दिल्ली दंगाः जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम को अंतरिम ज़मानत देने से अदालत का इनकार

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में वर्ष 2020 में भड़के दंगे के कथित षड्यंत्र के मामले में जनवरी 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. तब से वे जेल में हैं.

शरजील इमाम. (फोटो साभार: फेसबुक)

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में वर्ष 2020 में भड़के दंगे के कथित षड्यंत्र के मामले में जनवरी 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. तब से वे जेल में हैं.

शरजील इमाम. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2020 में शहर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगे के कथित षड्यंत्र के मामले में गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र शरजील इमाम को अंतरिम जमानत देने से शनिवार को मना कर दिया.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने इमाम की अंतरिम जमानत की अर्जी अस्वीकार करते हुए रेखांकित किया कि राहत देने के लिए उसके पास पर्याप्त आधार नहीं है.

सुनवाई के दौरान इमाम के वकील अहमद इब्राहिम ने अदालत से कहा कि आरोपी जमानत की शर्तों को पूरी करता है और उसके मामले में ऐसा खतरा नहीं है कि वह गवाहों को प्रभावित करे या सबूतों से छेड़छाड़ करे.

अधिवक्ता ने कहा कि इमाम ने हिंसक गतिविधियों को भड़काने का आह्वान भी नहीं किया था.

विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि अदालत को जमानत देने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार करना चाहिए.

इमाम पर नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर सरकार के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, विशेष रूप से दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण, जिसके कारण कथित तौर पर विश्वविद्यालय के बाहरी क्षेत्र में हिंसा हो गई थी.

इमाम राजद्रोह के मुकदमे का सामना कर रहे हैं और जनवरी 2020 से ही न्यायिक हिरासत के तहत जेल में बंद हैं.

दिल्ली पुलिस मामले में आरोप-पत्र दाखिल कर चुकी है. उसने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के प्रति लोगों में घृणा, अवज्ञा और असंतुष्टि पैदा करने के लिए इमाम ने भाषण दिया, जिसकी वजह से दिसंबर 2019 में हिंसा हुई.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, शरजील के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी आरोप दर्ज हैं.

उनके वकील इब्राहिम ने इस तथ्य तो ध्यान में रखकर जमानत मांगी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि राजद्रोह संबंधित सभी लंबित मामलों को इस कानून की संवैधानिक वैधता तय होने तक स्थगित रखा जाए.

उन्होंने तर्क दिया कि इमाम की पिछली जमानत याचिका को इसलिए खारिज कर दिया गया था, क्योंकि राजद्रोह के मामलों में जमानत देने में कुछ सीमाएं थीं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में पिछले जमानत आदेश में सामने आईं बाधाओं को दूर किया गया है.

शरजील की जमानत याचिका का विरोध करते हुए विशेष लोक अभियोजक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कोई निर्देश नहीं है कि राजद्रोह के अपराध के सभी आरोपियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए.

इस महीने की शुरुआत में इमाम ने दिल्ली हाईकोर्ट में गुहार लगाते हुए दावा किया कि उसके जीवन को जेल में खतरा है.

मालूम हो कि इस साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2019 में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में शरजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह का अभियोग तय किया था.

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, शरजील इमाम ने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया में और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए भाषणों में कथित तौर पर असम और बाकी पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की धमकी दी थी.

इन कथित भाषणों के लिए इमाम को यूएपीए और राजद्रोह के तहत एक अन्य मामले में भी गिरफ्तार किया गया था.

दिसंबर 2021 में जामिया हिंसा मामले में शरजील को जमानत मिली थी. इसके अलावा इमाम को जनवरी 2020 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए एक भाषण के लिए उनके खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले में जमानत मिल चुकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)