियमित जमानत दिए जाने की मांग वाली याचिका पर मंगलवार को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को नोटिस जारी कर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा.
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की एक पीठ ने एनआईए को नोटिस जारी किया और कहा कि मामले पर 10 अगस्त को सुनवाई की जाएगी.
न्यायालय ने कहा कि राव को दी गई अंतरिम सुरक्षा जारी रहेगी. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को, राव को दी गई अंतरिम सुरक्षा अगले आदेश तक बढ़ा दी थी.
राव ने चिकित्सा के आधार पर स्थायी जमानत संबंधी उनकी अपील को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए यह याचिका दाखिल की है. 83 वर्षीय राव चिकित्सा आधार पर जमानत पर हैं और उन्हें 12 जुलाई को आत्मसमर्पण करना था.
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू से पूछा कि क्या वह मामले में कुछ पेश करना चाहते हैं, तो अदालत उसके लिए समय दे सकती है.
पीठ ने कहा, ‘हमने औपचारिक तौर पर नोटिस जारी नहीं किया है. अगर आप सहमत होते हैं, तो हम अंतिम सुनवाई करेंगे और अगर आप कुछ भी अदालत में पेश करना चाहते हैं तो हम उसके लिए समय देंगे.’
पीठ ने कहा ऐसे मामले में जहां केवल चिकित्सकीय आधार पर बात हो रही है, उसमें लंबी सुनवाई की जरूरत नहीं है.
इसके बाद, एएसजी ने कहा कि वह मामले में कुछ पेश करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें समय चाहिए. उन्होंने कहा कि राव सुरक्षित हैं और जमानत पर हैं.
पीठ ने कहा, ‘मामले से जुड़े विवाद को देखते हुए पक्षकारों के वकील से कहा जाता है कि मामले का निपटारा अगली सुनवाई में किया जाए.’
पीठ ने कहा, ‘चूंकि हमने अभी तक कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है, इसलिए नोटिस जारी किया जाता है, जिसका जवाब 10 अगस्त तक दिया जाए.’
पीठ के अनुसार, मामले में अगर कोई दस्तावेज या सामग्री रिकॉर्ड पर रखी जानी है तो उसे दो अगस्त के पहले रख दिया जाना चाहिए.
वरवरा राव ने 13 अप्रैल के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अधिवक्ता नूपुर कुमार के माध्यम से दायर अपनी अपील में कहा था, ‘याचिकाकर्ता, 83 वर्षीय प्रसिद्ध तेलुगू कवि और वक्ता हैं, जो विचाराधीन कैदी के रूप में दो साल से अधिक समय तक जेल में रहे हैं. वर्तमान में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा चिकित्सा आधार पर दी गई जमानत पर हैं. कोई भी आगे की कैद उनके खराब होते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए मौत की घंटी होगी.’
इसमें कहा गया था कि राव ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, क्योंकि उनकी उम्र और खराब स्वास्थ्य की स्थिति के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी गई थी और हैदराबाद में स्थानांतरित करने की उनकी अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया था.
बता दें कि राव को 28 अगस्त, 2018 को उनके हैदराबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था और उस मामले में विचाराधीन कैदी है, जिसके लिए पुणे पुलिस ने 8 जनवरी, 2018 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की थी.
शुरुआत में राव ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के बाद उन्हें नजरबंद कर दिया गया है. 17 नवंबर, 2018 को उन्हें पुलिस हिरासत में ले लिया गया और बाद में नवी मुंबई की तलोजा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया.
22 फरवरी, 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत दे दी और उन्हें 6 मार्च, 2021 को जेल से रिहा कर दिया गया.
गौरतलब है कि यह मामला 31 दिसंबर 2017 में पुणे में आयोजित एल्गार परिषद के कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है.
पुणे पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन कोरेगांव-भीमा में हिंसा फैली और इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले लोगों के माओवादियों से संबंध हैं. मामले की जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी.
एनआईए ने भी आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.
मामले में केवल एक अन्य आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
फादर स्टेन स्वामी की पिछले साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)