बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि वामपंथी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में जांच आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को हस्तांतरित करने की मांग करने वाली परिजनों की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को निर्णय लेना चाहिए. अदालत ने कहा कि हम अंतहीन इंतजार नहीं कर सकते. हम इस पर फैसला चाहते हैं.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि वामपंथी नेता और कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में जांच आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को हस्तांतरित करने की मांग करने वाली परिजनों की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को निर्णय लेना चाहिए.
पानसरे को 16 फरवरी, 2015 को कोल्हापुर में गोली मार दी गई थी, जिसके चार दिन बाद 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई. फिलहाल इस मामले की जांच महाराष्ट्र राज्य अपराध अन्वेषण विभाग (सीआईडी) कर रहा है और अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
इस महीने की शुरुआत में पानसरे की बहू मेघा पानसरे ने अपनी याचिका में दावा किया था कि पानसरे, तर्कवादी बुद्धिजीवी नरेंद्र दाभोलकर, कन्नड़ शिक्षाविद एवं कार्यकर्ता एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के पीछे बड़ी साजिश थी.
विशेष लोक अभियोजक अशोक मुंडारगी ने बृहस्पतिवार को इस याचिका पर जवाब देने के लिए और जांच की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट पेश करने के लिए समय मांगा. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने एक हफ्ते का समय दिया है.
अदालत ने कहा, ‘हम आपको एक हफ्ते का समय देते हैं, हम अनंत तक इंतजार नहीं कर सकते. हम इस मामले में एक निर्णय चाहते हैं. हमने आज समझते हैं, लेकिन यह अनंत तक नहीं चल सकता.’
इंडिया टुडे के मुताबिक, पीठ पानसरे के परिवार द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जो चाहता है कि पानसरे की हत्या का मामला सीआईडी एसआईटी से महाराष्ट्र एटीएस को स्थानांतरित किया जाए.
सुनवाई के दौरान परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अभय नेवागी ने अदालत को बताया कि राज्य पुलिस ने हत्या के सात साल बाद भी पानसरे के मामले में अभी तक कोई प्रगति नहीं की है.
इस बीच, दाभोलकर की हत्या के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा गिरफ्तार किए गए वीरेंद्र तावड़े की जमानत याचिका पर सुनवाई एक हफ्ते के लिए स्थगित कर दी गई. अदालत ने कहा कि इस मामले में अब तक 32 में से आठ गवाहों से पूछताछ की जा चुकी है.
गौरतलब है कि नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे में गोली मारकर उस समय हत्या कर दी गई थी, जब वह सुबह की सैर पर निकले थे. पानसारे की कोल्हापुर में 16 फरवरी, 2015 को गोली मारी गई थी और कुछ दिनों बाद 20 फरवरी को उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
इसी तरह लेखक और तर्कवादी एमएम कलबुर्गी की कर्नाटक के धारवाड़ में 30 अगस्त, 2015 को गोली मारकर हत्या की गई थी.
तीन मामलों की जांच करने वाली एजेंसियों ने अदालत में पिछले मौकों पर कहा है कि मामलों में कुछ समान ‘कड़ियां’ और आरोपी व्यक्ति थे.
मई 2019 में सीआईडी की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने गोविंद पानसरे की हत्या के संबंध में दक्षिणपंथी कार्यकर्ता शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया था.
दाभोलकर मामले में सीबीआई ने इस मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार किया था और इनमें से पांच के खिलाफ आरोप-पत्र भी दाखिल किया है.
सीबीआई ने 2016 में सनातन संस्था के सदस्य ईएनटी सर्जन और कथित प्रमुख साजिशकर्ता डॉ. वीरेंद्र तावड़े को गिरफ्तार किया था. उसके बाद अगस्त 2018 में दो शूटरों- शरद कलासकर व सचिन प्रकाशराव अंडुरे को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने कथित तौर पर दाभोलकर पर गोलियां चलाई थीं.
मई 2019 में मुंबई की सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर व उसके सहयोगी विक्रम भावे को गिरफ्तार किया गया था. इन पांचों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया था.
सीबीआई ने तीन अन्य लोगों- अमोल काले, अमित दिगवेकर और राजेश बांगेरा को गिरफ्तार किया था, जो कि 2017 में हुई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के भी आरोपी हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)