केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि 2018 से 2020 के बीच यूएपीए के तहत सर्वाधिक 1,338 गिरफ़्तारियां उत्तर प्रदेश में हुईं. उसके बाद मणिपुर में 943 और जम्मू कश्मीर में 750 लोगों को इस क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया. इनमें से अधिकांश लोग 18-30 वर्ष की उम्र के थे.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बुधवार को बताया कि 2018 से 2020 के बीच आतंकवाद विरोधी कानून ‘यूएपीए’ के तहत कुल 4,690 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन तीन साल की अवधि में सिर्फ 149 को दोषी ठहराया गया था.
राय ने एक प्रश्न के लिखित जवाब में राज्यसभा को बताया कि 2020 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत 1,321 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि उस वर्ष 80 लोगों को दोषी ठहराया गया था.
उन्होंने बताया कि 2019 में यूएपीए के तहत 1,948 लोगों को गिरफ्तार किया गया था और उस वर्ष 34 लोगों को दोषी ठहराया गया था और 2018 में 1,421 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि 35 लोगों को दोषी ठहराया गया था.
मंत्री ने कहा कि 2018 और 2020 के बीच यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की सबसे अधिक संख्या 1,338 उत्तर प्रदेश में थी . उसके बाद मणिपुर में 943 और जम्मू-कश्मीर में 750 थी.
उन्होंने बताया कि गिरफ्तार किए गए सभी लोगों में से 2,488 लोग 18-30 वर्ष की आयु वर्ग के थे और 1,850 लोग 30 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के थे.
बता दें कि यूएपीए कानून पहली बार 1967 में लागू हुआ था, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 2008 व 2012 और इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया संशोधनों ने इसे और सख्त बना दिया.
यूएपीए के प्रावधान के आरोप झेल रहे लोगों के लिए जमानत हासिल करना लगभग असंभव बना देते हैं. कानून कहता है कि अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है.
परिणामस्वरूप, यूएपीए के तहत आरोप झेल रहे ज्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन कैदियों के रूप में पड़े रहते हैं.
आंकड़ों से पता चलता है कि इस आतंकवाद विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या बहुतायत (97.5 प्रतिशत) में है, जिससे उनके लिए जमानत पाना लगभग असंभव हो जाता है, जो मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए वर्षों से कैद हैं.
आंकड़े दिखाते हैं कि 2016 से 3,047 लोग विचाराधीन कैदी हैं, 2017 से 4098, 2018 से 4862, 2019 से 5645 और 2020 से 6482 लोग यूएपीए के तहत विचारधीन कैदियों में शुमार हैं.
अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए इस कानून का राजनीतिक हथियार के रूप में दुरुपयोग करने संबंधी आरोप मौजूदा मोदी सरकार समेत लगभग सभी सरकारों पर लगते रहे हैं.
2019 में, वर्तमान एनडीए सरकार द्वारा यूएपीए में किए गए संशोधनों ने न केवल संगठनों बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी के रूप में नामित करने की अनुमति दी है.
कई पूर्व जजों, नौकरशाहों और एक्टिविस्ट ने कानून को निरस्त करने की मांग की है. उनका कहना है कि इसमें ‘कई खामियां’ हैं, जो कुछ राजनेताओं और पुलिस को बड़े पैमाने पर इसका दुरुपयोग करने का मौका देती हैं.
इससे पहले बीते दिनों मंत्री ने सदन ने बताया था कि 2016 से 2020 के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में यूएपीए के तहत कुल 5,027 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 24,134 लोगों को आरोपी बनाया गया.
इन 24,134 लोगों में से केवल 212 ही दोषी ठहराए गए, जबकि 386 आरोपियों को विभिन्न अदालतों ने रिहा कर दिया.
यूएपीए के तहत केंद्र की जांच वाले मामलों में दोषसिद्धि की दर 100 प्रतिशत तक: राय
सरकार ने बुधवार को राज्यसभा में यह भी कहा कि यूएपीए के तहत केंद्र द्वारा हाथ में लिए गए मामलों में दोषसिद्धि की दर 100 प्रतिशत तक रही है.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा, ‘जिहाद, आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद से जुड़े ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर 100 प्रतिशत रही है, जिन्हें केंद्र ने अपने हाथ में लिया.’
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा हाथ में लिए गए मामलों में दोषसिद्धि की औसत दर 94.17 प्रतिशत है. राय उच्च सदन में प्रश्नकाल के दौरान पूरक सवालों का जवाब दे रहे थे.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) राज्यों से मिले आंकड़ों को संकलित करता है. केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें भी यूएपीए के तहत मामले दर्ज करती हैं और कार्रवाई करती हैं.
राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर कम होने पर कुछ सदस्यों द्वारा चिंता जताए जाने पर राय ने कहा कि सभी मामलों में अदालत के फैसले नहीं आए हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे मामले विभिन्न चरणों में हैं और कुछ मामले जहां जांच के चरण में हैं, वहीं कुछ मामलों में सुनवाई चल रही है.
उन्होंने यह भी कहा कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों के आंकड़े धर्मवार नहीं रखे जाते हैं.
उन्होंने कहा कि बदलती जरूरतों के मद्देनजर यूएपीए में समय-समय पर संशोधन किए गए ताकि आतंकवाद और देश को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर काबू पाया जा सके. उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की गतिविधियों में बदलाव आया और उन्होंने उसका स्वरूप बदल दिया.
प्रश्नकाल के दौरान ही तृणमूल कांग्रेस सदस्य डोला सेन ने दिल्ली पुलिस से जुड़ा एक प्रश्न पूछने का प्रयास किया. लेकिन उप-सभापति हरिवंश ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी और कहा कि उनका सवाल मूल सवाल से संबंधित नहीं है.
तृणमूल के अन्य सदस्यों ने भी मांग की कि डोला सेन के सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए. इसके बाद तृणमूल के सदस्यों को सदन से बाहर जाते देखा गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)