मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम में संशोधन और इसके तहत ईडी को मिले अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दलों ने कहा है कि यह उस सरकार के हाथ को मजबूत करेगा, जो प्रतिशोध की राजनीति में लगी हुई है. इन संशोधनों का उपयोग करके वह अपने विरोधियों को दुर्भावनापूर्ण ढंग से निशाना बना रही है.
नई दिल्ली: कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दलों ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन और इसके तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले अधिकारों के संदर्भ में आए सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले को लेकर निराश जताते हुए बुधवार को कहा कि इस फैसले से ‘राजनीतिक प्रतिशोध में लगी’ सरकार के हाथ और मजबूत होंगे.
इन दलों ने एक साझा बयान में यह उम्मीद भी जताई कि शीर्ष अदालत का यह निर्णय बहुत कम समय के लिए होगा और आगे संवैधानिक प्रावधानों की जीत होगी.
इस साझा बयान पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), एमडीएमके, राष्ट्रीय जनता दल, रिवोल्यूशनरी सोशिल्स्ट पार्टी (आरएसपी) और शिवसेना समेत 17 दलों के नेताओं और निर्दलीय राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने हस्ताक्षर किए हैं.
17 Opposition parties, including TMC & AAP, plus one independent Rajya Sabha MP, have signed a joint statement expressing deep apprehensions on long-term implications of the recent Supreme Court judgement upholding amendments to PMLA,2002 and called for its review. The statement: pic.twitter.com/vmhtxRHAnl
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 3, 2022
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत ईडी को मिले अधिकारों का समर्थन करते हुए गत 27 जुलाई को कहा था कि धारा-19 के तहत गिरफ्तारी का अधिकार, मनमानी नहीं है.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि धारा-5 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है.
विपक्षी दलों ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया आदेश के होने वाले दूरगामी असर को लेकर गहरी चिंता प्रकट करते हैं जिसमें शीर्ष अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण कानून, 2002 में किए गए संशोधनों को पूरी तरह से बरकरार रखा तथा इसकी छानबीन नहीं की कि इनमें से कुछ संशोधन वित्त विधेयक के जरिये किए गए हैं.’
साझा बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं ने वित्त विधेयक के माध्यम से संशोधनों को प्रभावित करने के तरीके पर भी सवाल उठाया, जिसे उन्होंने ‘असंवैधानिक या अप्रभावी’ माना है.
विपक्ष का तर्क है कि एक वित्त विधेयक अनिवार्य रूप से समेकित निधि (Consolidated Fund) और कराधान से धन के विनियोग (Appropriation of Money) से संबंधित है, इसलिए अन्य मामलों पर कानून बनाने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है.
वास्तव में शीर्ष अदालत ने इस विशिष्ट मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपा है और उस पर फैसला अभी भी लंबित है.
उन्होंने कहा, ‘अगर कल सुप्रीम कोर्ट वित्त विधेयक के जरिये हुए संशोधनों को कानून के लिहाज से गलत ठहरा दे तो पूरी कवायद बेकार हो जाएगी और न्यायपालिका का समय भी जाया होगा.’
विपक्षी दलों ने कहा, ‘हम अपने सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और हमेशा करते रहेंगे. फिर भी हम इसका उल्लेख करने को बाध्य हुए हैं कि वित्त विधेयक के जरिये किए गए संशोधनों की वैधानिकता पर विचार करने वाली बड़ी खंडपीठ के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए था.’
उन्होंने दावा किया कि इन संशोधनों ने उस सरकार के हाथ को मजबूत किया, जो प्रतिशोध की राजनीति में लगी हुई है, इन संशोधनों का उपयोग करके वह अपने विरोधियों को दुर्भावनापूर्ण ढंग से निशाना बना रही है.
विपक्षी दलों ने कहा, ‘हम इस बात से निराश हैं कि सर्वोच्च न्यायालय, जिसे कानून में जांच-परख और संतुलन के अभाव को लेकर स्वतंत्र फैसला देना चाहिए, उसने वस्तुत: उन दलीलों को फिर से सामने कर दिया, जो इन संशोधनों के समर्थन में कार्यपालिका की ओर से रखी गईं थीं.’
उन्होंने कहा, ‘हम आशा करते हैं कि यह ‘खतरनाक फैसला’ बहुत कम समय के लिए होगा और संवैधानिक प्रावधानों की जीत होगी.’
ईडी द्वारा राष्ट्रीय राजधानी और अन्य जगहों पर नेशनल हेराल्ड अखबार के परिसरों पर छापेमारी के एक दिन बाद यह बयान आया है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पहले ही एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ कर चुकी है.
विपक्षी खेमा लंबे समय से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों और सरकार के आलोचकों को निशाना बनाने के लिए ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ और ‘जांच एजेंसियों के दुरुपयोग’ के बारे में मुखर रहा है.
उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत दायर किए जा रहे और ईडी द्वारा जांच किए गए मामलों की एक बड़ी संख्या की तुलना में बहुत कम दोषसिद्धि दर का भी हवाला दिया है.
मोदी सरकार के पिछले आठ वर्षों में ईडी द्वारा की गई 3,010 मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित जांच में से संसद में पेश किए गए सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार, केवल 23 आरोपियों को दोषी ठहराया गया है.
इतना ही नहीं विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत ईडी द्वारा दर्ज मामलों की कुल संख्या भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की राजग सरकार के पहले कार्यकाल (2014-15 से 2016-17) की तुलना में दूसरे कार्यकाल (2019-20 से 2021-22) के पहले तीन वर्षों में लगभग तीन गुना बढ़ गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)