ओडिशा: समलेश्वरी मंदिर पुनर्विकास योजना के चलते 200 दलित परिवार बेघर होने की कगार पर

ओडिशा सरकार संबलपुर के समलेश्वरी मंदिर के सौंदर्यीकरण और पुनर्विकास की योजना पर काम कर रही है, जिसके चलते पास की बस्ती में बरसों से झुग्गियां बनाकर रह रहे क़रीब 200 दलित परिवार प्रभावित होंगे. सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, कम से कम सौ घरों को पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है. अन्य परिवारों ने अपने घरों को बचाने के लिए ओडिशा हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

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The drive to beautify the temple premises has led to the demolition of the homes of Ghunghuti Para's slum dwellers. Photo: Author provided

ओडिशा सरकार संबलपुर के समलेश्वरी मंदिर के सौंदर्यीकरण और पुनर्विकास की योजना पर काम कर रही है, जिसके चलते पास की बस्ती में बरसों से झुग्गियां बनाकर रह रहे क़रीब 200 दलित परिवार प्रभावित होंगे. सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, कम से कम सौ घरों को पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है. अन्य परिवारों ने अपने घरों को बचाने के लिए ओडिशा हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

घुनघुटी पारा में तोड़े गए घर. (फोटो: लेखक द्वारा जुटाए गए)

नई दिल्ली: पश्चिमी ओडिशा के संबलपुर में समलेश्वरी मंदिर के सौंदर्यीकरण और पुनर्विकास की योजना के बीच दलित दैनिक श्रमिकों पर गंभीर संकट आ गया है.

250 करोड़ रुपये की परियोजना 2021 में शुरू की गई थी. इस पर ओडिशा सरकार की समलेश्वरी मंदिर क्षेत्र प्रबंधन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पहल (समलेई) योजना के तहत काम हो रहा है. इस परियोजना का उद्देश्य मंदिर परिसर के आसपास के क्षेत्र को एक नई पहचान देना है.

हालांकि, मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण के अभियान के चलते घुनघुटी पारा के झुग्गी निवासियों के घर तोड़ दिए गए हैं. इलाके में रहने वाले ज्यादातर परिवार दलित समुदाय के हैं, इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर हैं.

एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस योजना से करीब 200 परिवार प्रभावित होंगे. वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, कम से कम 100 घरों को पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है.

अन्य परिवारों ने अपने घरों को बचाने के लिए ओडिशा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

27 जून को जारी एक अंतरिम आदेश में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य हितधारकों को निर्देश दिया था कि वे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाएं. हालांकि, 12 जुलाई के एक अन्य अंतरिम आदेश में हाईकोर्ट ने घुनघुटी पारा झुग्गी बस्ती को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ स्थगन आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने सरकार को समलेई योजना पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया है.

द वायर  ने घुनघुटी पारा के निवासियों से बात की, जिन्होंने कहा कि इलाके में 400 से अधिक वर्षों से झुग्गियां मौजूद हैं. इस क्षेत्र में कम से कम 200 स्कूली बच्चों समेत 1,200 से अधिक लोगों की आबादी है.

एक स्थानीय निवासी प्रदीप कुमार ने कहा, ‘हमें बताया जा रहा है कि आपको किसी भी कीमत पर जाना होगा. तोड़-फोड़ और बेदखली के इस बढ़ते खतरे से हम बहुत परेशान हैं, न तो हम सो पा रहे हैं और न खा पा रहे हैं. इस क्षेत्र में रहने वाले हम सभी मजदूर, दिहाड़ी मजदूर, बढ़ई, निर्माण मजदूर और घरेलू कामगार हैं. हम अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दलित बस्ती को निशाना बनाया जा रहा है. योजना सभी चारों तरफ से जगह खाली कराने की थी, लेकिन उसे बदल दिया है. वास्तव में, सिर्फ हमारी ही कॉलोनी को निशाना बनाया जा रहा है. अन्य किसी क्षेत्र को निशाना नहीं बनाया गया है या वहां के निवासियों को हमारी तरह निकाला नहीं गया है.’

12 जुलाई को संबलपुर जिले में 18 से अधिक दलित, आदिवासी और बहुजन संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया.

सामाजिक कार्यकर्ता बालकिशोर छत्तर ने द वायर  को बताया कि सरकार से जमीन के मालिकाना हक की लंबे समय से (झुग्गीवासियों द्वारा) लगातार मांग की जा रही है. हालांकि, सरकार ने उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया और अब पुनर्विकास के नाम पर वह कंपनियों को जमीन सौंप सकती है.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा, सरकार ने अभी तक बेदखल किए जा रहे लोगों के लिए कोई पुनर्वास योजना नहीं बनाई है. यदि घुनघुटी पारा के झुग्गी-झोपड़ियों वासियों को बेदखल किया जाता है, तो यह उनके जीवन, आजीविका और बच्चों की शिक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा.’

उन्होंने आगे कहा कि समलेई योजना के तहत घुनघुटी पारा में 400 सालों से बसे लोगों को बेदखल करने का मतलब यह समझा जा रहा है कि सरकार उनके हक की जमीन को कोड़ियों के भाव कॉरपोरेट्स को बेचने वाली है.

इस बीच, राज्य सरकार ने दावा किया है कि प्रत्येक विस्थापित परिवार को 75,000 रुपये की राशि और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 3 लाख रुपये की सहायता दी जाएगी.

वहीं, सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार के दावे पर्याप्त नहीं हैं, और इसके अलावा इसने स्थानीय निवासियों की मांग की अनदेखी की है जो बेदखल होना नहीं चाहते हैं.

मंदिर की एक तस्वीर. (साभार: Twitter/@TourismDptt)

ओडिशा में हाशिए पर पड़े समुदायों के साथ काम करने वाले एक एक्टिविस्ट मधुसूदन ने बताया, ‘यह परियोजना काफी समय से चल रही है. सरकार ने बेदखल लोगों को मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करने का दावा किया है. कुछ लोगों ने योजना (पीएम आवास के तहत मुआवजे) के लिए पंजीकरण कराया है, जबकि कुछ लोगों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया. जमीनी हकीकत यह है कि कम से कम 100 परिवार अपने घरों से बेदखल होने और उन्हे तोड़े जाने के विरोध में संघर्ष कर रहे हैं. जिन लोगों ने पंजीकरण करा लिया था, उन्हें हटाया जा रहा है.’

उन्होंने कहा कि 400 वर्षों से बसे लोगों को धर्म और आस्था के नाम पर उनकी आजीविका, आय, शिक्षा और सुरक्षा से वंचित किया जा रहा है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)