पीएमएलए में ईसीआईआर उपलब्ध कराना ज़रूरी नहीं, गिरफ़्तारी के आधार का ख़ुलासा काफ़ी: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाली 200 से अधिक याचिकाओं को  सुनते हुए गिरफ़्तारी, कुर्की और ज़ब्ती से संबंधित ईडी के अधिकारों को बरक़रार रखते हुए कहा कि इस क़ानून की धारा-5 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाली 200 से अधिक याचिकाओं को  सुनते हुए गिरफ़्तारी, कुर्की और ज़ब्ती से संबंधित ईडी के अधिकारों को बरक़रार रखते हुए कहा कि इस क़ानून की धारा-5 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की प्रति उपलब्ध कराना ‘अनिवार्य नहीं है’ और किसी आरोपी को गिरफ्तार करते समय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)) द्वारा इसके आधार का खुलासा किया जाना ही पर्याप्त है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 में परिकल्पित विशेष तंत्र के मद्देनजर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत किसी ईसीआईआर को प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) से नहीं जोड़ा जा सकता.

अदालत ने 2002 के अधिनियम के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि पीएमएलए विशेष कानून है और दीवानी कार्रवाई के साथ-साथ अभियोजन शुरू करने के उद्देश्य से जांच/पड़ताल की जटिलता को देखते हुए किसी मामले में ईसीआईआर उपलब्ध न कराने को गलत नहीं माना जा सकता.

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि यदि अपराध से अर्जित किसी संपत्ति और प्रक्रिया में शामिल किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक जांच या पड़ताल से पहले इसका खुलासा किया जाता है तो इसका जांच या पड़ताल के अंतिम परिणाम पर ‘हानिकारक प्रभाव’ हो सकता है.

पीठ ने कहा, ‘व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) का पर्याप्त अनुपालन है.’

संविधान का अनुच्छेद 22(1) कहता है कि गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दिए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा, और न ही उसे अपनी पसंद के किसी वकील से परामर्श करने और बचाव करने के अधिकार से वंचित किया जाएगा.

न्यायालय पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाली व्यक्तियों और अन्य संस्थाओं द्वारा दायर 200 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.

अदालत ने कहा कि पीएमएलए की धारा-45 संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है और यह उचित है और मनमानीपूर्ण नहीं है.

पीठ ने 545 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, ‘2002 अधिनियम की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती भी खारिज की जाती है. धारा 19 में कड़े सुरक्षा उपाय दिए गए हैं. प्रावधान में कुछ भी मनमानी के दायरे में नहीं आता.’

न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा-5 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है.

पीठ ने कहा, ‘यह व्यक्ति के हितों को सुरक्षित करने के लिए एक संतुलित व्यवस्था प्रदान करता है और यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध से अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीकों से निपटा जाए.’

इसने कहा कि इस सवाल पर कि क्या पीएमएलए में कुछ संशोधनों को संसद द्वारा वित्त अधिनियम के माध्यम से अधिनियमित नहीं किया जा सकता है, इसकी जांच नहीं की गई है.

पीठ ने कहा कि पीएमएलए की धारा 24 का अधिनियम द्वारा हासिल किए जाने वाले उद्देश्यों के साथ उचित संबंध है और इसे असंवैधानिक नहीं माना जा सकता है.

धारा 24 के अनुसार जब किसी व्यक्ति पर मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध करने का आरोप लगाया जाता है, तो यह साबित करने का दायित्व आरोपी पर होगा कि अपराध की आय बेदाग संपत्ति है.

इसने कहा कि अधिनियम की धारा 63, जो झूठी सूचना या सूचना देने में विफलता के संबंध में सजा से संबंधित है, किसी भी तरह से मनमानीपूर्ण नहीं है.

पीठ ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 द्वारा परिकल्पित विशेष तंत्र के मद्देनजर सीआरपीसी के तहत किसी ईसीआईआर को एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता.

पीठ ने कहा, ‘2002 अधिनियम की धारा 50 द्वारा उल्लेखित प्रक्रिया अपराध की आय के खिलाफ जांच की प्रकृति में है, और 2002 के अधिनियम (धारा 48 में संदर्भित) के तहत अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं हैं.’

धारा 50 समन, दस्तावेजों को प्रस्तुत करने और साक्ष्य देने के संबंध में प्राधिकारियों की शक्तियों से संबंधित है.

पीठ ने कहा कि 2002 के अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए बयान संविधान के अनुच्छेद 20 (3) या अनुच्छेद 21 से प्रभावित नहीं हैं.

अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है.

कोर्ट ने गिरफ्तारी, मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी संपत्ति की कुर्की और पीएमएलए के तहत तलाशी एवं जब्ती से संबंधित ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा.

पीठ ने कहा कि ईसीआईआर ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है और यह तथ्य कि संबंधित अपराध में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, अपराध से अर्जित संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क करने के लिए दीवानी कार्रवाई शुरू करने के वास्ते जांच/पड़ताल शुरू करने के लिए धारा 48 में संदर्भित प्राधिकारों के आड़े में नहीं आता.

इसने कहा, ‘हर मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं है. अगर गिरफ्तारी के समय ईडी ऐसी गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करता है तो यह पर्याप्त है.’

पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के समक्ष जब गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, तो वह ईडी द्वारा प्रस्तुत प्रासंगिक रिकॉर्ड देख सकती है तथा वही मनी लॉन्ड्रिंग के कथित अपराध के संबंध में व्यक्ति को लगातार हिरासत में रखे जाने पर फैसला करेगी.

न्यायालय ने ईडी नियमावली के उपयोग संबंधी अस्पष्टता के बारे में किए गए अभिवेदन पर भी विचार किया.

पीठ ने कहा कि 2002 अधिनियम की धारा 19 (1) में कहा गया है कि गिरफ्तारी के बाद, जितनी जल्दी हो सके, व्यक्ति को इस तरह की गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाना चाहिए और यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अनुरूप है.

इसने कहा कि ईसीआईआर उपलब्ध न कराना, जो अनिवार्य रूप से ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है, को संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता.

पीएमएलए पर न्यायालय के फैसले का लोकतंत्र पर दूरगामी प्रभाव होगा: कांग्रेस

कांग्रेस ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत ईडी को मिले अधिकारों को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बुधवार को कहा कि इस फैसले का ऐसे समय में देश के लोकतंत्र पर दूरगामी असर होगा जब सरकारें राजनीतिक प्रतिशोध में लगी हुई हैं.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को लेकर दिए गए फैसले का हमारे लोकतंत्र पर दूरगामी प्रभाव होगा और खासकर उस समय जब सरकारें राजनीतिक प्रतिशोध ले रही हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बहरहाल, इस फैसले के एक विशेष पहलू पर मैं तत्काल बात करना चाहूंगा. मैंने मोदी सरकार द्वारा धन विधेयक के सरेआम दुरुपयोग किए जाने को लेकर उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. उच्चतम न्यायालय ने मेरी याचिका पर दो जुलाई, 2019 को नोटिस जारी किया था. आज के फैसले से यह सवाल अनसुलझा ही रह गया.’

रमेश का कहना था कि उच्चतम न्यायालय ने कुछ मामलों को व्यापक पीठ द्वारा सुनवाई के लिए छोड़ दिया है और यह कुछ संतोष का विषय है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)