भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उन्होंने 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना पदभार संभाला था.
नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने बृहस्पतिवार को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस उदय उमेश ललित (यूयू ललित) के नाम की सिफारिश की.
प्रधान न्यायाधीश ने व्यक्तिगत रूप से अनुशंसा पत्र की प्रति जस्टिस ललित को सौंपी, जो वरिष्ठता क्रम में उनके बाद आते हैं.
जस्टिस रमना ने 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना पदभार संभाला था. उन्होंने अपने पूर्ववर्ती जस्टिस एसए बोबडे की जगह ली थी. प्रधान न्यायाधीश 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.
बृहस्पतिवार को जारी एक बयान के अनुसार, ‘भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने आज अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस उदय उमेश ललित के नाम की सिफारिश की.’
Chief Justice of India N V Ramana today recommended the name of Justice Uday Umesh Lalit as his successor to the Union Minister for Law and Justice. pic.twitter.com/MhBAQcMDAq
— Live Law (@LiveLawIndia) August 4, 2022
बयान के अनुसार, तीन अगस्त 2022 को प्रधान न्यायाधीश के सचिवालय को विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू की ओर से भेजा एक पत्र मिला था, जिसमें उनसे अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने का अनुरोध किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित ज्ञापन प्रक्रिया (एमओपी) के तहत, निवर्तमान सीजेआई कानून मंत्रालय से पत्र पाने के बाद उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश की प्रक्रिया शुरू करते हैं.
जस्टिस ललित का जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ था. उन्होंने जून 1983 में एक वकील के रूप में काम करना शुरू किया और दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की थी.
वह बाद में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में, उन्हें शीर्ष अदालत द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया. इससे पहले 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए उन्हें केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था.
उन्हें 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
जस्टिस ललित के अगला सीजेआई नियुक्त होने पर उनका कार्यकाल तीन महीने से भी कम का होगा, क्योंकि वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ललित दूसरे सीजेआई होंगे, जिन्हें बार से सीधे शीर्ष अदालत में पदोन्नत किया जाएगा. जस्टिस एसएम सीकरी जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे, जिन्हें मार्च 1964 में सीधे शीर्ष अदालत में पदोन्नत किया गया था.
जस्टिस ललित उन पीठों का हिस्सा थे, जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए, जिनमें मुसलमानों के बीच तत्काल ‘ट्रिपल तालक’ के जरिये तलाक की प्रथा को अवैध और असंवैधानिक माना गया.
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था, जो कि सबसे अमीर मंदिरों में से एक है, यह मानते हुए कि मंदिर के ‘विरासत के नियम को सेवक के अधिकार से जोड़ा जाना चाहिए.’
जस्टिस यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी अन्य कृत्य पॉक्सो कानून की धारा सात के अर्थ के तहत यौन उत्पीड़न होगा.
पॉक्सो अधिनियम के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादास्पद ‘त्वचा से त्वचा’ या स्किन टू स्किन टच के फैसले को खारिज करते हुए पीठ ने कहा था, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों के खिलाफ यौन हमले के अपराध को परिभाषित करने वाले प्रावधान को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और यदि कोई सेक्सुअल इरादा मौजूद है तो अपराध को ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क हुए बिना भी अपराध माना जाना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)