अदालत कम लोग पहुंचते हैं, अधिकतर आबादी मौन रहकर पीड़ा सहती है: प्रधान न्यायाधीश

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी. 

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PM at the inaugural session of the First All India District Legal Services Authorities Meet, in New Delhi on July 30, 2022.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी.

30 जुलाई, 2022 को दिल्ली में प्रथम अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा है कि जनसंख्या का बहुत कम हिस्सा ही अदालतों में पहुंच सकता है और अधिकतर लोग जागरूकता एवं आवश्यक माध्यमों के अभाव में मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं.

जस्टिस रमना ने अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की बीते शनिवार (30 जुलाई) को हुई पहली बैठक में कहा कि लोगों को सक्षम बनाने में प्रौद्योगिकी बड़ी भूमिका निभा रही है. उन्होंने न्यायपालिका से न्याय देने की गति बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरण अपनाने का आग्रह किया.

अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका से आग्रह किया कि वह विभिन्न कारागारों में बंद एवं कानूनी मदद का इंतजार कर रहे विचाराधीन कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया में तेजी लाए.

जस्टिस रमना ने कहा, ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की इसी सोच का वादा हमारे संविधान की प्रस्तावना प्रत्येक भारतीय से करती है. वास्तविकता यह है कि आज हमारी आबादी का केवल एक छोटा प्रतिशत ही न्याय देने वाली प्रणाली से जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकता है. जागरूकता और आवश्यक साधनों की कमी के कारण अधिकतर लोग मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी. न्याय तक पहुंच सामाजिक उद्धार का एक साधन है.’

विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता देने और उनकी रिहाई सुनिश्चित करने को लेकर प्रधानमंत्री की तरह उन्होंने भी कहा कि जिन पहलुओं पर देश में कानूनी सेवा अधिकारियों के हस्तक्षेप और सक्रिय रूप से विचार किए जाने की आवश्यकता है, उनमें से एक पहलू विचाराधीन कैदियों की स्थिति है.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री और अटॉर्नी जनरल ने मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के हाल में आयोजित सम्मेलन में भी इस मुद्दे को उठाकर उचित किया. मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि नालसा (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण) विचाराधीन कैदियों को अत्यावश्यक राहत देने के लिए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है.’

जस्टिस रमना ने कहा कि भारत, दुनिया की दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, जिसकी औसत उम्र 29 वर्ष साल है और उसके पास विशाल कार्यबल है, लेकिन कुल कार्यबल में से मात्र तीन प्रतिशत कर्मचारियों के दक्ष होने का अनुमान हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने जिला न्यायपालिका को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की न्याय देने की प्रणाली के लिए रीढ़ की हड्डी बताया.

द हिंदू के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि जिला न्यायपालिका को मजबूत करना समय की मांग है. वे अधिकांश आबादी के लिए संपर्क का पहला बिंदु हैं. न्यायपालिका के बारे में जनता की राय मुख्य रूप से जिला न्यायिक अधिकारियों के साथ उनके अनुभवों पर आधारित होगी.

सीजेआई ने कहा, ‘जिला न्यायपालिका दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में न्याय वितरण प्रणाली की रीढ़ है. आपको बहुआयामी कार्य और भूमिकाएं निभानी चाहिए. आप लोगों की समस्याओं और सामाजिक मुद्दों को समझने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिला न्यायपालिका भारत में कानूनी सहायता आंदोलन के पीछे प्रेरक शक्ति है.’

उन्होंने कहा कि विचाराधीन कैदियों के अधिकारों की ओर से न्यायपालिका और वकीलों को सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए. जेल जाने वाले अधिवक्ताओं को विचाराधीन कैदियों की ओर से अधिकारियों को समय पर अभ्यावेदन देना चाहिए. उन्हें इन कैदियों के परिवारों तक भी पहुंचना चाहिए, जो अक्सर अंधेरे में रहते हैं कि जेल की दीवारों के पीछे क्या होता है.

सीजेआई ने कहा, ‘अगर हम लोगों की बेहतर सेवा करना चाहते हैं, तो हमें उन मुद्दों को उठाने की जरूरत है जो हमारे कामकाज में बाधा डालते हैं. समस्याओं को छिपाने का कोई मतलब नहीं है. यदि हम इन मुद्दों पर चर्चा नहीं करते हैं, यदि गंभीर चिंता के मामलों का समाधान नहीं किया जाता है, तो व्यवस्था चरमरा जाएगी.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे डर है कि हम सामाजिक न्याय के अपने संवैधानिक जनादेश को पूरा करने में असमर्थ हो सकते हैं. इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप चर्चा करें, बहस करें और निर्णय लें!’

उन्होंने 27 साल पहले नालसा के काम करना शुरू करने के बाद से उसके द्वारा दी सेवाओं की सराहना की. उन्होंने लोक अदालत और मध्यस्थता केंद्रों जैसे वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र (एडीआर) को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी बल दिया.

उन्होंने कहा कि इन एडीआर तंत्रों में लाखों लोगों को उनकी शिकायतों को निपटाने के लिए एक मंच प्रदान करके भारत के कानूनी परिदृश्य को बदलने की क्षमता है.

उन्होंने कहा, ‘वैवाहिक और अंतर सरकारी विवादों, सरकारी अनुबंधों और भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामलों को अनिवार्य एडीआर के माध्यम से हल करने का प्रयास किया जा सकता है. यह न केवल लंबित मामलों और बैकलॉग को कम करेगा, बल्कि प्रभावित पक्षों को बहुत जरूरी त्वरित न्याय भी प्रदान करेगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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