एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा ने विशेष एनआईए अदालत के समक्ष याचिका में कहा है कि रोना विल्सन और एक वांछित आरोपी के बीच ईमेल को जांच एजेंसी द्वारा 2018 में कई मौकों पर इंटरसेप्ट किया था.
मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा ने शुक्रवार को यहां एक विशेष अदालत को बताया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (ईमेल) बगैर ‘उपयुक्त अनुमति’ के हासिल किए गए थे.
ईमेल से प्राप्त की गई सामग्री को अभियोजन द्वारा साक्ष्य के तौर पर पेश किया गया है.
हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दलील दी है कि ईमेल गुप्त रूप से हासिल नहीं किए गए, बल्कि उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए जांच के दौरान उन्हें डाउनलोड किया गया.
फरेरा ने विशेष एनआईए अदालत को बताया कि उन्होंने दो महीने पहले एक अर्जी देकर अभियोजन को यह निर्देश देने की मांग की थी कि इसके लिए एक सक्षम प्राधिकार से आदेश दिलाया जाए.
फरेरा मामले में अपनी गिरफ्तारी के बाद अभी न्यायिक हिरासत में हैं. उन्होंने अपनी अर्जी में दावा किया कि मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन और एक वांछित आरोपी के बीच ईमेल पर हुए संवाद को जांच एजेंसी (पुणे पुलिस) ने 2018 में कई बार हासिल किया था.
फरेरा ने अपने आवेदन में दावा किया था कि रोना विल्सन और एक वांछित आरोपी के बीच इलेक्ट्रॉनिक (ईमेल) बातचीत को जांच एजेंसी (पुणे पुलिस) ने 2018 में कई मौकों पर इंटरसेप्ट किया था.
इस सामग्री को अभियोजन द्वारा सबूत के तौर पर पेश किया गया था.
फरेरा ने कहा है कि गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत इस तरह की सामग्री को साक्ष्य के तौर पर हासिल नहीं किया जा सकता, न ही किसी अदालती सुनवाई या कार्यवाही में पेश किया जा सकता है.
हालांकि, अभियोजन पक्ष (एनआईए) ने अपने जवाब में तर्क दिया कि जांच के दौरान विल्सन से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जांच के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) भेजा गया था. विल्सन से प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के डेटा का एफएसएल पुणे द्वारा विश्लेषण किया गया था.
जांच एजेंसी ने कहा कि जांच अधिकारी ने साइबर विशेषज्ञों की मदद से दो स्वतंत्र गवाहों की मौजूदगी में आगे की जांच की और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए ईमेल की बातचीत को डाउनलोड किया.
जांच एजेंसी ने कहा, ‘चूंकि किसी भी समय कोई इंटरसेप्ट संबंधी कार्रवाई नहीं की गई थी, इसलिए सक्षम प्राधिकारी से आदेश प्राप्त करने का सवाल ही नहीं उठता है.’
बता दें कि इस साल की शुरुआत में जनवरी में, फरेरा, विल्सन और मामले के अन्य आरोपियों ने पेगासस स्पायवेयर के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति के सामने अपना पक्ष रखा था और आरोप लगाया था कि उनके फोन पर पेगासस से हमला हुआ था.
इससे पहले, द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किए गए कम से कम आठ एक्टिविस्ट, वकील और शिक्षाविद् के नाम पेगासस के संभावित निशाने पर रहे लोगों के लीक डेटा में थे. आरोपियों के अलावा, उनके परिवार के सदस्यों, वकीलों, सहयोगी कार्यकर्ताओं और कुछ मामलों में नाबालिग बच्चों के भी नाम उस सूची में थे.
दिसंबर 2021 में, मैसाचुसेट्स स्थित एक डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग ने निष्कर्ष निकाला कि विल्सन का फोन न केवल इज़रायल के एनएसओ समूह के एक ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए चुना गया था, बल्कि कई मौकों पर सफलतापूर्वक स्पायवेयर के जरिये उसमें सेंध भी लगाई गई थी.
एल्गार परिषद मामला, जो अब एनआईए के अधीन है, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन से संबंधित है. पुणे पुलिस के मुताबिक, यह आयोजन माओवादियों द्वारा वित्तपोषित था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि वहां दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन पुणे में भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर हिंसा भड़क गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)