साल 2015 से नौ राज्यों – महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मिज़ोरम और मेघालय – ने सीबीआई से जांच के लिए ज़रूरी आम सहमति वापस ले ली है. विपक्ष शासित इन राज्यों ने आरोप लगाया है कि सीबीआई उसके मालिक (केंद्र) की आवाज़ बन गई है और वह विपक्षी नेताओं को ग़लत तरीके से निशाना बना रही है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बताया है कि छह राज्यों द्वारा सहमति न दिए जाने के कारण केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच की मांग करने वाले 221 अनुरोध लंबित हैं, जिनमें सर्वाधिक 168 अनुरोध महाराष्ट्र से हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी बीते 28 जुलाई को दी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र में पिछले दो वर्षों में सीबीआई से जांच के लिए 168 अनुरोध उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के पास लंबित हैं.
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद महाराष्ट्र ने 2020 में सीबीआई से जांच के लिए आम सहमति (General Consent) वापस ले ली थी.
इतना ही नहीं सीबीआई द्वारा सरकारी अधिकारियों की जांच के लिए 91 अनुरोध एमवीए सरकार के अस्तित्व के अंतिम छह महीनों में लंबित रहे हैं. मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए 30 जून तक के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में सबसे अधिक लंबित अनुरोध थे, जिनमें से 39 अनुरोध एक वर्ष से अधिक और 38 छह महीने से अधिक समय से लंबित थे.
साल 2018 में सीबीआई से आम सहमति वापस लेने वाले पश्चिम बंगाल में में केवल एक सीबीआई अनुरोध एक वर्ष से अधिक समय से लंबित था, एक अनुरोध छह महीने से अधिक समय से लंबित था और 25 अनुरोध छह महीने से कम समय से लंबित थे.
साल 2020 में सीबीआई से आम सहमति वापस लेने वाले पंजाब में सीबीआई के पांच अनुरोधों को छह महीने से अधिक समय तक और चार अनुरोधों को उस अवधि से कम समय के लिए लंबित रखा गया था.
इसी वर्ष सहमति वापस लेने वाले राजस्थान के पास सीबीआई से चार अनुरोध लंबित थे. झारखंड ने भी साल 2020 में सीबीआई की आम सहमति वापस ले ली थी और वर्तमान में यहां छह सीबीआई अनुरोध लंबित हैं, जिनमें से चार छह महीने से कम समय से लंबित हैं.
छत्तीसगढ़ ने 2019 में सीबीआई की आम सहमति वापस ले ली थी. यहां सात अनुरोध लंबित हैं, जिनमें से केवल एक मामला छह महीने से अधिक समय से लंबित है.
सरकार की ओर से कहा गया है कि इन मामलों में शामिल कुल राशि 30,000 करोड़ रुपये से अधिक थी, जिसमें अकेले महाराष्ट्र में 29,000 करोड़ रुपये थे.
रिपोर्ट के अनुसार, 2015 से नौ राज्यों – महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मिजोरम और मेघालय – ने सीबीआई से आम सहमति वापस ले ली है. विपक्ष शासित इन राज्यों ने आरोप लगाया है कि सीबीआई उसके मालिक (केंद्र सरकार) की आवाज बन गई है और वह विपक्षी नेताओं को गलत तरीके से निशाना बना रही है.
आम सहमति वापस लेने का मतलब है कि इन राज्यों में किसी भी मामले की जांच के लिए सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी.
सीबीआई ने दावा किया है कि इसने हाथ बांध दिए हैं. पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की इस दलील पर चिंता व्यक्त की थी कि मामलों की जांच के लिए मंजूरी के लिए उसके 150 अनुरोधों में से 78 फीसदी राज्य सरकारों के पास लंबित थे जिन्होंने सीबीआई से सहमति वापस ले ली थी.
दूसरी ओर, 455 लोक सेवकों से जुड़े 177 मामलों में सीबीआई को 2020 के अंत तक केंद्र सरकार से अभियोजन की मंजूरी नहीं मिली थी.
बीते 28 जुलाई को केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा, ‘30 जून, 2022 की स्थिति के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए के तहत कुल 101 अनुरोध, जिसमें 235 लोक सेवक शामिल हैं, केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के पास लंबित हैं.’