बच्चे की नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां के पास सरनेम पर फ़ैसला लेने का अधिकार: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पहले पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां और बच्चे के मृत जैविक पिता के माता-पिता के बीच बच्चे के सरनेम से जुड़े एक मामले को सुनते हुए कहा कि नैसर्गिक अभिभावक होने के चलते मां अपने बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार रखती हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने पहले पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां और बच्चे के मृत जैविक पिता के माता-पिता के बीच बच्चे के सरनेम से जुड़े एक मामले को सुनते हुए कहा कि नैसर्गिक अभिभावक होने के चलते मां अपने बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार रखती हैं.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जैविक पिता के निधन के बाद बच्चे की नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां के पास बच्चे के उपनाम (सरनेम) पर निर्णय लेने का अधिकार है. उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए की.

शीर्ष अदालत पहले पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह करने वाली मां और बच्चे के मृत जैविक पिता के माता-पिता के बीच बच्चे के उपनाम से जुड़े एक मामले से सुनवाई कर रही थी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 24 जनवरी 2014 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में महिला को निर्देश दिया था कि वह बच्चे का सरनेम वही दें, जो पहले पति का था जिससे यह पता लग सके कि वहीं बच्चे के जैविक पिता हैं, और अगर यह संभव न हो तो दस्तावेजों में अपने दूसरे पति का नाम बच्चे के सौतेले पिता के रूप में दर्ज करे.

हालांकि, शीर्ष अदालत में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने इससे असहमति जताई. उन्होंने कहा कि दस्तावेजों में महिला के दूसरे पति का नाम ‘सौतेले पिता’ के रूप में शामिल करने का उच्च न्यायालय का निर्देश ‘लगभग क्रूर’ और इस तथ्य के प्रति नासमझी को दिखाता है कि यह बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को कैसे प्रभावित करेगा.

न्यायालय ने कहा कि बच्चे की एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां को बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार है और उसे बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ने का भी अधिकार है.

पीठ ने कहा कि अपने पहले पति की मृत्यु के बाद बच्चे की एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते मां को अपने नये परिवार में बच्चे को शामिल करने और उपनाम तय करने से कानूनी रूप से कैसे रोका जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक नाम महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक बच्चा इससे अपनी पहचान प्राप्त करता है और उसके नाम और परिवार के नाम में अंतर गोद लेने के तथ्य की निरंतर याद दिलाने के रूप में कार्य करेगा. ऐसे में बच्चे को अनावश्यक सवालों का सामना करना पड़ेगा, जो उसके माता-पिता के बीच एक सहज और प्राकृतिक संबंध में बाधा उत्पन्न करेंगे.

पीठ ने आगे कहा, ‘इसलिए हमें अपीलकर्ता मां के पुनर्विवाह पर बच्चे को अपने पति का उपनाम देने या यहां तक कि बच्चे को अपने पति को गोद देने में भी कुछ असामान्य नहीं है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)