यूएपीए से जुड़े सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इसकी क़ानूनी प्रक्रिया ही वास्तव में सज़ा है

राज्यसभा में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया है कि ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत वर्ष 2016 से 2020 के बीच 24,134 लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जिनमें से केवल 212 के ख़िलाफ़ ही दोष सिद्ध हो सके. इसके प्रावधान आरोप झेल रहे लोगों के लिए ज़मानत पाना लगभग असंभव बना देते हैं. परिणामस्वरूप, ज़्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन क़ैदियों के रूप में पड़े रहते हैं.

(इलस्ट्रेशनः द वायर)

राज्यसभा में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया है कि ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत वर्ष 2016 से 2020 के बीच 24,134 लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जिनमें से केवल 212 के ख़िलाफ़ ही दोष सिद्ध हो सके. इसके प्रावधान आरोप झेल रहे लोगों के लिए ज़मानत पाना लगभग असंभव बना देते हैं. परिणामस्वरूप, ज़्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन क़ैदियों के रूप में पड़े रहते हैं.

(इलस्ट्रेशनः द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में जारी किए गए आंकड़ों ने इस धारणा का समर्थन किया है कि ‘‘प्रक्रिया सजा है’, खासकर जब मामले कठोर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज किए जाते हैं.

राज्यसभा में माकपा सांसद एए रहीम द्वारा पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने खुलासा किया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में 2016 से 2020 के बीच यूएपीए के तहत कुल 5,027 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 24,134 लोगों को आरोपी बनाया गया.

गृह मंत्रालय के मुताबिक, 24,134 लोगों में से केवल 212 ही दोषी ठहराए गए, जबकि 386 आरोपियों को विभिन्न अदालतों ने रिहा कर दिया.

आंकड़ों से पता चलता है कि इस आतंकवाद विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या बहुतायत (97.5 प्रतिशत) में है, जिससे उनके लिए जमानत पाना लगभग असंभव हो जाता है, जो मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए वर्षों से कैद हैं.

आंकड़े दिखाते हैं कि 2016 से 3,047 लोग विचाराधीन कैदी हैं, 2017 से 4098, 2018 से 4862, 2019 से 5645 और 2020 से 6482 लोग यूएपीए के तहत विचारधीन कैदियों में शुमार हैं.

हाल ही में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने विचाराधीन कैदियों का मुद्दा उठाते हुए कहा था, ‘आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है. भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने तक और विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.’

बता दें कि यूएपीए कानून पहली बार 1967 में लागू हुआ था, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 2008 व 2012 और इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया संशोधनों ने इसे और सख्त बना दिया.

यूएपीए के प्रावधान के आरोप झेल रहे लोगों के लिए जमानत हासिल करना लगभग असंभव बना देते हैं. कानून कहता है कि अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है.

परिणामस्वरूप, यूएपीए के तहत आरोप झेल रहे ज्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन कैदियों के रूप में पड़े रहते हैं.

अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए इस कानून का राजनीतिक हथियार के रूप में दुरुपयोग करने संबंधी आरोप मौजूदा मोदी सरकार समेत सिलसिलेवार आईं लगभग सभी सरकारों पर लगते रहे हैं.

2019 में, वर्तमान एनडीए सरकार द्वारा यूएपीए में किए गए संशोधनों ने न केवल संगठनों बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी के रूप में नामित करने की अनुमति दी है.

कई पूर्व जजों, नौकरशाहों और एक्टिविस्ट ने कानून को निरस्त करने की मांग की है. उनका कहना है कि इसमें ‘कई खामियां’ हैं, जो कुछ राजनेताओं और पुलिस को बड़े पैमाने पर इसका दुरुपयोग करने का मौका देती हैं.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq