राजग उम्मीदवार जगदीप धनखड़ होंगे नए उपराष्ट्रपति

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर संयुक्त विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को पराजित किया. धनखड़ को कुल 528 मत मिले, जबकि अल्वा को सिर्फ 182 मतों से ही संतोष करना पड़ा.

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New Delhi: Prime Minister Narendra Modi with the Vice-President designate Jagdeep Dhankhar during a meeting, in New Delhi, Saturday, Aug. 6, 2022. (PTI Photo/Ravi Choudhary)

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर संयुक्त विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को पराजित किया. धनखड़ को कुल 528 मत मिले, जबकि अल्वा को सिर्फ 182 मतों से ही संतोष करना पड़ा.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अभिवादन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ देश के नए उपराष्ट्रपति होंगे. उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव में शनिवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रत्याशी के तौर पर संयुक्त विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को पराजित किया.

अधिकारियों ने बताया कि धनखड़ को कुल 528 (72.8 फीसदी) मत मिले, जबकि अल्वा को सिर्फ 182 (25.1 फीसदी) वोट हासिल हुए. इस चुनाव में कुल 725 सांसदों ने मतदान किया था, जिनमें से 710 वोट वैध पाए गए, 15 (2.1%) मतपत्रों को अवैध पाया गया.

अब 71 वर्षीय धनखड़ देश के नए उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में एम. वेंकैया नायडू की जगह लेंगे. वह भारत के 14वें उपराष्ट्रपति होंगे. नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा हो रहा है. धनखड़ 11 अगस्त को शपथ ग्रहण करेंगे.

नतीजे घोषित होने से पहले ही संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के आवास के बाहर जश्न शुरू हो गया था. यहीं पर धनखड़ मौजूद थे.

राजस्थान के झुंझुनू में भी जश्न मनाया गया, जो धनखड़ का गृहनगर है.

चुनाव परिणाम घोषित होने के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनखड़ से मुलाकात कर उन्हें बधाई दी.

उपराष्ट्रपति चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत करीब 93 प्रतिशत सांसदों ने मतदान किया, जबकि 50 से अधिक सांसदों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं किया.

मतदान करने के पात्र 780 सांसदों में से 725 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. मतदान सुबह 10 बजे शुरू हुआ था और शाम पांच बजे संपन्न हुआ.

संसद के दोनों सदनों को मिलाकर कुल सदस्यों की संख्या 788 (543 लोकसभा और 245 राज्यसभा) होती है, जिनमें से उच्च सदन की आठ सीट फिलहाल रिक्त हैं. ऐसे में उपराष्ट्रपति चुनाव में 780 सांसद वोट डालने के लिए पात्र थे.

तृणमूल कांग्रेस अपनी पहले की घोषणा के मुताबिक इस चुनाव से दूर रही, हालांकि उसके दो सांसदों शिशिर कुमार अधिकारी और दिव्येंदु अधिकारी ने मतदान किया. दोनों सदनों में तृणमूल कांग्रेस के कुल 36 सांसद हैं.

धनखड़ को सत्तारूढ़ गठबंधन राजग के अलावा जनता दल (यूनाइटेड), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) और शिवसेना जैसे गैर-राजग दलों का भी समर्थन मिला.

दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी (आप), झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने कांग्रेस नेत्री अल्वा को समर्थन दिया.

चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद अल्वा ने धनखड़ को बधाई दी और साथ ही उन विपक्षी नेताओं और सांसदों का आभार प्रकट किया, जिन्होंने विपक्ष की साझा उम्मीदवार के तौर पर उनका समर्थन किया था.

अल्वा ने ट्वीट किया, ‘श्री धनखड़ के उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई. मैं विपक्ष के उन सभी नेताओं और सांसदों का आभार जताती हूं, जिन्होंने इस चुनाव में मुझे वोट किया. मैं उन सभी स्वयंसेवियों को भी धन्यवाद कहती हूं, जिन्होने इस छोटे लेकिन गहन चुनाव प्रचार के दौरान अपनी नि:स्वार्थ सेवा दी.’

मतदान के पहले ही विपक्षी खेमे में दरार साफ दिख रही थी. 36 सांसदों वाली तृणमूल कांग्रेस ने इस आधार पर चुनाव का बहिष्कार कर दिया था कि अल्वा की उम्मीदवारी की घोषणा उचित परामर्श के बिना की गई थी. टीएमसी के इस फैसले को मार्गरेट अल्वा ने निराशाजनक बताया था और उम्मीद जताई थी कि ममता बनर्जी इस चुनाव में विपक्ष के साथ खड़ी होंगी.

अगर बात साल 2017 में वेंकैया नायडू के निर्वाचन के समय की करें तो तब 98.2 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जो इस बार के मुकाबले अधिक थे.

बहरहाल, राजनीतिक क्षितिज में पिछले कुछ वर्षों के दौरान धनखड़ के उदय ने बहुत सारे लोगों को आश्चर्य में डाला है.

कभी जनता दल के साथ रहे धनखड़ 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे. वह अतीत में अधिवक्ता के तौर पर काम कर चुके हैं.

उन्होंने राजस्थान में जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिलाने की मांग और ओबीसी से जुड़े कई अन्य मुद्दों की जोरदार ढंग से पैरोकारी की.

धनखड़ की उम्मीदवारी की घोषणा करते समय भाजपा ने उन्हें ‘किसान पुत्र’ बताया था, जिसे किसानों और खासकर जाट समुदाय के बीच एक संदेश देने के प्रयास के तौर पर देखा गया, क्योंकि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन में इस समुदाय के लोगों ने अच्छी खासी भागीदारी की थी.

उच्च सदन में सत्ताधारी दल के पास बहुमत न होने के चलते राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में धनखड़ की भूमिका उसके लिए महत्वपूर्ण होगी. वास्तव में, पश्चिम बंगाल में धनखड़ पर अपने राज्यपाल पद का राजनीतिकरण करने के आरोप लगते रहे थे. ममजा बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के साथ उनका कई मौकों पर सीधा टकराव हुआ और यही कारण रहा कि वह कई बार तृणमूल कांग्रेस के निशाने पर आए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)