अदालत ने दिल्ली के शकरपुर क्षेत्र में कई झुग्गी-झोपड़ियों को गिराए जाने से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी तोड़-फोड़ की कार्रवाई को शुरू करने से पहले प्रभावित लोगों को एक उचित अवधि और अस्थायी ठिकाना प्रदान किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बिना कोई नोटिस दिए किसी व्यक्ति को, सुबह-सुबह या देर शाम उनके दरवाजे पर बुलडोजर खड़ा करके, घर से बेदखल करते हुए पूरी तरह से आश्रय-रहित नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने राष्ट्रीय राजधानी के शकरपुर क्षेत्र में कई झुग्गी झोपड़ियों को गिराए जाने से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) से परामर्श करते हुए काम करना होता है और किसी भी तोड़-फोड़ की कार्रवाई को शुरू करने से पहले ऐसे लोगों को एक उचित अवधि और अस्थायी ठिकाना प्रदान किया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि एक व्यक्ति, डीडीए जिसके अतिक्रमणकर्ता होने का दावा करता है, को रात ही रात में उसने घर से बाहर करने की कार्रवाई स्वीकार नहीं की जा सकती है.
अदालत ने कहा कि डीडीए को इस तरह की किसी भी कार्रवाई को शुरू करने से पहले डीयूएसआईबी के साथ परामर्श करके काम करना होता है और किसी व्यक्ति को, सुबह-सुबह या देर शाम उनके दरवाजे पर बुलडोजर खड़ा करके, घर से बेदखल करते हुए पूरी तरह से आश्रय-रहित नहीं किया जा सकता है.
2 अगस्त के अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘किसी भी तोड़-फोड़ की कार्रवाई को शुरू करने से पहले ऐसे लोगों को एक उचित अवधि और अस्थायी ठिकाना प्रदान किया जाना चाहिए.’
हाईकोर्ट द्वारा पारित एक पुराने फैसले का उल्लेख करते हुए जज ने कहा कि झुग्गी निवासियों का पाया जाना असामान्य नहीं है. अपने दरवाजे पर बुलडोजर खड़ा देखकर जिस बदहवासी में वे अपने पास जो कुछ भी कीमती चीज या दस्तावेज हैं, उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं, वह इस बात की गवाही देता है कि उस स्थान पर झुग्गी निवासी रहते थे.
यह देखते हुए कि डीयूएसआईबी आमतौर पर शैक्षणिक वर्ष के अंत में और मानसून में तोड़-फोड़ अभियान नहीं चलाता है, अदालत ने कहा कि डीडीए भी समान मानदंडों का पालन करेगा.
लाइव लॉ के मुताबिक, पिछले साल 25 जून को याचिकाकर्ता शकरपुर स्लम यूनियन ने दावा किया था कि डीडीए के अधिकारी बिना किसी सूचना (नोटिस) के इलाके में पहुंचे और करीब 300 झुग्गियों को तोड़ दिया.
याचिका में कहा गया है, तोड़-फोड़ तीन दिनों तक जारी रही और कई झुग्गी निवासी अपना सामान भी नहीं निकाल सके. पुलिस और डीडीए के अधिकारियों ने निवासियों को वहां से हटा दिया.
याचिकाकर्ता ने कहा कि निवासी बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रवासी थे और मुख्य रूप से मजदूर, कूड़ा बीनने वाले, रिक्शा चालक, ऑटो चालक और घरेलू कामगार थे और दावा किया कि डीडीए को निवासियों के पुनर्वास के लिए दिल्ली स्लम एंड जेजे रिहेबिलिटेशन एंड रीलोकेशन पॉलिसी-2015 का पालना करना चाहिए था.
वर्तमान मामले में, अदालत ने अधिसूचित जेजे समूहों की पहचान करने के लिए क्षेत्र में सर्वेक्षण करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया (नीति के तहत वे राहत के हकदार होंगे) और डीडीए को केवल डीयूएसआईबी के परामर्श के साथ ही आगे की तोड़-फोड़ कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया.
अदालत ने कहा, ‘वर्तमान मामले में रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री यह नहीं दिखाती है कि झुग्गी 2006 से पहले अस्तित्व में थीं और इसलिए पुनर्वास नीति के दायरे में आती थीं.’
अदालत ने आगे कहा, ‘हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि एक अज्ञात समूह पुनर्वास का हकदार नहीं होगा.’
अदालत ने इस प्रकार डीडीए को निर्देश दिया कि वह निवासियों को वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय दे या फिर निवासियों को तीन महीने के लिए डीयूएसआईबी द्वारा प्रदान किए गए आश्रय स्थलों में समायोजित करने के लिए कदम उठाए.