प्रवर्तन निदेशालय ने एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की गतिविधियां संचालित करने के लिए धन जुटाने का आरोप लगाया है. इस संबंध में एक विशेष अदालत के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर गाडलिंग से पूछताछ की अनुमति मांगी गई है.
मुंबई: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 28 जुलाई गुरुवार को एक विशेष अदालत के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत कर एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद कार्यकर्ताओं में से एक सुरेंद्र गाडलिंग से पूछताछ करने की अनुमति मांगी है.
यह पूछताछ उनके खिलाफ मार्च 2021 में दर्ज प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) के संबंध में करनी है.
नागपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता पहले ही चार साल से जेल में हैं और अब उनके खिलाफ ईडी द्वारा ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ मामले में जांच की जाएगी.
एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए 16 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से एक गाडलिंग वर्तमान में मुंबई के बाहरी इलाके में बनी तलोजा केंद्रीय जेल में बंद हैं.
सहायक निदेशक प्रद्युम्न शर्मा द्वारा दायर ईडी के आवेदन में दावा किया गया है कि गाडलिंग प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की ‘गतिविधियां व्यवस्थित करने और चलाने’ के लिए धन प्राप्त करते थे. एजेंसी ने अपनी जांच को मौजूदा एल्गार परिषद मामले की जांच से जोड़ दिया है, जो एक और केंद्रीय एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है.
आवेदन में ईडी ने दावा किया है कि गाडलिंग ने कथित तौर पर 31 दिसबंर 2017 को शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद आयोजित करने में भागीदारी निभाई थी. एनआईए का मामला यह है कि एल्गार परिषद की गतिविधि नक्सल मोर्चा थी और शहरी क्षेत्र में विचारधारा का प्रसार करने के इरादे से आयोजित की गई थी.
गाडलिंग और अन्य 15 कार्यकर्ताओं पर ‘अर्बन नक्सल’ (शहरी नक्सली) होने का आरोप लगाया गया है, जो प्रतिबंधित संगठन की विचारधारा को शहरी युवाओं के बीच फैलाने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें खुद से जोड़ भी लिया.
बता दें कि कई स्वतंत्र जांच इन दावों पर गंभीर सवाल उठा चुकी हैं और गिरफ्तार आरोपियों के इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से संभावित छेड़छाड़ की ओर इशारा कर चुकी हैं.
कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर द वायर द्वारा किए गए पेगासस प्रोजेक्ट ने भी इस ओर इशारा किया था कि गाडलिंग की पत्नी मीनल, उनके सहयोगी वकील निहाल सिंह राठौड़ और जगदीश मेश्राम के फोन पर संभावित मैलवेयर का हमला हुआ था.
मैसाच्युसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा की गई एक अन्य स्वतंत्र जांच में पाया गया था कि गाडलिंग के कंप्यूटर पर हमला किया गया था और उसमें उन्हें फंसाने वाले दस्तावेज डाले गए थे.
ईडी के मामले में अब दावा किया गया है कि गाडलिंग, अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर, आतंकी गतिविधियों और भाकपा (माओवादी) के प्रसार के लिए धन जुटाने में शामिल थे. ईडी ने अपने आवेदन में दावा किया है कि इसके लिए गाडलिंग के साथ उनके परिवार के सदस्यों के बैंक खातों का भी इस्तेमाल किया गया था.
ईडी ने आवेदन में आरोप लगाया है, ‘उन्होंने आपस में संवाद करने के लिए फर्जी व्यक्तियों के नाम पर ईमेल और सिम कार्ड का इस्तेमाल किया.’
ईसीआईआर में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 3 लगाई है. एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग और अन्य आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धाराएं पहले से ही लगी हुई हैं. याचिका पर अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी.
ईडी की ओर से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक सुनील गोंजाल्विस ने कहा कि एजेंसी 17 से 19 अगस्त के बीच पीएमएलए की धारा 50 (2) के अनुसार, गाडलिंग का बयान दर्ज करना चाहती है. हालांकि, अदालत ने आवेदन पर फैसला नहीं किया और इसे 10 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया.
6 जून 2018 को उनकी गिरफ्तारी के बाद से जांच एजेंसी तीन आरोप पत्र ( एक मुख्य और दो पूरक) पेश कर चुकी है. लेकिन मामले में अभी ट्रायल शुरू होना बाकी है.
इस बीच, गाडलिंग की जमानत याचिका अदालत के समक्ष लंबित है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)