दूसरों के विचार स्वीकारने और सहिष्णु होने का मतलब अंध सहमति जताना नहीं होता: जस्टिस चंद्रचूड़

गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे रास्ते निकाले जाएं, जिनमें क़ानूनों को बेहतर और न्यायसंगत बनाने के लिए उन पर पुनर्विचार और उन्हें पुनर्भाषित किया जा सके.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे रास्ते निकाले जाएं, जिनमें क़ानूनों को बेहतर और न्यायसंगत बनाने के लिए उन पर पुनर्विचार और उन्हें पुनर्भाषित किया जा सके.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि दूसरों की राय स्वीकारने या सहिष्णु होने का मतलब ‘अंध सहमति’ या ‘हेट स्पीच के खिलाफ खड़े न होना’ नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जस्टिस चंद्रचूड़ ने शनिवार को गांधीनगर में गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दौरान कहा, ‘वॉल्टेयर के कहे प्रसिद्ध शब्द, ‘आप जो कहते हैं, मैं उसे अस्वीकार करता हूं, लेकिन मैं यह कहने के आपके अधिकार की रक्षा करूंगा’, हमें अपने जीवन में शामिल करना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कोई गलती न करें, दूसरों के विचारों को स्वीकारना और उनके प्रति सहिष्णु होने का मतलब अंध सहमति नहीं होता और न ही इसका मतलब हेट स्पीच के खिलाफ खड़े नहीं होना होता है.’

पहले से ही रिकॉर्ड किए गए वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, ‘नए-नए बने स्नातकों के रूप में दुनिया में कदम रखते हुए, विचारधारा के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक संघर्षों के शोर और भ्रम के बीच आपको अपने विवेक और न्यायसंगत तर्कों से मार्गदर्शन लेकर आगे बढ़ना है. सत्ता से सच कहिए.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि कानून को न्याय के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए और यह भी कहा कि छात्र, अपने करिअर के दौरान, अक्सर यह एहसास करेंगे कि ‘जो कानूनी है वह संभवत: अन्यायपूर्ण है, जबकि जो न्यायोचित है वह हमेशा कानूनी नहीं हो सकता.’

धारा 377 को खत्म करने, लंबे समय तक बाल श्रम कानूनों का अभाव और न्यूनतम मजदूरी के परिणामस्वरूप दुनिया भर में हाल में हुए श्रमिक आंदोलन जैसे कई उदाहरणों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘ये सभी कानून की संस्थाओं के साथ-साथ मौजूद रहे. हालांकि, अब हम सहमत हैं कि वे अन्यायपूर्ण थे. अभी भी कमियां बनी हुई हैं जो हाशिए पर पड़े लोगों को और भी ज्यादा हाशिए पर धकेल देती हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि यह भी जरूरी है कि ऐसे रास्ते निकाले जाएं, जिनमें कानूनों को बेहतर और न्यायसंगत बनाने के लिए उन पर पुनर्विचार और उन्हें पुनर्भाषित किया जा सके.

छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उन सभी मौकों पर जहां आपके पास सामाजिक न्याय की दिशा में काम करने का अवसर हो, तब आपको कानून और न्याय के बीच अंतर का महत्व याद रखना है और कानून का इस्तेमाल न्याय को आगे बढ़ाने के कदम के रूप में करना है.