राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विरोधी दल के नेताओं को निशाना बनाए जाने के विपक्ष के आरोपों के मद्देनज़र यह स्पष्ट किया. विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते चार जुलाई को सदन में आरोप लगाया था कि संसद सत्र जारी रहने के बावजूद उन्हें ईडी द्वारा समन भेजा गया है.
नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को कहा कि उच्च सदन के सदस्यों को सिविल मामलों में जरूर कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं, लेकिन आपराधिक मामलों में उनके पास ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं है.
नायडू ने केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विरोधी दल के नेताओं को निशाना बनाए जाने के विपक्ष के आरोपों के मद्देनजर यह स्पष्ट किया.
दरअसल, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार (चार जुलाई) को सदन में आरोप लगाया था कि संसद का सत्र जारी रहने के बावजूद उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन भेजा गया है.
शिवसेना सदस्य अपने नेता संजय राउत को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने का मुद्दा भी पिछले कुछ दिनों से उठा रहे हैं. शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी यह मामला उठाया था कि संसद का सत्र चल रहा है और राउत को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया.
कांग्रेस सदस्यों ने 5 अगस्त को सुबह 11 बजे सदन की बैठक शुरू होने पर हंगामा कर दिया. केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के विरोध में कांग्रेस के 10 से अधिक सदस्य सदन के वेल में पहुंच गए.
कांग्रेस सदस्यों ने कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का अपमान किया गया है, क्योंकि उन्हें गुरुवार को संसद के कामकाजी घंटों के दौरान प्रवर्तन निदेशालय द्वारा तलब किया गया था.
विरोध जता रहे कांग्रेस सदस्यों ने कहा कि सत्र के दौरान खड़गे को ईडी का समन भेज कर उन्हें अपमानित किया गया.
विपक्षी नेताओं की इन बातों का संज्ञान लेते हुए नायडू ने सदन में ऐसे मामलों में कानूनी स्थिति और सदन में पूर्व में दी गई व्यवस्थाओं का उल्लेख किया.
उन्होंने कहा कि सदस्यों में एक गलत धारणा है कि एजेंसियों की कार्रवाई के खिलाफ उनके पास विशेषाधिकार है.
उन्होंने कहा, ‘संविधान के 105वें अनुच्छेद के मुताबिक संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार हैं. इनमें एक विशेषाधिकार यह है कि सत्र के आरंभ होने या समिति की बैठकों में शामिल होने के 40 दिन पहले और इसके समाप्त होने के 40 दिनों के भीतर किसी भी संसद सदस्य को सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.’
उन्होंने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135 के सेक्शन ‘ए’ में इसका उल्लेख भी है.
नायडू ने कहा, ‘हालांकि आपराधिक मामलों में सांसद किसी आम नागरिक से अलग नहीं हैं. इसका मतलब यह है सत्र के दौरान या वैसे भी, सांसदों के पास गिरफ्तार होने से बचने का कोई विशेषाधिकार नहीं है.’
उन्होंने कहा कि कानून का पालन करना सभी का कर्तव्य है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने इस बारे में पूर्व में दी गईं कुछ व्यवस्थाओं का भी उल्लेख किया. उन्होंने विशेष रूप से डॉ. जाकिर हुसैन द्वारा 1966 में दिए गए एक फैसले का उल्लेख किया, जो उस समय राज्यसभा के सभापति थे.
नायडू ने कहा, ‘यह कहा गया था कि संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार हैं, ताकि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें. ऐसा ही एक विशेषाधिकार है गिरफ्तारी से छूट, जब संसद का सत्र चल रहा हो. गिरफ्तारी से छूट का यह विशेषाधिकार केवल दीवानी मामलों तक सीमित है और इसे आपराधिक कार्यवाही के प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी गई है.’
नायडू ने एक टिप्पणी का भी हवाला दिया जो उन्होंने पहले किया था.
उन्होंने कहा, ‘उस टिप्पणी में मैंने कहा था कि सदन की ड्यूटी का हवाला देते हुए सदन के किसी भी सदस्य को किसी भी जांच एजेंसी के सामने पेश होने से बचना चाहिए, जब उसे ऐसा करने के लिए कहा जाता है. सांसदों के रूप में कानून और कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान करना हमारा अनिवार्य कर्तव्य है. यह सभी मामलों में सभी पर लागू होता है, क्योंकि आप केवल यह सूचित कर सकते हैं कि सदन चल रहा है, इसलिए आगे की तारीख की मांग कर रहे हैं, लेकिन आप प्रवर्तन एजेंसियों या कानून लागू करने वाली एजेंसियों के समन या नोटिस से बच नहीं सकते. इस पर सभी को ध्यान देना होगा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)